बाबू खां

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बाबू खां

कार्यकाल
1991से 1993,1993 से 19967
पूर्वा धिकारी विधायक
उत्तरा धिकारी विधायक चार बार

मोहल्ला क़ाज़ी सराय पाली हरदोई
कार्यकाल
2012 से 201
पूर्वा धिकारी जिलाध्यक्ष समाजवादी पार्टी
उत्तरा धिकारी समाजवादी पार्टी के जिलाध्यक्ष

जन्म २७ मई १९६७
पाली,जिला हरदोई, उत्तर प्रदेश, भारत
मृत्यु जीवित
राष्ट्रीयता भारतीय
शैक्षिक सम्बद्धता छत्रपति साहूजी महाराज विश्वविद्यालय
धर्म इस्लाम

बाबू खां, भारत के उत्तर प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा सभा में विधायक रहे। 2012 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश की शाहाबाद विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र (निर्वाचन संख्या-155)से चुनाव जीता।[1] इससे पहले भी ये तीन बार इसी विधान सभा से चुनाव जीत चुके है। बाबू खा का जन्म उत्तर प्रदेश के जनपद हरदोई के एक छोटे से क़स्बा पाली में २७ मई १९५७ में हूआ था। इनके पिता का नाम कासिम अली और माता का नाम नथ्थन बेगम है। इनके पिता पाली के पास सवायाज्पूर की एक महारानी के यहाँ नोकरी किया करते थे। बाबू खां अपने सात भाइयो में पांचवे नम्बर पर रहे। उनके भाई क्रमशा- नथ्थू खा ,अतहर खां ,बतार खां ,छोटे खा, शराफत खा, बाबू खा और सत्तार खां रहे। घर में केवल बड़े भाई नथ्थू खा ही शिक्षित थे और वन विभाग में डिप्टी रेंजर की पोस्ट पर तेनात थे। तीसरे भाई बतार खां के सहयोग से बाबू खा को शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला और जिले के सी एस ऍन पीजी कालेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। उनके साथ ही उनके सबसे छोटे भाई सत्तार खां को भी स्नातक की डिग्री मिली। अध्ययन के बाद जीवका के रूप में सबसे पहले उन्होंने लोक निर्माण विभाग में ठेकेदार के रूप में अपना काम शुरू किया और बाद में राजनीती में आए। १९८५ में जनता पार्टी से चुनाव लड़े और हार गए। १९८९ में दूसरा चुनाव जनता दल से लड़े और हार का सामना करना पड़ा १९९१ के चुनाव मे किसी पार्टी ने टिकट ही नहीं दिया तो निर्दली चुनाव लड़े और जीत गए। उसके बाद जब समाजवादी पार्टी का गठन हूआ तो मुलायम सिंह के साथ आ गएऔर तब से अब तक इसी पार्टी में है। १९९१ के बाद १९९३ और १९९६ लगातार तीन बार विधायक रहे। २००२ के चुनाव में पराजित हूए और उसके बाद २०१२ के में फिर से बापसी की है। यही नहीं बाबू खा के सबसे छोटे भाई सत्तार खां पाली क़स्बा के नगर अध्यक्ष भी रहे। बाबू खा की जो विशेषता है वो उन्हें राजनीतिज्ञों में विशिष्ट बनती है वो है की आज तक कोई पार्टी नहीं बदली दूसरी बात कि उनका राजनितिक जीवन साफ और बेदाग है। २०१२ के विधानसभा में जीतने के बाद आज़ादी से अब तक शाहाबाद विधानसभा से पहले विधायक बने जो चार बार यहाँ से जीते है इससे पहले ये इस विधासभा से रामावतार औए गंगा भक्त सिंह ही तीन और दो बार जीते थे।२०१२ में विजय और समाजवादी को सत्ता मिलने पर इस विधानसभा के लोगो से ये आशा थी कि ये कबिनेट मंत्री अवश्य बनेगे ,लेकिन अखलेश सरकार ने इन्हें मंत्री नहीं बनाया। फ़िलहाल २०१७ के चुनाव में बाबू खां अपने ख़राब स्वस्थ के कारण स्वयं चुनाव न लड़कर अपने पुत्र सरताज खान को इसी विधानसभा से चुनाव लड़ा रहे रहे।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "उत्तर प्रदेश विधान सभा". मूल से 11 अगस्त 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जुलाई 2016.