बीरे मऊना की घटना

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सरिय्या मंज़िर बिन अम्र
तिथि 625, 4 हिजरी
स्थान मऊना के कुएं
परिणाम
  • मुहम्मद इस्लाम का प्रचार करने के लिए मिशनरी भेजते हैं।
  • मिशनरियों को स्थापित किया गया और शहीद कर दिये गए।[1]
योद्धा
मुसलमानों अमीर इब्न अल-तुफैल
शक्ति/क्षमता
40 या 70 अनजान
मृत्यु एवं हानि
40-70 मुसलमान शहीद [1][2] 2

बीरे मऊना की घटना या सरिय्या मंज़िर बिन अम्र[3] (अंग्रेज़ी: Expedition of Bir Maona इस्लाम के पैग़म्बर मुहम्मद के साथी (सहाबा) के क़त्ल की घटना है जो 4 हिजरी, 625 ईस्वी में उहुद की लड़ाई के चार महीने बाद हुई। ऐसा माना जाता है कि मुहम्मद ने अबू बरा आमिर बिन मालिक के अनुरोध पर मिशनरियों को इस्लाम की शिक्षा देने के लिए भेजा था। मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम द्वारा भेजे गए मुस्लिम मिशनरियों में से चालीस (इब्न इशाक के अनुसार) या सत्तर (सहीह अल-बुख़ारी के अनुसार) मऊना के कुएं के पास शहीद कर दिये गए।

पृष्ठभूमि[संपादित करें]

उहुद की लड़ाई के बाद जिस महीने रजीअ की घटना घटी, ठीक उसी महीने यह बीरे मऊना की दुर्घटना भी घटी जो रजीअ की घटना से कहीं ज़्यादा संगीन थी।

इस घटना का सार इस्लामिक स्रोत अनुसार अबू बरा आमिर बिन मालिक जो "मलाजिबुल-असिन्ना” (नेज़ों से खेलने वाला) की उपाधि से प्रसिद्ध था, मदीना में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर हुआ। पैग़म्बर ने उसे इस्लाम की दावत दी । उस ने इस्लाम तो कुबूल नही किया, लेकिन दूरी भी इख़्तियार नहीं की। उस ने कहा, "ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! अगर आप अपने साथियों को दीन की दावत देने के लिए नज्द वालों के पास भेजें तो मुझे उम्मीद है कि वे लोग आप की दावत कुबूल कर लेंगे।" आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया, “मुझे अपने सहाबा के बारे में नज्द वालों से ख़तरा है।" अबू बरा ने कहा, "वे मेरी पनाह में होंगे।" इस पर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने इब्ने इस्हाक़ के कहने के मुताबिक चालीस [4] और सहीह बुख़ारी की रिवायत के मुताबिक[5] सत्तर आदमियों को उस के साथ भेज दिया। सत्तर ही की रिवायत सहीह है और मंज़िर बिन अम्र को जो बनू साइदा से ताल्लुक रखते थे और "मोतकु लिल-मौत" (मौत के लिए आज़ाद किए हुए) की उपाधि से मशहूर थे, उन का अमीर बना दिया । ये लोग फुजला (दीन के बड़े ज्ञानी), कुर्रा (कुरआन पढ़ने वाले), सादात (सब में बड़े) और अख़यार (चुने हुए) सहाबा थे। दिन में लकड़ियां काट कर उस के बदले अहले सुफ्फा (चबूतरे वाले गरीब लोगों) के लिए अनाज खरीदते और कुरआन पढ़ते-पढ़ाते थे और रात में अल्लाह के हुज़ूर मुनाजात और नमाज़ के लिए खड़े हो जाते थे।

हमला[संपादित करें]

मुस्लिम विद्वान सफिउर्रहमान मुबारकपुरी के अनुसार, यह लोग चलते-चलाते मऊना के कुएं पर जा पहुंचे। यह कुआं बनू आमिर और हर्रा बिन सुलैम के बीच में एक भू-भाग पर स्थित है। वहां पड़ाव डालने के बाद इन सहाबा किराम रज़ि० ने उम्मे सुलैम रजि० के भाई हिराम बिन मिलहान रज़ि० को अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का ख़त देकर अल्लाह के दुश्मन आमिर बिन तुफैल के पास रवाना किया, लेकिन उस ने ख़त को देखा तक नहीं और एक आदमी को इशारा कर दिया जिस ने हज़रत हिराम रज़ि० को पीछे से इस ज़ोर का नेजा मारा कि वह नेज़ा आर पार हो गया। खून देख कर हज़रत हिराम रज़ि० ने फरमाया, “अल्लाहु अकबर ! रब्बे काबा की कसम ! मैं कामियाब हो गया।"

इसके बाद तुरन्त ही आमिर ने बाकी सहाबा पर हमला करने के लिए अपने क़बीले बनी आमिर को आवाज़ दी, मगर उन्होंने अबू बरा के पनाह देने की वजह से उस की आवाज़ पर कान न धरे। इधर से निराश होकर उस आदमी ने अबू सुलैम को आवाज़ दी। बन् सुलैम के तीन कबीलों उसैया, राल और ज़कवान ने इस पुकार का जवाब दिया और झट आकर इन सहावा किराम रजि को घेर लिया। जवाब में सहाबा किराम ने भी लड़ाई की, मगर सब के सब शहीद हो गए, सिर्फ हज़रत काब बिन ज़ैद बिन नज्जार रजि० निंदा बचे। उन्हें शहीदों के दर्मियान से घायल हालत में उठा लाया गया और वह खंदक (खाई) की लड़ाई तक ज़िंदा रहे। इन के अलावा दो और सहाबा हज़रत अम्र बिन उमैया जुमरी और हज़रत मुंज़िर बिन कबा बिन आमिर रज़ि० ऊंट चरा रहे थे। उन्होंने घटना स्थल पर सुवड़ियों को मंडलाते देखा तो सीधे घटना स्थली पर पहुंचे। फिर हज़रत मुज़िर तो अपने साथियों के साथ मिल कर मुश्किों से लड़ते हुए शहीद ही गए और हज़रत अम्र बिन उमैया जमुरी को कैद कर लिया गया, लेकिन जब बताया गया कि उन का ताल्लुक क़बीला मुज़र से है तो आमिर ने उन के माथे के बाल कटवा कर अपनी मां की ओर से जिस पर एक गरदन आज़ाद करने की मन्नत थी-आज़ाद कर दिया।

हज़रत अम्र बिन उमैया जुमरी रज़ि० इस दर्दनाक दुर्घटना की ख़बर लेकर मदीना पहुंचे इन सत्तर अफ़ाज़िल ( बड़े-बड़े ) मुसलमानों की शहादत की दुखद घटना ने उहद की लड़ाई का घाव ताज़ा कर दिया। और यह इस दृष्टि से अधिक दुखद था कि उहद के शहीद तो एक खुली हुई और आमने-सामने की लड़ाई में मारे गए थे, मगर ये बेचारे एक शर्मनाक गद्दारी की भेंट चढ़ गए।

हज़रत अम्र बिन उमैया जुमरी रज़ि० वापसी में कनात घाटी के सिरे पर स्थित स्थान करकरा पहुंचे तो एक पेड़ की छाया में उतर पड़े, वहीं बनू किलाब के दो आदमी भी उतरे। जब वे दोनों बेख़बर सो गये तो हज़रत अम्र बिन उमैया ने उन दोनों का सफाया कर दिया। उन का विचार था कि अपने साथियों का बदला ले रहे हैं, हालांकि उन दोनों के पास अल्ल्लाह के रसलू सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ओर से अहूद ( वायदा, वचन ) था, मगर हज़रत अम्र जानते न थे, चुनांचे जब मदीना आकर उन्होंने अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को अपनी

इस कार्यवाही की ख़बर दी तो आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया कि तुम ने दो आदमियों को क़त्ल किया है, जिन की दियत (बदले का जुर्माना) मुझे ज़रूर ही अदा करनी है। इस के बाद आप मुसलमान और उन के मित्र यहूद से दियत जमा करने में लग गए और यही घटना बनू नज़ीर की लड़ाई की वजह बनी।[6] [7] [8]

सराया और ग़ज़वात[संपादित करें]

अरबी शब्द ग़ज़वा [9] इस्लाम के पैग़ंबर के उन अभियानों को कहते हैं जिन मुहिम या लड़ाईयों में उन्होंने शरीक होकर नेतृत्व किया,इसका बहुवचन है गज़वात, जिन मुहिम में किसी सहाबा को ज़िम्मेदार बनाकर भेजा और स्वयं नेतृत्व करते रहे उन अभियानों को सरियाह(सरिय्या) या सिरया कहते हैं, इसका बहुवचन सराया है।[10] [11]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Mubarakpuri, The sealed nectar: biography of the Noble Prophet, pp. 352.
  2. Hawarey, Mosab (2010). The Journey of Prophecy; Days of Peace and War (Arabic). Islamic Book Trust. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789957051648.Note: Book contains a list of battles of Muhammad in Arabic, English translation available here
  3. سریہ منذر بن عمرو https://ur.wikipedia.org/s/4tol
  4. इब्ने हिशाम 2 / 169-179, जादुल-मआद 2 / 109
  5. बुखारी 28,569,585
  6. Safiur Rahman Mubarakpuri, en:Ar-Raheeq Al-Makhtum -en:seerah book. "The Tragedy at the Well of Ma'unah". पृ॰ 397.
  7. सफिउर्रहमान मुबारकपुरी, पुस्तक अर्रहीकुल मख़तूम (सीरत नबवी ). "बीरे मऊना की दुर्घटना". पृ॰ 587. अभिगमन तिथि 13 दिसम्बर 2022.
  8. "वाकिअए बीरे मुअव्वना, पुस्तक 'सीरते मुस्तफा', शैखुल हदीस मौलाना अब्दुल मुस्तफ़ा आज़मी, पृष्ट 294". Cite journal requires |journal= (मदद)
  9. Ghazwa https://en.wiktionary.org/wiki/ghazwa
  10. siryah https://en.wiktionary.org/wiki/siryah#English
  11. ग़ज़वात और सराया की तफसील, पुस्तक: मर्दाने अरब, पृष्ट ६२] https://archive.org/details/mardane-arab-hindi-volume-no.-1/page/n32/mode/1up

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • अर्रहीकुल मख़तूम (सीरत नबवी ), पैगंबर की जीवनी (प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार से सम्मानित पुस्तक), हिंदी (Pdf)