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बिहारी सतसई

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बिहारीदास कृष्ण जी की उपासना करते हुए

बिहारी सतसई कवि बिहारी की रचना है, यह मुक्तक काव्य है, इसमें 713 से 719 दोहे संकलित हैं। इसमें नीति, भक्ति और शृंगार से संबंधित दोहों का संकलन है।

कुछ प्रसिद्ध दोहे

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सतसैया के दोहरे, ज्यों नैनन के तीर। देखन में छोटे लगे, बेधे सकल शरीर।

बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाइ। सौह करे भौह्नी हँसे दैन कहे नाती जाई।।

कहत, नटत, रीझत, खीझत, मिळत, खिलत, लजियात। भरे भौन में करत है, नैनन ही सों बात।

मेरी भव- बाधा हरो राधा नागरि सोइ। जा तन की झांई परे, श्याम हरित धुती होइ।।

दुसह दुराज प्रजान को क्यों न बड़े दुःख द्वंद। अधिक अंधेरो जग करत, मिलि मावस रविचंद।।

सोहत ओढैं पीतु पटु स्याम, सलौनैं गात। मनौ नीलमनि-सैल पर आपतु परयौ प्रभात।।

कहलाने एकत बसत अहि मयूर , मृग बाघ। जगतु तपोबन सौ कियौ दीरघ – दाघ निदाघ।।

सन्दर्भ

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