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भारतमित्र

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भारतमित्र सन 1878 में कलकता से प्रकाशित एक हिन्दी समाचार पत्र था। भारत मित्र कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से प्रकाशित होने वाला समाचार पत्र था। भारतमित्र के पहले वैतनिक सम्पादक पण्डित हरमुकुन्द शास्त्री थे, जिन्हें लाहौर से बुलाया गया था। यह पत्र लम्बे समय (37 वर्षों) तक निरन्तर चलता रहा। राजा, प्रजा, राज्य-व्यवस्था, वाणिज्य, भाषा और सबके ऊपर देशहित की चिंता-चेतना जगानेवाला 'भारतमित्र' एक तेजस्वी राजनीतिक पत्र के रूप में चर्चित और विख्यात हुआ। 1899 ई॰ में बालमुकुन्द गुप्त इसके सम्पादक हुए और 18 सितंबर,1907 को अपने गाँव गुड़ियानी(हरियाणा) में जाते हुए दिल्ली रेलवे स्टेशन के सामने स्थित एक धर्मशाला में उनकी असमय मृत्यु तक इस अख़बार के संपादक रहे। भारतमित्र को कचहरियों में हिन्दी प्रवेश आन्दोलन का मुखपत्र कहा जाता है।

'भारतमित्र' का स्वदेशी के प्रति विशेष आग्रह था। समग्र जातीय चेतना का विकास इसका लक्ष्य था। स्मरणीय है, समाचार-पत्र की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करनेवाला वर्नाक्युलर प्रेस ऐक्ट 14 मार्च, 1878 ई. को लागू हुआ था। उस संदर्भ में 17 मार्च, 1878 के 'भारतमित्र' की संपादकीय टिप्पणी की भाषा विपत्ति को आहूत करने वाली भाषा है। उस समय राजा तक प्रजा के कष्ट तथा नाना प्रकार के अभाव की जानकारी पहुँचाने वाले सशक्त अभियोग-माध्यम-पत्रों की आजादी की माँग सरकारी दृष्टि से कदाचित् सबसे बड़ा अपराध था, किंतु राष्ट्रवाद और देश-प्रीति का यही तकाजा था। 'भारतमित्र' संपादक के सामने ब्रिटिश सरकार की नीति स्पष्ट थी और उसके प्रतिरोध में जागरूक कौशल से आबोहवा तैयार करनी थी। शायद यही कारण है कि 'भारतमित्र' की संपादकीय टिप्पणी में राजभक्ति का मूलम्मा भी दिखाई पड़ता है।[1]

सन्दर्भ

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