भगवती देवी शर्मा

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भगवती देवी शर्मा
जन्म २० सितम्बर १९२६
आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत
मौत 19 सितम्बर १९९४(१९९४-09-19) (उम्र 67)
शान्तिकुञ्ज्, हरिद्वार, भारत
राष्ट्रीयता भारतीय
जीवनसाथी श्रीराम शर्मा अचार्य
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भगवती देवी शर्मा एक समजिक कर्यकर्त्री तथा अखिल विश्व गायत्री परिवार की सह-संस्थापिका थीं। उन्होने समजिक उत्थान तथा नारी जागरण के अनेक कर्यक्रमों का सञ्चालन किया तथा अश्वमेध यज्ञों की श्रृंखला का सफल आयोजन किया। उन्होंने चारों वेदों का भाष्य भी किया।

आरम्भिक जीवन[संपादित करें]

भगवती देवी शर्मा का जन्म २० सितम्बर सन १९२६ को आगरा में हुआ था। वह जसवन्तराव शर्मा तथा रामप्यारी शर्मा की सबसे छोटी पुत्री थीं। चार वर्ष की आयु में उनकी माता का देहान्त हो गया था। सन १९४३ में उनका विवाह पं. श्रीराम शर्मा आचार्य से हुआ।[1] श्रीराम आगरा जनपद के ग्राम आंवलखेड़ा के निवासी थे तथा भारतीय स्वाधीनता स्ंग्राम के सक्रिय सदस्य थे। उन दिनों वे मथुरा से अखण्ड ज्योति पत्रिका का प्राकाशन कर रहे थे।

मथुरा[संपादित करें]

विवाह के पश्चात भगवती देवी अखण्ड ज्योति संस्थान मथुरा में रहकर अखण्ड ज्योति के प्रकाशन कार्य में हाथ बंटाने लगीं। वे पाठकों के पत्रों का उत्तर देने में भी सहयोग किया करती थीं। पाठकों की संख्या बढने के साथ ही संस्थान में आगन्तुकों की संख्या भी बढ़ने लगी। आध्यात्मिक मार्गदर्शन के लिये शिविर आयोजित किये जाने हेतु आचार्य जी ने मथुरा वृन्दावन मार्ग पर भूमि खरीदी। जब आचार्य जी को निर्माण के लिये धन की कमी हुई तो भगवती देवी ने अपने समस्त आभूषण समर्पित कर दिये। [2] १९५३ में गायत्री तपोभूमि नामक इस संस्थान में नियमित शिविर आरम्भ हो गये। यहां १९५८ में आयोजित सहस्र कुण्डीय गायत्री महायज्ञ के आयोजन के बाद गायत्री परिवार की गतिविधियों में तेजी से वृद्धि हुई तथा संगठन के सदस्यों ने भगवती देवी को माताजी के नाम से पुकारना आरम्भ कर दिया।[3] १९६० की हिमलय यात्रा के दौरान आचार्य जी ने गायत्री तपोभूमि की पूरी जिम्मेदारी भगवती देवी को सौंप दी।

शान्तिकुञ्ज[संपादित करें]

१९७१ में आचार्य जी ने गायत्री परिवार का मुख्यालय शान्तिकुञ्ज हरिद्वार में स्थापित किया तथा उच्चस्तरीय आध्यात्मिक साधना शिविर आयोजित किये। महिलाओं के शिविर की जिम्मेदारी भगवती देवी के पास थी। उन्होंने महिलाओं के कल्याण के लिये विभिन्न कार्यक्रम आरम्भ किये। १९९० में आचार्य जी के निधन के पश्चात भगवती देवी ने गायत्री परिवार का सञ्चालन अपने हाथ में ले लिया।[4] उन्होंने अखण्ड ज्योति के संपादन का कार्य किया[5] साथ ही आचार्य जी द्वारा किए गए चारों वेदों के भाष्यों का प्रकाशन भी किया।

देवसंस्कृति दिग्विजय[संपादित करें]

१९९२ में गायत्री जयन्ती के अवसर पर उन्होंने एक विशाल शपथ समारोह का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में देवसंस्कृति दिग्विजय अभियान की घोषणा की गयी। अभियान के अन्तर्गत समस्त विश्व में अश्वमेध यज्ञों की शृंखला आयोजित की गयी। इन यज्ञों में सामान्य विश्वास के विपरीत पशुओं की बलि नहीं चढ़ाई गयी तथा बिना किसी हिंसा के सम्पन्न किया गया। [6] पहला यज्ञ जयपुर में आयोजित हुआ। इसके बाद दो वर्षों तक भारत तथा अन्य देशों में विभिन्न स्थानों पर अश्वमेध यज्ञों का आयोजन हुआ। अपने बिगड़ते स्वास्थ्य के बावजूद भगवती देवी इन कर्यक्रमों में जाती रहीं। चित्रकूट में आयोजित यज्ञ १००८ कुण्डों का था जिसमें लगभग दस लाख लोगों ने भाग लिया। [7]
चित्रकूट अश्वमेध यज्ञ के बाद उनका स्वास्थ्य अधिक बिगड़ने लगा। १९ सितम्बर १९९४ को शान्तिकुञ्ज हरिद्वार में उनका निधन हुआ।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. 'Evolution of a Divine Mission: Chronological Compendium', in Hamsa Yoga: The Elixir of Self-Realization (Soham Sādhanā).
  2. ब्रह्मवर्चस (२०१०). महाशक्ति की लोकयत्रा. मथुरा: गायत्री तपोभूमि. पृ॰ 39.
  3. Daniel Philip Heifetz, 'From Gurudev to Doctor-Sahib: Religion, Science, and Charisma in the All World Gayatri Pariwar', Method & Theory in the Study of Religion, 30.3 (2018), 252-78 (p. 254 fn. 4), doi:10.1163/15700682-12341433.
  4. Lise McKean, Divine Enterprise: Gurus and the Hindu Nationalist Movement (Chicago: University of Chicago Press, 1996), p. 45 ISBN 0226560090.
  5. Annual Report of the Registrar of Newspapers for India (Ministry of Information and Broadcasting, Government of India, 1962), part 2 p. 423; Press in India (Office of the Registrar of Newspapers, 1992), part 2, vol. 2, p. 1323; Directory of Periodicals Published in India (Sapra and Sapra, 1994), vol. 3 p. 378.
  6. "देवस्ंस्कृति दिग्विजय अर्थात ऐतिहासिक अश्वमेध आयोजन". अखण्ड ज्योति. ५५ (९): ५३–५९. सितम्बर १९९२.
  7. Malik, Rajiv (June 1994). "Wow! One Million Join Vedic Rites". Hinduism Today.