भारत में सहकारिता आन्दोलन

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भारत में सहकारिता का इतिहास सौ वर्षों से भी अधिक पुराना है। यहाँ, विशेषतः १९४७ के बाद, सहकारी समितियों का बहुत तेजी से विकास हुआ। एक अनुमान के अनुसार, देश में 6 लाख सहकारी समितियां सक्रिय हैं, अरबों लोगों को रोजगार मिल रहा है। ये समितियां अधिकांश समाज में काम कर रही हैं, लेकिन कृषि, उर्वरक और दूध उत्पादन में उनकी भागीदारी सबसे अधिक है। अब बैंकिंग क्षेत्र में सहकारी समितियों की संख्या बढ़ रही है लेकिन देश के सहकारी आन्दोलन कई विसंगतियों के जाल में फंस गए हैं।

1904 में, अंग्रेजों ने भारत में सहकारी समितियों की एक निश्चित परिभाषा बनाई। कानून बनाने के बाद, इस क्षेत्र में कई पंजीकृत संगठन काम करने आए। सहकारी समिति की स्थापना करके, सरकार ने इसे तेजी से बढ़ाने की कोशिश की है। सरकार के प्रयासों ने सहकारी समितियों की संख्या में वृद्धि की, लेकिन सहयोग के बुनियादी तत्त्व धीरे-धीरे समाप्त हुए।

भारत में सहकारिता का विकास, एक दृष्टि में[संपादित करें]

  • (१) सहकारी साख समिति अधिनियम, 1904 - आरंभिक स्थापना
  • (२) सहकारी समिति अधिनियम, 1912
  • (३) सहकारिता पर मैक्लेगन समिति, 1914
  • (४) भारत सरकार अधिनियम, 1919
  • (५) बहु-ईकाई सहकारी समिति अधिनियम, 1942
  • (६) सहकारी योजना समिति (1945)
  • (७) अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण समिति (1951)
  • (८) नाबार्ड अधिनियम, 1981
  • (९) बहुराज्यीय सहकारी समिति अधिनियम, 1984
  • (१०) मॉडल सहकारी समिति अधिनियम, 1990
  • (११) राष्ट्रीय सहकारिता नीति (2002)
  • (१२) बहु-उद्देश्यीय राज्य सहकारी समिति अधिनियम, 2002
  • (१३) कम्पनी संशोधन अधिनियम, 2002
  • (१४) एन.सी.डी.सी संशोधन अधिनियम, 2002
  • (१५) केन्द्र में सहकारिता मंत्रालय की स्थापना (२०२१)[1]

भारत में सहकारी आन्दोलन की असफलता[संपादित करें]

भारत में सहकारी आन्दोलन की अनेक महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ रहीं, किन्तु इसे हम सफल नहीं कह सकते। इस आन्दोलन द्वारा जो लक्ष्य प्राप्त करने थे, वे प्राप्त नहीं किये जा सके। भारत में सहकारी आन्दोलन की असफलता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

(१) अकुशल प्रबन्ध व्यवस्था -- इन संगठनों में कार्यरत कर्मचारी एवं प्रबन्धक दोनों ही प्रबन्ध व्यवस्था में कुशल एवं निपुण नहीं होते।

(२) सरकार सहकारी संगठनों के रजिस्ट्रेशन, अंकेक्षण आदि के माध्यम से इनके संचालन में अनावश्यक हस्तक्षेप करती है, जिससे ये संगठन स्वायत्तता प्राप्त नहीं कर पाए।

(३) ये संगठन निजी क्षेत्र से होने वाली कठोर प्रतिस्पर्धा के सामने नहीं टिक पाते हैं। निजी क्षेत्र में पेशेवरपन तथा अधिक कुशलता होती है जिसका सहकारी संगठन में सर्वथा अभाव पाया जाता रहा है।

(४) लाभ को विशेष स्थान न मिलने से इन संगठनों में व्यावसायिक कुशलता का अभाव रहा है।

(५) सहकारी आन्दोलन को कुशल एवं अनुभवी नेतृत्व मिल पाने के कारण असफलता का सामना करना पड़ा है।

(६) अशिक्षा, इस आन्दोलन के विकास के मार्ग की महत्त्वपूर्ण समस्या है।

(७) रामनिवास मिर्धा समिति के अनुसार, "भारत में 25 प्रतिशत सहकारी समितियाँ वास्तव में सक्रिय नहीं हैं। इन्हीं निष्क्रिय समितियों के कारण भी सहकारी आन्दोलन के विकास में बाधा पहुँची है।

(८) भारत में जनहित की सहकारी भावना का अभी पूर्ण विकास नहीं पाया है।

(९) नौकरशाही का प्रभुत्व

(१०) सामाजिक व्यवस्था के दोष -- जातीय संघर्ष, दरिद्रता, वर्गभेद आदि भारतीय सामाजिक व्यवस्था के ऐसे तत्त्व हैं जिनका प्रतिकूल प्रभाव सहकारी आन्दोलन पर पड़ा है।

(११) अन्य -- गोपनीयता का अभाव, अपर्याप्त पूंजी, निर्धनों को पर्याप्त लाभ न मिलना, दोषपूर्ण निरीक्षण तथा अंकेक्षण, ऋणग्रस्तता, कृषि का पुराना तरीका, नियमित बाजारों का अभाव इत्यादि।

भारत की प्रमुख सहकारी संस्थाएँ[संपादित करें]

भारत में सहकारिता आन्दोलन का एक लम्बा एवं विस्तृत इतिहास है। लगभग 100 वर्ष से भी अधिक की अवधि के दौरान आन्दोलन ने विविध प्रकार के कार्य किए हैं तथा अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक बदलाव में अहम भूमिका निभाई है। आज यह आन्दोलन चीनी, दुग्ध, ऋण एवं उर्वरक आदि महत्वपूर्ण क्षेत्रों में महान शक्ति के रूप में उभरकर सामने आया है। आज अनेकों सहकारी ब्रांड केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी घर-घर प्रचलित हो गए हैं।

  • भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ
  • नेफेड -- विपणन सहकारी संस्थाओं की शीर्ष संस्था है।
  • इफको और कृभको जैसी सहकारी संस्थाओं ने उत्पादन में किसानों की सेवा में उत्कृष्टता के नये रिकॉर्ड स्थापित किये हैं।
  • चीनी उत्पादन में सहकारी चीनी मिलों का उल्लेखनीय योगदान रहा है।
  • सहकारी आवास आन्दोलन -- राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम
  • अमूल

सहकारिता की शिक्षा देनेवाली संस्थाएँ[संपादित करें]

सहकारिता सिखाने की प्रमुख संस्थाएँ हैं

  • वैकुंठ मेहता राष्ट्रीय सहकारी प्रबंध संस्थान, पुणे (केंद्र सरकार द्वारा वित्त पोषित) [2]
  • राष्ट्रीय सहकारी प्रशिक्षण परिषद, दिल्ली [3]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]