बेंबर खेती

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बेंवर खेती पूरी तरह से जैविक, पारिस्थितिक, प्रकृति के अनुकुल और मिश्रित खेती है। यह जैविक खेती का ही एक रूप है। डिंडौरी जिले के समनापुर विकासखंड के कई गांवों में बैगा आदिवासी इस तरह की खेती करके अनाज का उत्पादन करते हैं और अपनी आजीविका चलाते हैं।

इसकी खासियत यह है कि इस खेती में एक साथ 16 प्रकार के बीजों का इस्तेमाल किया जाता है, उनमें कुछ बीज अधिक पानी में अच्छी फसल देता है, तो कुछ बीज कम पानी होने या सूखा पड़ने पर भी अच्छा उत्पादन करता है। इससे खेत में हमेशा कोई-न-कोई फसल लहलहाते रहता है। फिलहाल इस तरह की खेती पर रोक लगी हुई है। सन् 1864 में अंग्रेजों के वन कानून ने इस पर रोक लगा दी है। उसके बाद भी डिंडौरी जिले के बैगाचक और बैगाचक से लगे छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में कुछ बैगा जनजाति ‘बेंवर खेती’ को अपनाए हुए है।

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