भारत में तिहरा तलाक़
भारत में तिहरा तलाक़ या तीन तलाक़ वह कुप्रथा है जिसमें कोई मुसलमान पुरुष अपनी पत्नी को तीन बार "तलाक़" बोलकर, लिखकर या किसी इलेक्ट्रानिक रूप में भेजकर उससे विवाह-सम्बन्ध-विच्छेद (तलाक़) कर लेता था।
इस्लाम में दो तरह के तलाक़ के बारे में ज़िक्र है। पहला तलाक़ अल सुन्नाम, जिसे पैग़ंबर मोहम्मद के हुक्म के मुताबिक़ किया जाता है। जबकि दूसरा, तलाक़ अल बिद्दत, जिसे बाद में ईजाद किया गया। क़ुरआन में सीधे तौर पर तीन तलाक़ का कोई ज़िक्र नहीं है और ना ही पैग़ंबर मोहम्मद ने इसके बारे में सीधे तौर पर कुछ कहा है।
कुरान में सिर्फ एक बार तलाक़ बोलने से ही तलाक़ होने का जिक्र है। लेकिन इससे पहले दोनों के बीच सुलझ कराने के लिए भी कई उपाय बताए गए हैं। सुरेह निसा-35 में कहा गया है कि;
- अगर तुम्हें शौहर बीवी में फूट पड़ जाने का अंदेशा हो तो एक हकम (जज) मर्द के लोगों में से और एक औरत के लोगों में से मुक़र्रर कर दो, अगर शौहर बीवी दोनों सुलह चाहेंगे तो अल्लाह उनके बीच सुलह करा देगा, बेशक अल्लाह सब कुछ जानने वाला और सब की खबर रखने वाला है।
इसके बाद भी अगर शौहर और बीवी दोनों अलग होना चाहते हैं तो शौहर बीवी के खास दिनों के आने का इंतज़ार करेगा। ख़ास दिनों के गुज़र जाने के बाद जब बीवी पाक़ हो जाए तो बिना हमबिस्तर हुए कम से कम दो जुम्मेदार लोगों को गवाह बना कर उनके सामने बीवी को एक तलाक़ दे, यानी शौहर हर बीवी से सिर्फ इतना कहे कि "मैं तुम्हे तलाक़ देता हूं"। तलाक़ देने के तीन महीने बाद तक बीवी ससुराल में रह सकती है। उसे कोई नहीं निकाल सकता है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]दिल्ली उच्च न्यायालय ने तीन तलाक अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिका शुक्रवार 28 सितम्बर 2018 को खारिज कर दी। इस अध्यादेश में तीन बार तलाक बोलकर पत्नी को तलाक देने पर तीन साल की जेल या जुर्माना का प्रावधान है। [1]
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- ↑ "तीन तलाक अध्यादेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज". Naya India Team. 28 September 2018. Archived from the original on 28 सितंबर 2018. Retrieved 28 सितंबर 2018.