ब्राह्म सम्प्रदाय
ब्राह्म सम्प्रदाय हिंदू धर्म के प्रमुख चार वैष्णव सम्प्रदायों में से एक है। इसका संबंध मध्वाचार्य द्वारा प्रतिपादित द्वैत वेदांत दर्शन से माना जाता है। ब्राह्म सम्प्रदाय को वैष्णव परंपरा में विशेष स्थान प्राप्त है और यह वेद, पुराण तथा भगवद्गीता के वैष्णव व्याख्यान पर आधारित है।
उत्पत्ति और विकास
[संपादित करें]ब्राह्म सम्प्रदाय की उत्पत्ति का संबंध 13वीं शताब्दी में दक्षिण भारत के दार्शनिक मध्वाचार्य से माना जाता है। मध्वाचार्य ने द्वैत वेदांत का प्रतिपादन किया, जिसमें भगवान विष्णु को परम सत्ता और जीवात्मा को शाश्वत सेवक के रूप में वर्णित किया गया। यह सम्प्रदाय धीरे-धीरे दक्षिण भारत से होते हुए अन्य क्षेत्रों में भी फैला।
दर्शन
[संपादित करें]ब्राह्म सम्प्रदाय का दर्शन द्वैत वेदांत पर आधारित है। इसके अनुसार;
- ईश्वर (विष्णु/नारायण) और जीवात्मा एक-दूसरे से पूर्णतः भिन्न हैं।
- ईश्वर सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ हैं, जबकि जीवात्मा उनकी अनुकंपा पर निर्भर है।
- मोक्ष केवल ईश्वर की भक्ति और कृपा से ही संभव है।
प्रमुख ग्रंथ
[संपादित करें]- भगवद्गीता पर मध्वाचार्य की टीकाएँ
- ब्रह्मसूत्र भाष्य
- वेद और पुराणों पर विभिन्न टीकाएँ
परम्परा और अनुयायी
[संपादित करें]ब्राह्म सम्प्रदाय मुख्य रूप से दक्षिण भारत के कर्नाटक और आस-पास के क्षेत्रों में प्रचलित रहा। समय के साथ इसके अनुयायी विभिन्न स्थानों पर फैले और अनेक मठों तथा संस्थानों की स्थापना हुई।
अन्य वैष्णव सम्प्रदाय
[संपादित करें]हिंदू धर्म में वैष्णव परंपरा के अंतर्गत कुल चार प्रमुख सम्प्रदाय माने जाते हैं –