भारतीय चित्रशालाएँ
भारतीय पुराणों में प्राय: चित्रशाला तथा विश्वकर्मामंदिर का वर्णन मिलता है। ये संभवत: मनोविनोद तथा शिक्षा के केंद्र थे। पुराणों में चित्रकला में अभिरुचि के साथ चित्रसंग्रह और चित्रशाला के अनेक संकेत मिलते हैं। इससे लगता है कि भारत में अति प्राचीन काल से ही चित्रशालाएँ थीं। वैसे भी इस देश में मंदिरों में चित्रकला तथा मूर्तिकला को आदिकाल से प्रमुखता मिलती आई है जो आज भी वर्तमान है। अजंता का कलामंडप इसका अद्भुत प्रमाण है। यह करीब दो हजार वर्ष पुरानी, संसार की अप्रतिम चित्रशाला है। प्राचीन कल के सभी मंदिर मूर्तिकला से परिपूर्ण हैं और कहीं कहीं अब भी उनमें चित्रकला वर्तमान है।
मध्यकालीन मंदिरों में तो चित्रकला तथा मूर्तिकला के उत्कृष्ट उदाहरण मिलते हैं। इस काल में राजा महाराजा, बादशाहों, नवाबों के महलों में भी चित्रशालाएँ बनने लग गई थीं। आधुनिक अर्थों में भारत में सर्वप्रथम संग्रहालय तथा चित्रशाला एशियाटिक सोसाइटी ऑव बंगाल के प्रयास से 1814 में स्थापित हुई जिसे हम आज भारतीय संग्रहालय, कलकत्ता (इंडियन म्यूज़ियम, कलकत्ता) के नाम से जानते हैं और यह एशिया के सबसे समृद्ध संग्रहालयों में गिना जाता है।
मंदिरों की चित्रशालाएँ अधिकतर दक्षिणा भारत में हैं। इस प्रकर की चित्रशालाओं में तंजोर में राजराज संग्रहालय प्रसिद्ध है। अब उसे पुनर्गठित किया गया है। सरस्वती महल में चित्रशाला स्थापित है। सीतारंगम मंदिर, मीनाक्षीसुंदरेश्वरी का मंदिर तथा मदुराई का मंदिर भी उल्लेखनीय है। सीतारंगम मंदिर में मूर्तिकला के अद्भुत नमूने हैं मीनाक्षी में हाथीदाँत की कला अद्भुत है। वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, तिरुपत में भी कलात्मक कृतियों का अच्छा संग्रह हैं।
इस समय भारत में सैकड़ों संग्रहालय है और कइयों में चित्रों का भी अच्छा संग्रह हैं पर सुनियोजित चित्रशालाएँ बहुत नहीं हैं। अधिकतर संग्रहालयों में राजस्थानी, मुगल, पहाड़ी, दक्खिनी, नेपाल तथा तिब्बती शैली के चित्र हैं। कुछेक में आधुनिक यूरोपीय चित्र भी हैं पर ऐसी चित्रशालाएँ, जहाँ आदि से अंत तक चित्रकला का इतिहास तथा प्रगति समझने में मदद मिले, कतिपय ही हैं। बंबई के प्रिंस ऑव वेल्स संग्रहालय में पूर्वी तथा पश्चिमी सिद्धहस्त चित्रहारों की कृतियों के साथ साथ मध्यकालीन तथा आधुनिक चित्रकला के विभिन्न पक्षों के चित्र हैं तथा अजंता की बड़ी बड़ी अनुकृतियाँ भी हैं।
मैसूर की चित्रशाला में अधिकतर भारतीय आधुनिक शैली के चित्र है। ग्वालियर संग्रहालय में अजंता तथा बाघ के चित्रों की अनुकृतियों का अच्छा संग्रह है। इसी प्रकार हैदराबाद की चित्रशाला में भी अंजता तथा एलोरा की कलाकृतियों की सुंदर अनुकृतियाँ रखी गई हैं। इसमें यूरोपीय कला का भी सुंदर संग्रह है।
अभी हाल में मद्रास संग्रहालय में भी चित्रशाला संयोजित हुई है। यहाँ दक्षिण भारत की चित्रकला संग्रहीत है। वैसे यहां प्राचीन तथा मध्यकालीन चित्र भी हैं।
नई दिल्ली में एक बड़ी ही सुव्यवस्थित चित्रशाला नेशनल गैलरी ऑव माडर्न आर्ट है। इसमें अधिकतर शैली के भारतीय चित्र हैं। इसमें मुगल तथा राजस्थानी चित्र भी पर्याप्त मात्रा में हैं।
भारतीय संग्रहालय
[संपादित करें]कलकत्ते का भारतीय संग्रहालय (इंडियन म्यूज़ियम) अत्यंत प्रसिद्ध है। यह संग्रहालय एशियाटिक सोसाइटी के प्रयास से सन् 1814 में स्थापित हुआ था। 1839 में सरकार की ओर से इसे अनुदान मिलने लगा और इसका विस्तार हुआ। 1875 में भारतीय संग्रहालय का अपना भवन कलकत्ते में बना। 1883 में इसमें चित्रशाला की भी स्थापना की गई। 1904 में संग्रहालय का भवन और विस्तृत किया गया तथा चौरंगी रोड पर लार्ड कर्जन की सरकार की मदद से कलाकक्ष का निर्माण हुआ। कलाकक्ष दो चित्रशालाओं में बँटा हुआ है। एक में कलात्मक सामग्रियाँ हैं दूसरे में चित्र तथा मूर्तियाँ। मूर्तिकला की दृष्टि से यह संग्रहालय बहुत समृद्ध और दर्शनीय भी।
विक्टोरिया स्मारक
[संपादित करें]चित्रशाला की दृष्टि से कलकत्ते का विक्टोरिया मेमोरियल हाल बड़ा ही महत्वपूर्ण है। यह लार्ड कर्जन के प्रयास से 1906 में बना था। इसकी चित्रशाला में पाश्चात्य प्रसिद्ध कलाकारों के बहुत से महत्वपूर्ण चित्र हैं। चित्रशाला में ब्रिटिश काल के सम्राटों, शाही परिवारों तथा विक्टोरिया, प्रिंस ऑव वेल्स, लार्ड क्लाइव इत्यादि और राजा महराजा तथा अमीर उमरावों के चित्रों के अलावा 1857 के राजनीतिक उथल पुथल पर आधारित चित्र भी हैं। इसके अतिरिक्त इसमें वारेन हेस्टिंग्ज के काल के भी चित्र हैं।
आशुतोष संग्रहालय
[संपादित करें]आशुतोष संग्रहालय में अजंता, बाघ, पोलन्नारुआ, सितनवासल तिरुदंडिकराई इत्यादि की अनुकृतियाँ तथा नेपाली चित्र भी हैं। इनके अतिरिक्त जैन, गुजराती, मुगल, राजस्थानी, काँगड़ा, दक्खिनी तथा पटना शैली के चित्र, तिब्बती तथा चीनी चित्र, बंगाल की लोककला तथा आधुनिक चित्र भी हैं।
कलकत्ता का एशियाटिक सोसाइटी का संग्रहालय
[संपादित करें]कलकत्ता के एशियाटिक सोसाइटी का संग्रहालय (1874) : पूर्वी देशों में सबसे पुराना और समृद्ध है। कलकत्ते का इंडियन म्यूज़ियम भी इसी की सामग्रियों से बना है। चित्रशाला भी अनुपम है। यूरोपीय कला के संग्रह की दृष्टि से यह भारत का सबसे महत्वपूर्ण संग्रहालय है। इसमें रूबेंस, गूडो, रेने, डोमेनिशीनो रेलाल्डस, गानालेट्टी, कैटले, शिनरे, पो, डेनियल, से इत्यादि कई प्रसिद्ध यूरोपीय कलाकारों के तैलचित्र हैं। इसमें राबर्ट होम द्वारा प्रस्तुत अनुकृतियाँ तथा रेखाचित्र भी हैं। इनके अतिरिक्त बहुत से अच्छे व्यक्तिचित्र भी हैं।
नेशनल गैलरी ऑव् माडर्न आर्ट
[संपादित करें]भारत की राजधानी दिल्ली में आधुनिक चिकित्सा की राष्ट्रीय चित्रशाला स्वतंत्रता के बाद 1954 में स्थापित हुई जिसमें एक ही स्थान पर सारे भारतवर्ष के प्रसिद्ध आधुनिक कलाकारों के चित्र तथा मूर्तिकला के नमूने रखे गए हैं। जयपुर हाउस के विशाल कक्ष में अत्याधुनिक ढंग से यह सुसज्जित की गई है। सन् 1857 से लेकर अब तक के कलाकारों की कृतियाँ हैं। कुछ कलाकृतियाँ 1774 ई. की भी हैं, जैसे दक्षिण भारत, गुजरात तथा नेपाल की धातु की मूर्तियाँ, हाथ से छापे गए कपड़े तथा कढ़ाई का काम; राजपूत, काँगड़ा तथा बंगाल शैली के चित्र। आधुनिक चित्रकार अमृत शेरगिल के चित्रों के लिये एक अलग कक्ष ही बना दिया गया हैं। रवींद्रनाथ ठाकुर के चित्र भी इसमें सरंक्षित हैं। समकालीन भारतीय चित्रकला क विस्तृत रूप यहाँ देखने को मिलाता है।
डोंगरा चित्रशाला
[संपादित करें]सन् 1954 में स्थापित। जम्मू में मध्यकालीन पहाड़ी चित्रकला, जैसे काँगड़ा, बसोहली, चंबल इत्यादि की कला का अद्भुत संग्रहालय है। इसके अतिरिक्त श्रीनगर में राजकीय संग्रहालय में भी चित्रों का अच्छा संग्रह है।
बड़ौदा संग्रहालय तथा चित्रशाला
[संपादित करें]बड़ौदा म्यूज़ियम ऐंड पिक्चर गैलरी (1894) : महाराज सयाजी राव तृतीय ने स्थापित की थी। महाराजा बड़े ही कलात्मक रुचि के व्यक्ति थे और कलात्मक सामग्री के संगह का उन्हें बड़ा शौक था। देश विदेश जब भी कभी घूमने निकलते, वहाँ से वे अपनी रुचि की कलात्मक सामग्रियों को जरूर लाते। उन्होंने संसार के बहुत से देशों का भ्रमण किया था और उन जगहों से सामग्रियाँ जुटाई थीं। इस संग्रहालय में अधिकतर उन्हीं के द्वारा संग्रहीत सामग्री है। यह चित्रशाला 1914 में बनकर तैयार हुई लेकिन इसका उद्घाटन 1921 में हो सका। बाद में यह और भी विकसित हुई। 1943 में चित्रशाला को आधुनिक ढंग से सुसज्जित किया गया। 1948 में बड़ौदा राज्य बंबई राज्य के अंतर्गत मिला लिया गया और तब से यह संग्रहालय बंबई के शिक्षाविभाग द्वारा संचालित होता रहा। अब यह गुजरात प्रदेश के अधीन है।
संग्रहालय के प्रथम निर्देशक श्री जे. एफ. ब्लेक थे। बाद में चित्रशाला को पुनर्गठित किया डॉ॰ ई. कोन वाइनर तथा डॉ॰ हरमन गुत्स ने।
इसमें भारत, चीन जापान, मिस्र, ईराक, फारस, ग्रीस, मरो तथा मध्यकालीन योरोप की कलाकृतियाँ संग्रहीत हैं। भवन के नीचे के चार कमरे "यूरोपीय कक्ष" कहे जाते हैं। इसमें ग्रीस तथा रोम की (सातवीं शताब्दी से लेकर बीसवीं शताब्दी तक) कलाकृतियाँ तथा यूरोपीय कलाकृतियाँ हैं। एक कमरा केवल लघुचित्रों (मिनिएचर्स), छापे के कामों तथा मुद्राओं के लिये है। छह कमरे एशिया की कला के लिये है। एक कमरे में केवल जापानी कलाकृतियाँ हैं। दूसरे में तिब्बत और नेपाल की कलाकृतियाँ। तीसरे में मिस्र और बैबिलोन की कला, चौथे में चीनी कला। पाँचवे में इस्लामी कला और छठे में फारस, ईराक, तुर्की, सीरिया, मिस्र तथा स्पेन की कलाकृतियाँ हैं। पाँच चित्रशालाएँ भारतीय संस्कृति तथा कला को प्रदर्शित करती हैं और एक में प्रागैतिहासिक काल सामग्रियाँ हैं। एक दूसरे कक्ष में मौर्य काल से लेकर 15वीं शताब्दी तक की कलात्मक सामग्री है। एक अन्य कक्ष बड़ौदा के इतिहास को प्रदर्शित करता है। इसी प्रकार औद्योगिक कला के लिये भी एक अलग कक्ष है जिसमें 12वीं शताब्दी के बाद की कला प्रदर्शित है। अंत में एक एक कक्ष बड़ौदा, गुजरात तथा महाराष्ट्र की कला के लिये रखा गया है।
15वीं शताब्दी से लेकर अट्ठारहवीं शताब्दी तक ती योरोपियन कला दो अलग कमरों में रखी गई हैं तथा 19वीं शताब्दी की कला के लिये अलग कमरा है। आधुनिक भारतीय चित्रकला के लिये भी दो कमरे हैं। एक कमरा ब्रूनर गैलरी और दूसरा रोरिक गैलरी के नाम पर भी है।
इस प्रकार बड़ौदा की यह चित्रशाला अत्यंत समृद्ध है और आधुनिक ढंग से सुसज्जित है। यह भारत की सबसे समृद्ध चित्रशाला कहीं जा सकती है, जो एशिया में अपने ढंग की अकेली है।
प्रिंस ऑव् वेल्स म्यूजियम, बंबई (1904)
[संपादित करें]यह संग्रहालय भी चित्रशाला की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह सरकार के प्रयास से 1904 में स्थापित हुआ था। 1905 में इंग्लैंड के प्रिंस ऑव् वेल्स के भारत आगमन के सिलसिले में इसका नामकरण हुआ। इसी समय से राज्य सरकार तथा नगरपालिका की ओर से उसे आर्थिक सहायता भी मिलने लगी। बाद में सर करीम भाई इब्राहीम तथा सर कावस जी जहाँगीर ने भी इसको आर्थिक सहायता दी1 इसकी इमारत प्रसिद्ध भवननिमार्णकर्ता श्री जी. विटेट के निर्देशन से बनी थी।
इसकी चित्रशाला में भारत, योरोप, चीन, जापान तथा एशिया की कलाकृतियाँ संग्रहीत हैं। इसको समृद्ध बनाने में श्री रतन टाटा तथा दोराब टाटा का विशेष हाथ रहा है। 1915 में बंबई सरकार ने इसके लिये बहुत सी कलाकृतियाँ खरीदीं जिनमें मुगल चित्र मुख्य थे। रतन टाटा के संग्रह के यूरोपीय, भारतीय, चीनी तथा जापानी चित्र भी इसे प्राप्त हुए। 1921 में दोराब टाटा ने इसे अपने संग्रह के यूरोपीय चित्र, मूर्तियाँ तथा भारतीय चित्र प्रदान किए। 1925 में सर अकबर हैदरी ने अपने भारतीय चित्र प्रदान किए जिनमें अजंता की अनुकृतियाँ भी थीं। बाद में उनके संग्रह के दक्खिनी कलम के चित्र भी इस चित्रशाला को प्राप्त हुए। 1928 में बंबई राज्य ने भी अपनी सारी कलात्मक सामग्री इसे प्रदान कर दी।
मद्रास की राष्ट्रीय चित्रशाला (1951)
[संपादित करें]राजकीय संग्रहालय मद्रास के द्वारा ही विक्टोरिया टेक्निकल इंस्टिट्यूट के विक्टोरिया मेमोरियल भवन में स्थापित की गई है। इसका उद्घाटन पं॰ जवाहरलाल नेहरु ने 1951 में किया था। इसमें धातु, हाथीदाँत तथा लकड़ी की कला के साथ साथ वस्त्रकला के भी नमूने हैं1 चित्रशाला में मुगल, राजपूत, दक्खिनी, तंजोर तथा मैसूर शैलियों के चित्र हैं। इनके अतिरिक्त राजा रविवर्मा तथा 20वीं सदी के कतिपय प्रसिद्ध कलाकारों के चित्र हैं। चित्रशाला आधुनिक ढंग से सजाई गई है और प्रकाश की उत्तम व्यवस्था की गई है।
वाराणसी का भारत-कला-भवन (1920)
[संपादित करें]भारत के उन समृद्ध संग्रहालयों में से एक है जो केवल एक व्यक्ति के अथक परिश्रम, लगन तथा कलाप्रियता के कारण ही स्थापित हो सका और आज इस देश की अमूल्य कलानिधि बन गया है। इसके संस्थापक है काशी के पुराने रईस, साहित्यसेवी तथा कलाप्रेमी श्री राय कृष्णदास। अध्यक्ष थे गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर। पहले यह एक बहुत छोटे किराए के मकान में स्थापित हुआ था और बाद में काशी की साहित्यिक संस्था नागरीप्रारिणी सभा में इसे स्थान मिला जहाँ प्राय: 25 वर्षों तक इस संग्रहालय की चतुर्दिक समृद्धि होती रही। इसका विस्तार बहुत अधिक हो जाने पर 1950 में सभा ने इसे काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी को हस्तांतरित कर दिया।
कलाभवन को बाद में काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने और भी समृद्ध कर दिया। इसके लिये अलग से 25 लाख रुपए की लागत से एक विशाल भवन निर्मित हुआ जिसका शिलान्यास पं॰ जवाहरलाल नेहरु ने किया था। इसे आधुनिक ढंग से सजाया गया है। इस संस्था को आरंभ से ही महात्मा गांधी, पं॰ जवाहरलाल नेहरु, डॉ॰ राजेंद्रप्रसाद तथा डॉ॰ भगवानदास ऐसे देशरत्नों का आशीर्वाद प्राप्त था और इसी बल पर यह संस्था आज इतनी प्रगति कर सकी है।
संग्राहालय में कुल 7 विभाग हैं :
- 1- प्रागैतिहासिक विभाग, 2- भूमि विभाग, 3- चित्र विभाग,
- 4- ललित कला विभाग, 5- वसन विभाग, 6- बृहत्तर भारत विभाग तथा 7- मुद्रा विभाग।
इस संग्रहालय की चित्रशाला मध्यकालीन चित्रकला की दृष्टि से भारत में अग्रगण्य है। इसके अतिरिक्त यह भारतीय चित्रकला की सभी शैलियों से परिपूर्ण है, जैस, 11वीं 12वीं सदी की पालकालीन चित्रकला, मुगल चित्रकला, राजस्थानी चित्रकला, मालवा, मेवाड़, गुजरात, मारवाड़, किशनगढ़, बूँदी, नाथद्वारा, जयपुर एवं बुंदेलखंड की कला, पहाड़ी चित्रकला, दक्खिनी शैली, अपभ्रंश शैली, कंपनी शैली, आधुनिक बंगाल शैली, जामिनी राय की कला, निकोलस रोरिक की कला तथा आधुनिक शैली के भारतीय चित्र इत्यादि।
भारत के अन्य कला संग्रहालय तथा चित्रशालाएँ
[संपादित करें]आंध्र प्रदेश
[संपादित करें](1) हैदराबाद संग्रहालय (1930)- इसमें अजंता तथा एलोरा की अनुकृतियाँ, लघुचित्र (मिनिएचर्स), आधुनिक चित्र तथा मूर्तिकला के अच्छे नमूने हैं।
(2) सालारजंग संग्रहालय (1951) की भारतीय चित्रशाला में राग रागनियों के चित्र, काँगड़ा तथा राजपूत चित्र, दक्खिनी चित्र तथा आधनिक भारतीय चित्र हैं। यह भी भारत का अत्यंत समृद्ध संग्रहालय है।
इसके अतिरिक्त निम्नलिखित भारतीय चित्रशालाएँ हैं :
(3) मदनपल्ली की चित्रशाला (1934)
(4) राजामुंद्री की चित्रशाला (1928)
(5) तिरुपति की चित्रशाला (1950)
बिहार प्रदेश
[संपादित करें]1. दरभंगा में चंद्रधारी संग्रहालय (1956)
2. नालंदा में नालंदा संग्रहालय (1917)
3. पटना में पटना संग्रहालय (1917)
गुजरात
[संपादित करें]1. श्री भवानी संग्रहालय, औंध (1938)- इसमें जयपुर, मुगल, राजपूत, काँगड़ा, हिमालय प्रदेश, गढ़वाल, पंजाब, बीजापुर, महाराष्ट्र, नेपाल, आधुनिक बंगाल, आधुनिक भारतीय, अजंता, सितन्नवासल तथा यूरोपीय शैली के चित्र हैं।
2. राजकोट का वाटसन संग्रहालय (1888)
3. साबरमती (अहमदाबाद) में गाँधी स्मारक संग्रहालय (1949)
4. सूरत में सरदार वल्लभभाई पटेल संग्रहालय (1890)
5. वल्लभ विद्यानगर का कलासंग्रहालय (1949)
6. हिमाचल प्रदेश में भूरिसिंह संग्रहालय (1908)
केरल
[संपादित करें]1. केरल की चित्रशाला (1938)
2. त्रिवेंद्रम में राजकीय चित्रशाला (1935)
मध्य प्रदेश
[संपादित करें]1. नागपुर का सेंट्रल संग्रहालय (1863)
2. इंदौर का सेंट्रल संग्रहालय (1928)
3. ग्वालियर का संग्रहालय (1922)
4. नवगंज में राजकीय संग्रहालय (1937)
5. राजपुर में महंत धासीदास संग्रहालय (1875)
तमिलनाडु
[संपादित करें]1. फोर्ट सेंट जार्ज संग्रहालय (1948)
2. राष्ट्रीय चित्रशाला (1861)
3. पुदुक्कोटै का राजकीय संग्रहालय (1910)
4. तंजोर की चित्रशाला (1153)
5. मैसूर में बँगलोर संग्रहालय (1866)
6. बीजापुर संग्रहालय (1912)
7. चित्रदुर्ग का संग्रहालय (1951)
8. मँगलोर की चित्रशाला (1957)
राजस्थान
[संपादित करें]1. अजमेर का राजपूताना संग्रहालय (1908)
2. अलवर का राजकीय संग्रहालय (1940)
3. भरतपुर का राजकीय संग्रहालय (1944)
4. बीकानेर का गंगा संग्रहालय (1937)
5. बूँदी का संग्रहालय (1942)
6. जयपुर का संग्रहालय (1876)
7. कोटा का संग्रहालय (1944)
उत्तर प्रदेश
[संपादित करें]1. इलाहाबाद का संग्रहालय (1931)
2. कालपी का हिंदीभवन संग्रहालय (1950)
3. लखनऊ का राजकीय संग्रहालय (1863)
4. वाराणसी का भारत-कला-भवन (1920)
महाराष्ट्र
[संपादित करें]1. प्रिंस आव वेल्स संग्रहालय, बंबई (1855)।
2. राजवादे संग्रहालय, धूलिया (1932)।
3. कोल्हापुर संग्रहालय, कोल्हापुर (1946)।
4. जामनगर संग्रहालय, जामनगर (1946)
अन्यान्य
[संपादित करें]- उड़ीसा का राजकीय संग्रहालय, भुवनेश्वर (1932)
- पंजाब में पटियाला का प्रांतीय संग्रहालय (1948)
- शिमला की चित्रशाला (1947)