भट्ट भास्कर
भट्ट भास्कर आचार्य सायण के पूर्ववर्ती वेद-भाष्यकार थे। इन्होंने कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय संहिता, तैत्तिरीय ब्राह्मण एवं तैत्तिरीय आरण्यक पर भाष्य लिखा है। इन्होंने अपने भाष्य को 'ज्ञानयज्ञ' नाम दिया है।
परिचय
[संपादित करें]भट्ट भास्कर उज्जैन के निवासी थे। ये कौशिक गोत्रीय तेलुगू ब्राह्मण थे। इनके शिवोपासक होने का अनुमान किया गया है।[1] ये आचार्य सायण एवं देवराज यज्वा के भी पूर्ववर्ती थे। सायण के पूर्ववर्ती भाष्यकार आत्मानन्द ने भी अपने भाष्य में भट्ट भास्कर का उल्लेख किया है। तेरहवीं शताब्दी के विद्वान वेदाचार्य ने अपने 'सुदर्शन मीमांसा' नामक ग्रंथ में भट्ट भास्कर का उल्लेख किया है और इनके वेद-भाष्य 'ज्ञानयज्ञ' से परिचय भी प्रकट किया है। बारहवीं शताब्दी के वैदिक विद्वान हरदत्त ने 'एकाग्नि काण्ड' के अपने भाष्य में भट्ट भास्कर के भाष्य से सहायता ली है। इन सब आधारों पर इनका समय ग्यारहवीं सदी में माना गया है।[2] तैत्तिरीय संहिता पर लिखा गया इनका 'ज्ञानयज्ञ' नामक भाष्य अत्यंत विद्वतापूर्ण माना जाता है। इसमें प्रमाण रूप से अनेक वैदिक ग्रंथ उद्धृत किये गये हैं तथा लुप्त वैदिक निघण्टुओं से भी प्रमाण दिये गये हैं। उन्होंने अपने भाष्य में आध्यात्मिकता को भी महत्त्व दिया है। इन्होंने एक-एक शब्द के अनेक अर्थ किये हैं। वैदिकी स्वर-प्रक्रिया का इन्हें उत्तम ज्ञान था।[1]
कृतियाँ
[संपादित करें]- तैत्तिरीयसंहिता-ज्ञानयज्ञाख्य भाष्य (१२ भागों में, द गवर्नमेंट ब्रांच प्रेस, मैसूर से १८९४-१८९८ ई॰ में प्रकाशित)
- तैत्तिरीयब्राह्मणम्-ज्ञानयज्ञाख्य भाष्य (४ भागों में, द गवर्नमेंट ब्रांच प्रेस, मैसूर से १९०८-१९१३ ई॰ में प्रकाशित)
- तैत्तिरीयारण्यकम्-ज्ञानयज्ञाख्य भाष्य (२ भागों में, द गवर्नमेंट ब्रांच प्रेस, मैसूर से १९००-१९०२ ई॰ में प्रकाशित)