ब्रिटेन की कृषि क्रांति

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ब्रिटेन में औद्योगिक क्रांति के पूर्व कृषि क्रांति हुई थी। 'कृषि क्रांति' से अभिप्राय है, कृषि उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि। 16वीं सदी से 18वीं सदी के बीच यूरोप में कृषि के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन हुए। खेतों की चकबंदी और बाड़बंदी की गई। कृषि के नए औजारों व नए तरीकों का आविष्कार हुआ। उत्पादन एवं मुनाफा बढ़ने लगा। परिणामस्वरूप कृषि में एक नया मोड़ आया, जिसे कृषि क्रांति कहते हैं। इंग्लैंड की कृषि क्रांति विश्व-इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना थी। कृषि क्रांति के अनेक आर्थिक, सामाजिक,सांस्कृतिक व राजनैतिक प्रभाव पड़े जिन्होंने यूरोप के इतिहास की दिशा ही बदल दी।

ब्रिटेन की इस कृषि आधारित व्यवस्था ने उसे दुनिया का पहला देश बनाया था जहाँ अकाल से मौत नहीं हुआ करती थी और ना होने दी जाती थी। ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति को कृषि क्रांति का ही परिणाम मानें तो कुछ भी गलत नहीं होगा। शायद 16वीं सदी में कृषि के आधार पर विकास और औद्योगिक क्रांति के बाद व्यापार से ब्रिटेन ने अगली शताब्दियों में दुनिया के अधिकांश हिस्से में राज किया।

ब्रिटेन के 17वीं और 18वीं सदी के इतिहास पर हाल में हुए शोध से यह बात सामने आई है कि वहाँ पर सामाजिक सुरक्षा वाली संस्थाओं का विकास आर्थिक विकास के बाद नहीं हुआ था बल्कि ये व्यवस्थायें वहाँ औद्योगिक क्रांति के कई शताब्दी पहले से ही मौजूद थीं।

कृषि क्रांति कोई आकस्मिक घटना नहीं थी, परिवर्तन धीरे-धीरे हुए। 1600 ईस्वी के बाद कृषि में परिवर्तन आरम्भ हो चुके थे परन्तु यह परिवर्तन बहुत धीमे थे। वास्तविक परिवर्तन 17वीं सदी के उत्तरार्द्ध में शुरू हुए। इस आधार पर अधिकांश विद्वान 17वीं, 18वीं सदी को कृषि क्रांति का काल मानते हैं।

यहाँ यह भी ध्यातव्य है कि अलग-अलग देशों में कृषि क्रांति का समय अलग-अलग रहा है। कृषि क्रांति सर्वप्रथम इंग्लैंड हुई। उसके पश्चात यह अन्य देशों के लिए उदाहरण बनी। इंग्लैंड में जहाँ कृषि क्रांति 1690 ईo – 1700 ईo के बीच हुई, वहीं रूस तथा स्पेन में कृषि क्रांति 1860 ईo – 1870 ईo के बीच हुई।

कृषि क्रांति के कारण[संपादित करें]

निम्नलिखित परिवर्तनों ने कृषि जगत में एक नए युग का सूत्रपात किया —

(1) बदल-बदलकर फसलें उगाना

फसलें अदल-बदल कर बोने की विधि ने कृषि क्रांति में महत्वपूर्ण योगदान दिया। टाउनशेड नामक एक व्यक्ति ने इस विधि की खोज की। टाउनशेड इंग्लैंड का निवासी था। उसने अपने खेतों में नए प्रयोग शुरू किए। उसने भूमि पर फसलों को बदल-बदलकर बोने का प्रयास किया। उसने शलगम को अधिक महत्व दिया। लोग उसे टर्निंप टाउनशेड कहने लगे। जल्दी ही यूरोप के अन्य देशों में भी बदल-बदल कर फसलें बोना लोकप्रिय हो गया।

(2) बीज बोने की मशीन

1701 ईस्वी में जेथ्रो टुल्ल (Jethro Tull ) ने एक मशीन का आविष्कार किया जिसे 'ड्रिल' कहा जाता था। इस मशीन द्वारा पंक्तियों में बीज बोए जा सकते थे। ड्रिल नालियाँ तैयार करती थी, बीज बोती थी और बीजों को ठीक प्रकार से मिट्टी से ढकती थी। इससे समय की बचत होती थी तथा फसल अच्छी होती थी।

जेथ्रो टूल ने खाद संबंधी प्रयोग भी किए तथा नाली व्यवस्था में भी सुधार किए। उसने इन सुझावों को ‘House Hoeing Husbandary’ नामक पुस्तक में लिपिबद्ध किया है

(3) बाड़बंदी

खेतों की चकबंदी और बाड़बंदी की जाने लगी। बाड़बंदी का अग्रदूत सर आर्थर यंग था जिसे नई कृषि का प्रवर्तक कहा जाता है। उसने अपने लेखों तथा भाषणों द्वारा कृषि में नए सिद्धान्त प्रसारित किए। उसने 1773 ईस्वी में कृषि बोर्ड की स्थापना की। वह इस बोर्ड का सचिव था। 1760 ईस्वी से 1800 ईस्वी तक सरकार ने लगभग 1500 बाड़बंदी अधिनियम पारित किए।

(4) पशुओं की नस्ल में सुधार

पशुओं की नस्ल में सुधार किया गया। बैकवेल ने भेड़ों की नस्ल में सुधार किया। उसने भेड़ों की न्यू लाइसेस्टर (New Leicester) नामक नस्ल का सुधार किया। अब भेड़ का वजन 40 पौंड अधिक हो गया तथा भेड़ों का स्वास्थ्य ठीक रहने लगा।

चार्ल्स कॉलिंग ने बैलों की नस्ल में सुधार किया। उसने बैलों की नई नस्ल ‘Dushs Short Horn’ का विकास किया।

(5) जनसंख्या वृद्धि

जनसंख्या वृद्धि भी कृषि क्रांति के उदय का एक प्रमुख कारण बनी। अधिक भूमि पर कृषि होने लगी लेकिन फिर भी खाद्य पदार्थों की मांग निरंतर बढ़ती रही तो कृषि में सुधार किया जाना आवश्यक हो गया। खाद्यान्न की अधिक मांग की पूर्ति के लिए कृषि में नई विधियों का प्रयोग किया जाने लगा। उन्नत किस्म के बीजों तथा उपकरणों का प्रयोग किया जाने लगा। फलतः कृषि उत्पादन में आशातीत वृद्धि हुई।

(6) उच्च मूल्य

जनसंख्या बढ़ने से कृषि उत्पादों की मांग बढ़ गई। मांग बढ़ने के कारण कृषि उत्पादों की कीमतें बढ़ने लगी जिससे कृषि सुधारों को प्रोत्साहन मिला। कृषि के क्षेत्र में अधिक निवेश होने लगा। किसान महंगे उपकरणों का प्रयोग करने लगे। इससे कृषि क्रांति को प्रोत्साहन मिला।

(7) सर रॉबर्ट वेस्टर्न की पुस्तक ‘डिसकोर्स ऑफ हसबेंड्री’

सर रॉबर्ट वेस्टर्न की पुस्तक ‘डिस्कोर्स ऑफ हसबेंडरी’ ने भी कृषि के क्षेत्र में क्रांति ला दी। उसने बताया कि भूमि को खाली रखने की आवश्यकता नहीं। उसने सुझाव दिया कि भूमि को खाली छोड़ने की बजाय शलगम और त्रिपत्रि घास से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाई जा सकती है। इससे पशुपालन बढ़ गया तथा साथ ही भूमि की उपजाऊ शक्ति भी बढ़ने लगी।

(8) आदर्श खेत

इंग्लैंड में कुछ लोगों ने आदर्श खेत बनाए। उन्होंने आधुनिक ढंग से कृषि की तथा उत्पादन को 10 गुना बढ़ा दिया। यह पूरे यूरोप के लिए एक उदाहरण बन गया। इंग्लैंड के सम्राट जॉर्ज तृतीय ने स्वयं खेती की। उसने विंडसर में आदर्श खेत की स्थापना की। इसीलिए जॉर्ज तृतीय को कृषक राजा कहा जाता है। उसके प्रयासों से इंग्लैंड में आदर्श के तैयार होने लगे। तत्पश्चात पूरे यूरोप में इसका अनुसरण होने लगा।

(9) अधिक भूमि पर कृषि

कृषि उत्पादों की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए अधिक से अधिक भूमि कृषि योग्य बनाई गई। युद्ध के समय नष्ट हुए खेतों को भी कृषि योग्य बनाया गया। यहाँ तक कि दलदल वाली भूमि में भी सुधार करके कृषि की जाने लगी। यह कार्य भी सर्वप्रथम इंग्लैंड में शुरू हुआ। तत्पश्चात यूरोप के अन्य देशों में इसका अनुसरण किया जाने लगा।

(10) भू-स्वामित्व में परिवर्तन

भू-स्वामित्व में परिवर्तन आया। भूमि बड़े-बड़े भूमि-पतियों के हाथों में चली गई। ये बड़े-बड़े जमींदार बड़े-बड़े खेतों पर बड़े पैमाने पर कृषि करने लगे व अधिक निवेश करके कृषि उत्पादन को बढ़ाने का प्रयास करने लगे। उनके प्रयासों से कृषि क्रांति को बढ़ावा मिला।

अतः स्पष्ट है कि कृषि क्रांति के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। जिनमें बदल-बदल कर फसलें बोना, पशुओं की नस्ल में सुधार करना, बाड़बंदी व चकबंदी, वैज्ञानिक विधियों , उन्नत वैज्ञानिक उपकरणों का प्रयोग आदि प्रमुख थे। इसके अतिरिक्त कुछ सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियां की कृषि क्रांति का कारण बनी।

कृषि क्रांति के प्रभाव[संपादित करें]

कृषि क्रांति के व्यापक प्रभाव पड़े जिनमें से कुछ ये हैं : —

  • (क ) फसल उत्पादन में वृद्धि : कृषि क्रांति के कारण फसल-उत्पादन में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। कृषि उत्पादन कई स्थानों पर 10 गुना तक बढ़ गया। प्रति हैक्टेयर उत्पादन में भी आशातीत वृद्धि हुई।
  • (ख ) भूमि की माँग में वृद्धि : कृषि क्रांति के परिणामस्वरूप भूमि की माँग बढ़ गई। अधिक भूमि का होना उच्च सामाजिक स्तर का प्रतीक बन गया। अधिक भूमि के स्वामी को मत का अधिकार भी मिल गया। यही कारण है कि भूमि के मूल्यों में भी बढ़ोतरी हुई।
  • (ग ) कृषि में पूंजीवादी प्रणाली का आरम्भ : कृषि क्रांति के परिणामस्वरूप कृषि में पूंजीवाद का आरम्भ हो गया। कृषि में अधिक निवेश होने लगा। फलत: कृषि बड़े-बड़े पूँजीपतियों के अधीन हो गई। छोटे किसान केवल मजदूर बनकर रह गए।
  • (घ ) जनसंख्या वृद्धि : कृषि क्रांति के परिणामस्वरूप जनसंख्या तेजी से बढ़ने लगी। इंग्लैंड में 17वीं 18वीं सदी में जनसंख्या में लगभग 10 प्रतिशत वृद्धि हुई। परन्तु जिन देशों में कृषि क्रांति देर से हुई वहाँ जनसंख्या वृद्धि भी देर से हुई।
  • (ङ ) औद्योगिक क्रांति को प्रोत्साहन : कृषि क्रांति के कारण कृषि उत्पादन बढ़ गया। लोगों का जीवन स्तर सुधर गया। उनकी क्रय शक्ति बढ़ गई। उनकी आवश्यकताएँ बढ़ने लगी। इन आवश्यकताओं की पूर्ति केवल उद्योगों से ही हो सकती थी। वस्त्रों की माँग सबसे अधिक बढ़ी। कपास और ऊन का उत्पादन कृषि क्रांति के कारण पहले ही बढ़ चुका था। अतः सूती वस्त्र उद्योग को बढ़ावा मिला। बड़े-बड़े कारखाने खोले जाने लगे। इस प्रकार कृषि क्रांति ने औद्योगिक क्रांति को प्रोत्साहन दिया।
  • (च ) सामाजिक प्रभाव

कृषि क्रांति के सामाजिक प्रभावों का वर्णन इस प्रकार है : —

(1) मशीनरी के प्रयोग के कारण बहुत से किसान पिछड़ गए।
(2) अनेक लोग बेरोजगार हो गए।
(3) मजदूरी कम हो गई। भूमिहीन किसानों के पास न घर रहे न अनाज। उनके लिए मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कर पाना भी कठिन हो गया।
(4) भूमि की बाड़बंदी होने से जो बेकार भूमि गरीब लोगों का चूल्हा चलाती थी, उनसे छिन गई।
(5 ) भूमिहीन किसानों की रक्षा के लिए सरकार को समय-समय पर अनेक कानून पास करने पड़े।

ब्रिटेन में कृषि क्रांति के शिल्पकार[संपादित करें]

राबर्ट वेस्टर्न[संपादित करें]

तीन खेत प्रणाली के घाटों से उबारने में राबर्ट वेस्टर्न ने अहम भूमिका निभाई। इसने (1645 ई.) अपनी पुस्तक ‘डिस्कोर्स ऑन हसबैण्ड्री’ में यह बतलाया कि 1/3 भूमि को परती छोड़े बिना भी जमीन की खोई हुई शक्ति प्राप्त की जा सकती है। इस हेतु उसने शलजम आदि जड़ों वाली फसलों को बोने पर विशेष जोर दिया। राबर्ट ने फ्लैडर्स में रहकर कृषि का ज्ञान प्राप्त किया था। इसके द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतों से अब पूरा का पूरा खेत हर वर्ष काम में लाया जाने लगा।

जेथरी टुल[संपादित करें]

यह बर्कशायर का एक किसान था जिसने कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु कई सिद्धांत प्रतिपादित किये। 1701 ई. में उसने बीज बोने के लिए ड्रिल यंत्र का आविष्कार कर प्रयोग किया। इस यंत्र से खेत में बीजों के बीच दूरी रखी गयी। इससे पौधों को फैलने में एवं गुड़ाई करने में मदद मिली। इसके द्वारा अच्छे बीज के प्रयोग, खाद की आवश्यकता एवं समुचित सिंचाई व्यवस्था पर विशेष बल दिया गया। टुल ने अपने कृषि में विकास संबंधी अनुभवों को 1733 ई. में ‘हार्स होइंग इण्डस्ट्री’ नामक पुस्तक द्वारा लोगों तक पहुँचाया। इसके अनुभवों से लाभ उठाकर कृषि के क्षेत्र में काफी लोग लाभांवित हुए।

लार्ड टाउनशैण्ड[संपादित करें]

इसके अनुसार कृषि क्रांति में सबसे प्रमुख तीन फसल पद्धति के स्थान पर चार फसल पद्धति अपनाना था। इसने क्रमशः गेहूँ, शलजम, जौ एवं अंत में लौंग बोने की परंपरा प्रारंभ की। इससे कम समय एवं कम स्थान में अत्यधिक उत्पादन प्राप्त हुआ।

इस दिशा में नारकोक के जमींदार कोक ऑफ होल्खाम ने हड्डी की खाद का प्रयोग कर उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि की। जार्ज तृतीय द्वारा कृषि कार्यां में अत्यधिक रूचि लेने के कारण उसे कृषक जार्ज भी कहा जाता है। सर आर्थर यंग ने कृषि सुधार हेतु 1784 ई. से ‘एनाल्स ऑफ एग्रीकल्चर’ शीर्षक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया। राबर्ट बैकवेल ने पशुओं की दशा सुधारने में अभूतपूर्व योगदान दिया। इससे दुग्ध उत्पादन में वृद्धि हुई।

इस प्रकार राबर्ट वेस्टन, टुल, टाउनशैण्ड एवं कोक आूफ होल्खाम द्वारा कृषि क्षेत्र में प्रतिपादित नवीनतम तकनीकों एवं विचारों ने कृषि क्रांति में उल्लेखनीय योगदान दिया। कृषि क्रांति यूरोप के इतिहास की एक दूरगामी प्रभाव वाली घटना सिद्ध हुई। इनकी पद्धतियों ने विकास को बढ़ाया।

आर्थर यंग[संपादित करें]

इंग्लैण्ड के एक धनवान कृषक आर्थर यंग (1742-1820 ई.) ने इंग्लैण्ड, आयरलैण्ड एवं फ्रांस आदि देशों में घूम-घूमकर तत्कालीन कृषि उत्पादन की पद्धतियों का सूक्ष्म अध्ययन किया। अपने अनुभवों के आधार पर उसने एक नवीन प्रकार से खेती की पद्धति का प्रचार किया। उसने बताया कि छोटे-छोटे क्षेत्रों पर खेती करने से अधिक लाभकारी बड़े कृषि फार्मां पर खेती करना है। अतः उसने छोटे-छोटे खेतों को मिलाकर बड़े-बड़े कृषि फार्मां के निर्माण पर बल दिया। चूँकि विभिन्न कृषि संबंधी उपकरणों का आविष्कार हो चुका था और ये यंत्र बड़े खेतों के लिए अत्यधिक उपयुक्त थे। उसने अपने विचारों को जन-जन तक पहुँचाने की दृष्टि से ‘एनल्स ऑफ एग्रीकल्चर’ नामक पत्रिका भी निकाली। आर्थर यंग के प्रयास अंततः फलीभूत हुए इंग्लैण्ड में धीरे-धीरे खेतों को मिलाकर एक बड़ा कृषि फार्म बनाने एवं उसके चारों ओर एक बाड़ लगाने का कार्य संपन्न किया जाने लगा। इंग्लैण्ड में 1792 ई. से 1815 ई. के मध्य 956 बाड़बंदी अधिनियम बनाये गये। इस प्रकार इंग्लैण्ड में कई लाख एकड़ भूमि की बाड़बंदी की गई। इस बाड़बंदी द्वारा कृषि उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई मगर छोटे-छोटे खेतों की समाप्ति से कई कृषकों को अपनी भूमि से बेदखल होना पड़ा और वे भूमिहीन मजदूर बन गये। अब ये कृषक से बने मजदूर विभिन्न कारखानों में मजदूर बने गये और उन कारखानों के उत्पादन में वृद्धि की। इस प्रकार एक ओर कृषि उत्पादन बढ़ा तो दूसरी ओर औद्योगिक उत्पादन भी बढ़ा और औद्योगिक क्रांति का मार्ग प्रशस्त्र हुआ।

सन्दर्भ[संपादित करें]