भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद
संक्षेपाक्षर | आई.सी.एम.आर |
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प्रकार | व्यावसायिक संगठन |
मुख्यालय | नई दिल्ली |
सेवित क्षेत्र |
भारत |
सचिव एवं महानिदेशक |
डॉ॰राजीव बहल |
जालस्थल | www.icmr.nic.in |
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आई.सी.एम.आर), नई दिल्ली, भारत में जैव-चिकित्सा अनुसंधान हेतु निर्माण, समन्वय और प्रोत्साहन के लिए शीर्ष संस्था है। यह विश्व के सबसे पुराने आयुर्विज्ञान संस्थानों में से एक हैं। इस परिषद को भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त होती है। इसका मुख्यालय रामलिंगस्वामी भवन, अंसारी नगर, नई दिल्ली में स्थित है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री परिषद के शासी निकाय के अध्यक्ष हैं। जैवआयुर्विज्ञान के विभिन्न विषयों के प्रतिष्ठित विशेषज्ञों की सदस्यता में बने एक वैज्ञानिक सलाहकार बोर्ड द्वारा इसके वैज्ञानिक एवं तकनीकी मामलों में सहायता प्रदान की जाती है। इस बोर्ड को वैज्ञानिक सलाहकार दलों, वैज्ञानिक सलाहकार समितियों, विशेषज्ञ दलों, टास्क फोर्स, संचालन समितयों, आदि द्वारा सहायता प्रदान की जाती है, जो परिषद की विभिन्न शोध गतिविधियों का मूल्यांकन करती हैं और उन पर निगरानी रखती हे। महानिदेशक, परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष हैं तथा वे स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग के सचिव भी हैं। उन्हें वित्तीय सलाहकार और वैज्ञानिक एवं प्रशासनिक प्रभागों के अध्यक्षों का सहयोग प्राप्त है।
इतिहास
[संपादित करें]भारत में आयुर्विज्ञान अनुसंधान को वित्तीय सहायता प्रदान करने और समन्वय स्थापित करने के विशेष उद्देश्य के साथ भारत सरकार द्वारा वर्ष 1911 में 'इंडियन रिसर्च फण्ड एसोसिएशन' की स्थापना की गई थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इसके संगठन और इसकी गतिविधियों में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए। वर्ष 1949 में इसके कार्यों में कापी विस्तार के साथ इसका नाम 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद' (आई सी एम आर) कर दिया गया।
कार्य
[संपादित करें]परिषद की शोध प्राथमिकताएं राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राथमिकताओं के अनुरूप हैं जिनमें साम्मिलित हैं - संचारी रोगों पर नियंत्रण और उनका चिकित्सा प्रबन्ध, प्रजनन क्षमता नियंत्रण, मातॄ एवं शिशु स्वास्थ्य, पोषणजन्य विकारों का नियंत्रण, स्वास्थ्य सुरक्षा वितरण हेतु वैकाल्पिक नीतियों का विकास, पर्यावरणीय एवं व्यवसायिक स्वास्थ्य समस्याओं को रोकना, कैंसर, हृदवाहिकीय रोगों, अंधता, मधुमेह तथा चयापचय एवं रुधिर विकारों जैसे प्रमुख असंचारी रोगों पर अनुसंधान, मानसिक स्वास्थ्य अनुसंधान और औषध अनुसंधान (पारम्परिक औषधियों सहित)। ये सारे प्रयास रोग के पूर्ण भार को घटाने और आबादी के स्वास्थ्य एवं कल्याण को बढ़ावा देने को ध्यान में रखते हुए किए जा रहे हैं।
परिषद इंट्राम्युरल (परिषद के संस्थानों द्वारा सम्पन्न) और एकक़्स्ट्राम्युरल (परिषद से असम्बद्ध संस्थानों द्वारा सम्पन्न) अनुसंधान के माध्यम से देश में जैवआयुर्विज्ञान शोध को बढ़ावा देती है।
वर्तमान में इंट्राम्युरल शोध देश भर में स्थित 21 स्थाई शोध संस्थानों/केन्द्रों और 6 क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान केन्द्रों के माध्यम से किए जा रहे हैं। परिषद के स्थाई संस्थान क्षयरोग, कुष्ठरोग, हैजा एवं अतिसारीय रोगों, एड्स सहित विषाणुज रोगों, मलेरिया, कालाजार, रोगवाहक नियंत्रण, पोषण, खाद्य एवं औषध विषविज्ञान, प्रजनन, प्रतिरक्षा रुधिरविज्ञान, अर्बुदविज्ञान, आयुर्विज्ञान सांख्यिकी, आदि विशिष्ट क्षेत्रों में शोधरत हैं। इसके अलावा क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केन्द्रों द्वारा क्षेत्रीय स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने से संबंद्ध शोध किए जा रहे हैं, साथ-साथ देश के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों मे शोध क्षमताओं को तैयार करना अथवा उन्हें सुदृढ बनाना भी उनका उद्देश्य है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद जिन माध्यमों से एक्स्ट्राम्युरल अनुसंधान को बढ़ावा देती है उनमें सम्मिलित हैं-
- (1) मेडिकल कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद से गैर-संबद्ध अन्य शोध संस्थानों के चयनित विभागों में मौजूदा विशेषज्ञता और मूलभूत ढांचे की सहायता से शोध के विभिन्न क्षेत्रों में उन्नत अनुसंधान केंद्रों की स्थापना करना;
- (2) टास्क फोर्स अध्ययन जिनमें स्पष्ट रूप से परिभाषित लक्ष्यों, विशिष्ट समय अवधियों, मानकीकृत और समरूप विधियों तथा बहुधा बहुकेंद्रीय ढांचे के साथ एक समयबद्ध, उद्देश्योन्मुख प्रयास को बल दिया जाता है; तथा
- (3) देश के विभिन्न भागों में स्थित परिषद से असंबद्ध अनुसंधान संस्थानों में वैज्ञानिकों से वित्तीय सहायता के लिए प्राप्त आवेदनों के आधार पर ओपेन एन्डेड अनुसंधान।
भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान परिषद द्वारा जैवआयुर्विज्ञान अनुसंधान में मानव संसाधन विकास को जिन विभिन्न योजनाओं के माध्यम से बढ़ावा दिया जाता है उनमें सम्मिलित हैं-
- (1) जूनियर एवं सीनियर फेलोशिप्स और रिसर्च एसोसिएट्स के रूप में रिसर्च फेलोशिप्स;
- (2) अल्पकालिक विजिटिंग फेलोशिप्स (जिसके अन्तर्गत वैज्ञानिकों को भारत में अन्य प्रतिष्ठित अनुसंधान संस्थानों से उन्नत शोध तकनीकों को सीखने का अवसर मिलता है);
- (3) अल्पकालिक रिसर्च स्टूडेण्टशिप्स (अण्डरग्रेजुएट मेडिकल छात्रों को शोध विधियों और तकनीकों से परिचित कराने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए);
- (4) भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा विभिन्न प्रशिक्षण कार्यक्रमों एवं कार्यशालाओं का संचालन; तथा
- (5) विदेशों में सम्मेलनों में भाग लेने हेतु यात्रा के लिए वित्तीय सहायता।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान परिषद द्वारा सेवा निवृत्त वैज्ञानिकों/शिक्षकों को इमेरिटस साइंटिस्ट का सम्मान प्रदान किया जाता है, जिससे वे जैवआयुर्विज्ञान से सम्बंधित विशिष्ट विषयों पर शोध कार्य कर सकें अथवा जारी रख सकें।
प्रभाग
[संपादित करें]प्रत्येक प्रभाग/इकाई के लिए निर्धारित कार्यों का विवरण निम्न है –
मौलिक आयुर्विज्ञान प्रभाग
[संपादित करें]यह प्रभाग परिषद के तीन संस्थानों यथा- नई दिल्ली स्थित विकृतिविज्ञान संस्थान, मुंबई स्थित राष्ट्रीय प्रतिरक्षा रुधिरविज्ञान संस्थान, तथा बेलगांव स्थित क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसन्धान केन्द्र के सम्बन्ध में प्रशासनिक प्रभाग के रूप में कार्य करता है। यह देश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों और अनुसंधान संस्थानों में एक्स्ट्राम्युरल अनुसंधान को वित्तीय सहायता प्रदान करके जीवरसायन, कोशिका एंव आण्विक जैविकी, जीनोमिक्स एवं आण्विक चिकित्साविज्ञान, भेषजगुणविज्ञान, पारंपरिक चिकित्सा और रुधिरविज्ञान के क्षेत्रों में भी अनुसंधान को प्रोत्साहन देता है।
जानपदिक रोगविज्ञान एवं संचारी रोग प्रभाग
[संपादित करें]यह प्रभाग परिषद के 17 संस्थानों/केंद्रों के संबंध में प्रशासनिक प्रभाग के रूप में कार्य करता है। इन संस्थानों में सम्मिलित हैं – मदुरई स्थित आयुर्विज्ञान कीटविज्ञान अनुसंधान केंद्र, मुंबई स्थित आंत्रविषाणु अनुसंधान केंद्र, पुणे स्थित माइक्रोबियल कनटेनमेंट कॉपलेक्स, पुणे स्थित राष्ट्रीय एड्स अनुसंधान संस्थान, कोलकाता स्थित राष्ट्रीय हैज़ा तथा आंत्ररोग संस्थान, चेन्नई स्थित राष्ट्रीय जानपदिक रोगविज्ञान संस्थान, नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान तथा देश के विभिन्न भागों में स्थित इसकी 10 फील्ड यूनिट्स, नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान सांख्यिकी अनुसंधान संस्थान, पुणे स्थित राष्ट्रीय विषाणुविज्ञान संस्थान, आगरा स्थित राष्ट्रीय जालमा कुष्ठ एवं अन्य माइक्रोबैक्टीरियल रोग संस्थान, भुवनेश्वर स्थित क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र, पोर्ट ब्लेयर स्थित क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र, जबलपुर स्थित क्षेत्रीय जनजातीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र, पटना स्थित राजेन्द्र प्रसाद स्मारक आयुर्विज्ञान अनुसंधान संस्थान, चेन्नई स्थित यक्ष्मा अनुसंधान केंद्र, चेन्नई स्थित यक्ष्मा अनुसंधान केंद्र की जानपदिक रोगविज्ञान इकाई, पुडुचेरी स्थित रोगवाहक नियंत्रण अनुसंधान केंद्र तथा कोलकाता स्थित आईसीएमआर विषाणु केन्द्र।
इसके द्वारा देश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों और अनुसन्धान संस्थानों में एक्स्ट्राम्युरल अनुसंधान को वित्तीय सहायता प्रदान करके जीवाणुज रोगों, अतिसारीय रोगों, प्रकोपों के अध्ययन, अन्य सूक्ष्मजीवी संक्रमणों, रोगवाहक जैविकी, विषाणुज रोगों के क्षेत्रों में भी अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाता है।
असंचारी रोग प्रभाग
[संपादित करें]यह प्रभाग परिषद के पांच संस्थानों/केंद्रों के संबंध में प्रशासनिक प्रभाग के रूप में कार्य करता है। इन संस्थानों में सम्मिलित हैं – जोधपुर स्थित मरूस्थलीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र, नोएडा स्थित कौशिकी एवं निवारक अर्बुदशास्त्र संस्थान, अहमदाबाद स्थित राष्ट्रीय व्यावसायिक स्वास्थ्य संस्थान, भोपाल स्थित राष्ट्रीय पर्यावरणी स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान तथा डिब्रूगढ़ स्थित क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र।
इस प्रभाग द्वारा देश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों और अनुसंधान संस्थानों में एक्स्ट्राम्युरल अनुसंधान को वित्तीय सहायता प्रदान करके अर्बुदविज्ञान, हृद्वाहिकीय रोगों, मधुमेह, मानसिक स्वास्थ्य, तंत्रिकाविज्ञान, जराविद्या, विकलांग विद्या, अपंगता, आघात, मुखीय स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं व्यावसायिक स्वास्थ्य के क्षेत्रों में अनुसंधान के साथ-साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र में शोध गतिविधियों को भी बढ़ावा दिया जाता है। यह प्रभाग इन क्षेत्रों में अन्य देशों के साथ अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी कार्यक्रमों का भी संचालन करता है।
प्रजनन स्वास्थ्य और पोषण प्रभाग
[संपादित करें]यह प्रभाग परिषद के पांच संस्थाओं/केन्द्रों के संबंध में प्रशासनिक प्रभाग के रूप में कार्य करता है। ये संस्थान/केन्द्र हैं- खाद्य औषध एवं विषविज्ञान अनुसंधान केन्द्र, हैदराबाद, आई सी एम आर आनुवंशिक अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई, राष्ट्रीय प्रयोगशाला जंतुविज्ञान केन्द्र, हैदराबाद, राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदाराबाद, राष्ट्रीय प्रजनन स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान, मुम्बई । इसके अलावा यह प्रभाग पोषण एवं नवजात स्वास्थ्य पर दो उन्नत अनुसंधान केन्द्रों और 31 मानव प्रजनन स्वास्थ्य केन्द्रों के एक नेटवर्क से भी प्रशासनिक रूप में संबद्ध है।
इसके द्वारा देश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों और अनुसंधान संस्थानों में एक्स्ट्राम्युरल अनुसंधान को वित्तीय सहायता प्रदान करके प्रजनन क्षमता नियमन, बंध्यता और प्रजनन विकारों, पूर्व चिकित्सीय प्रजनन ओर आनुवंशिक विषविज्ञान, अस्थिसुषिरता, संरचनात्मक जैविकी, मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, किशोरवय प्रजनन स्वास्थ्य, गर्भनिरोध, पोषण, कुपोषण एवं संक्रमण, ह्रासी रोगों, खाद्य जीवरसायन तथा खाद्य एवं औषध विषविज्ञान के क्षेत्रों में भी अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाता है।
प्रकाशन एवं सूचना प्रभाग
[संपादित करें]यह प्रभाग प्रकाशन (हिन्दी सहित) मीडिया से सम्पर्क स्थापित करने सहित सूचना एवं संचार के क्षेत्रों में कार्यरत है । इसके अलावा यह प्रभाग परिषद के पुस्तकालय और सूचना नेटवर्क, जैव सूचनाविज्ञान की गतिविधियों और परिषद द्वारा प्रकाशित शोध पत्रों के विज्ञानमितीय अध्ययनों से भी संबद्ध है । प्रमुख प्रकाशनों में मासिक इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च, आईसी एमआर बुलेटिन, आईसीएमआर पत्रिका और परिषद की वार्षिक रिपोर्ट (वार्षिक प्रतिवेदन) सम्मिलित हैं। इस प्रभाग के अन्तर्गत जैव सूचना विज्ञान केन्द्र द्वारा आई.सी.एम.आर. वेबसाईट पर सूचना उपलब्ध कराई जाती है।
इस प्रभाग के अंतर्गत बौद्धिक सम्पदा अधिकार यूनिट द्वारा आई सी एम आर से समर्थित सभी अनुसंधान (इंट्राम्युरल/एक्स्ट्राम्युरल) के संबंध में बौद्धिक सम्पदा अधिकार संबद्ध पहलुओं पर तकनीकी, वैधानिक और अन्य सभी सहायता तरह की उपलब्ध कराई जाती है।
स्वास्थ्य प्रणाली अनुसंधान सेल
[संपादित करें]इस सेल द्वारा लोगों की स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करने के लिए भारतीय स्वास्थ्य प्रणालियों को सुदृढ़ बनाने और उन्हें बेहतर बनाने के उद्देश्य से अनुसंधान को सहायता प्रदान की जाती है।
ट्रांसलेशनल अनुसंधान यूनिट
[संपादित करें]इस यूनिट द्वारा आई सी एम आर के संस्थानों/केन्द्रों/इकाइयों में स्थित 25 ट्रांसलेशनल अनुसंधान कक्षों की गतिविधियों को सहायता प्रदान की जाती है। इन गतिविधियों में नियतकालिक पहचान, ऐसी प्रौद्योगिकियों की नियतकालिक पहचान, उनका विकास और परीक्षण सम्मिलित है, जिनमें राष्ट्रीय स्वास्थ्य सुरक्षा कार्यक्रमों/चिकित्सीय व्यवहार में परिवर्तित किए जाने की संभाव्यता हो।
सामाजिक एवं व्यवहारात्मक अनुसंधान यूनिट
[संपादित करें]इस यूनिट द्वारा सामाजिक एवं व्यवहारात्मक अनुसंधान के क्षेत्र में टास्क फोर्स अध्ययनों/परियोजनाओं को वित्तीय सहायता प्रदान करने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। हाल के दिनों में जिन क्षेत्रों को सम्मिलित किया गया है, वे हैं – किशोवय का प्रजनन स्वास्थ्य और यौन व्यवहार, महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य से संबद्ध मामले, एचआईवी/एड्स और स्वास्थ्य सेवा अनुसंधान।
अन्तर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रभाग
[संपादित करें]यह प्रभाग विशिष्ट समझौतों/सहमति ज्ञापनों के तत्वावधान में भारत और अन्य देशों की/अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों के बीच जैवआयुर्विज्ञान अनुसंधान में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को सुगम बनाता है और उसका समन्वयन करता है।
अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ हस्ताक्षर युक्त पारस्परिक समझौतों के अंतर्गत सहयोग के पहचाने गए क्षेत्रों में संयुक्त रूप से वैज्ञानिक बैठकों, सेमिनार, कार्यशालाओं और संगोष्ठियों के आयोजन तथा वैज्ञानिक सूचना के आदान-प्रदान के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य को बढ़ावा दिया जाता है।
प्रशासन प्रभाग
[संपादित करें]वरिष्ठ उपमहानिदेशक की अध्यक्षता में यह प्रभाग परिषद के सभी कैडर्स यथा-स्वास्थ्य अनुसंधान वैज्ञानिक, तकनीकी, प्रशासनिक और वित्त तथा लेखा; परिषद के कर्मचारियों की सेवा स्थितियों से जुड़े मामलों, राजभाषा विभाग संबंधी मामलों, आरक्षित वर्गों के कल्याण के प्रबंधन तथा संसद संबंधी कार्य के समन्वयन के लिए उत्तरदायी है।
वित्त एवं लेखा प्रभाग
[संपादित करें]यह प्रभाग परिषद के वित्त/बजट के नियंत्रण, लेखा और आन्तरिक लेखा-परीक्षण के अनुरक्षण, परिषद के वार्षिक रसीद एवं भुगतान लेखा, आय एवं व्यय लेखा तथा बैलेंस शीट को तैयार करने तथा परिषद के फण्ड के निवेश संबंधी कार्यों के लिए उत्तरदायी है।
जनशक्ति विकास प्रभाग
[संपादित करें]यह प्रभाग विभिन्न संस्थानों में जैवसांख्यिकी सहित लाइफ साइंसेज़ और समाज विज्ञान में पीएचडी करने हेतु जूनियर रिसर्च फेलोशिप उपलब्ध कराने के लिए अभ्यर्थियों के चयन हेतु राष्ट्रीय स्तर पर एक परीक्षा का संचालन करता है।
औषधीय पादप यूनिट
[संपादित करें]यह यूनिट औषधीय पादपों के क्षेत्र में पुस्तकों/मोनोग्राफ्स की श्रृंखला के प्रकाशन से संबद्ध है। इन प्रकाशनों में सम्मिलित हैं – रिव्यूज़ ऑन इंडियन मेडिसिनल प्लांट्स; क्वालिटी स्टैण्डर्ड्स ऑफ इंडियन मेडिसिनल प्लांट्स, मोनोग्राफ्स ऑफ डिसीज़ेज़ ऑफ पब्लिक हेल्थ इंपॉर्टेंस।
अन्य गतिविधियों में सम्मिलित हैं – पादप-संघटकों के चिन्हक को तैयार करना तथा भंडार का विकास, औषधीय पादपों में भारी धातुओं और चिरस्थाई पेस्टीसाइड्स (नाशकजीवनाशी तत्वों) का विश्लेषण तथा चयनित आयुर्वेदिक पादप औषधियों की पहचान को स्थापित करना।