बुंदेलखण्ड के गुफा चित्र

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बुंदेलखण्ड के गुफा चित्र :– बुंदेलखण्ड प्राचीन काल से ही पहाड़ी, पठारी, वनांचलीय भू–भाग रहा है, पहाड़ों की तलहटी से अथवा पहाड़ों की तराईयों से अथवा दो पहाडों के मध्य से यहां नदियां प्रवाहित रही है। पहाड़ी नदियों नालों के किनारे प्राचीन काल से ही आदिमानव रहता रहा है। जिसका निवास पहाड़ी गुफाओं (कंदराओं) में तोता था। पहाड़ी गुफाओं में रहना और पत्थर के औजारों से वन्य पशुओं के मांस पर जीवन चलाना, आदिमानव की नियति थी। नग्न रहता था और हिंसक पशुओं की तरह गुफाओं में जीवन व्यतीत करता था, वन्य पशुओं को मारकर गुफाओं में लग्न और उन्हें चींथकर खाना आदिमानव की प्रारंभिक मनोदशा थी।

जिस गुफा में रहना उसकी दीवालों में पत्थरों पर पशुओं की आकृति का चित्रांकन कर अपनी भावनाओं को प्रदर्शित किया। ऐसे आदिमानव के बनाये गुफाचित्र बुंदेलखण्ड क्षेत्र के पहाड़ी गुफाओं में आज भी सुरक्षित है, जिन्हें यदि पर्यटक चाहे तो उन्हें देख सकते है। ऐसी गुफाओं में कुछ आवचंद की गुफाएं है, जो सागर गडाकोटा मार्ग पर सुनार और गंधेरी नदी के संगम के पास आवचंद ग्राम के पहाड़ों की गुफाओं में प्राप्त भित्ति चित्र है। यह पत्थरों पर आज भी लाल और कत्थई कालें रंगों में दृष्टव्य है। गुफाओं में लकीरों के रूप में मानव आकृतियां निर्मित है, तो हिरण, मोर और शेरों की आकृतियां है।

सागर–बीना मार्ग से संलग्न खानपुर की पहाड़ी गुफा में भी लाल और गेरू रंग की पुतलियां है। छतरपुर जिला के देवरा के पहाड़ी गुफा मेंं लाल रंग की तितलियां है। जिन्हें स्थानीय लोग पोरकादाता और पुतली का दाता नाम से पुकारते है। देवरा बिजावर किशनगढ़ मार्ग पर स्थित है। देवरा के पास के पहाड़ी नाले में यह गुफा खुलती है। बिजावर तहसील में ही पिपरिया गांव की सेहों घाटी की पहाड़ी में गुफाएं है। जो एक नाले से संलग्न है। इन गुफाओं में लाल रंग का आदमी हिरण जैसे आकृतियों की पुतलियां बनी हुई है। बंुदेलखण्ड क्षेत्र के बांदा और अन्य क्षेत्र के पहाड़ी गुफाओं में ऐसी पुतलियां मिलती है, जिन्हें स्थानीय आदिवासी रकत (खून) की लाल पुतलिया कहते है। [1]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 24 जुलाई 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 जून 2020.