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बागेश्वर का इतिहास

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पुरा कथाओं में भगवान शिव के बाघ रूप धारण करने वाले इस स्थान को व्याघ्रेश्वर तथा बागीश्वर से कालान्तर में बागेश्वर के रूप में जाना जाता है।[1] शिव पुराण के मानस खंड के अनुसार इस नगर को शिव के गण चंडीश ने शिवजी की इच्छा के अनुसार बसाया था।[2][3] स्कन्द पुराण के अन्तर्गत बागेश्वर माहात्म्य में सरयू के तट पर स्वयंभू शिव की इस भूमि को उत्तर में सूर्यकुण्ड, दक्षिण में अग्निकुण्ड के मध्य (नदी विशर्प जनित प्राकृतिक कुण्ड से) सीमांकित कर पापनाशक तपस्थली तथा मोक्षदा तीर्थ के रूप में धार्मिक मान्यता प्राप्त है। ऐतिहासिक रूप से कत्यूरी राजवंश काल से (७वीं सदी से ११वीं सदी तक) सम्बन्धित भूदेव का शिलालेख इस मन्दिर तथा बस्ती के अस्तित्व का प्राचीनतम गवाह है। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार सन् १६०२ में राजा लक्ष्मी चन्द ने बागनाथ के वर्तमान मुख्य मन्दिर एवं मन्दिर समूह का पुनर्निर्माण कर इसके वर्तमान रूप को अक्षुण्ण रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।[4] उन्होंने बागेश्वर से पिण्डारी तक लगभग ४५ मील (७० किमी.) लम्बे अश्व मार्ग के निर्माण द्वारा दानपुर के सुदूर ग्राम्यांचल को पहुँच देने का प्रयास भी किया। स्वतंत्रता के १०० वर्ष पूर्व सन् १८४७ में इ. मडेन द्वारा बाह्य जगत को हिमालयी हिमनदों की जानकारी मिलने के बाद पिण्डारी ग्लेशियर को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान मिली और बागेश्वर विदेशी पर्यटकों एवं पर्वतारोहियों का विश्रामस्थल भी बना।

१९वीं सदी के प्रारम्भ में बागेश्वर आठ-दस घरों की एक छोटी सी बस्ती थी। सन् १८६० के आसपास यह स्थान २००-३०० दुकानों एवं घरों वाले एक कस्बे का रूप धारण कर चुका था। मुख्य बस्ती मन्दिर से संलग्न थी। सरयू नदी के पार दुग बाजार और सरकारी डाक बंगले का विवरण मिलता है। एटकिन्सन के हिमालय गजेटियर में वर्ष १८८६ में इस स्थान की स्थायी आबादी ५०० बतायी गई है।[5] सरयू और गोमती नदी में दो बडे़ और मजबूत लकड़ी के पुलों द्वारा नदियों के आरपार विस्तृत ग्राम्यांचल के मध्य आवागमन सुलभ था। अंग्रेज लेखक ओस्लो लिखते है कि १८७१ में आयी सरयू की बाढ़ ने नदी किनारे बसी बस्ती को ही प्रभावित नहीं किया, वरन् दोनों नदियांे के पुराने पुल भी बहा दिये। फलस्वरूप १९१३ में वर्तमान पैदल झूला पुल बना। इसमें सरयू पर बना झूला पुल आज भी प्रयोग में है। गोमती नदी का पुल ७० के दशक में जीर्ण-क्षीर्ण होने के कारण गिरा दिया गया और उसके स्थान पर नया मोटर पुल बन गया।

प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व, सन् १९०५ में अंग्रेजी शासकों द्वारा टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाईन का सर्वेक्षण किया गया, जिसके साक्ष्य आज भी यत्र-तत्र बिखरे मिलते हैं।[6] विश्व युद्ध के कारण यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई और बाद के योजनाकारों द्वारा पूरी तरह विस्मृत कर दी गयी।[7] १९८० के दशक में श्रीमती इंदिरा गांधी के बागेश्वर आगमन पर उन्हें इस रेलवे लाईन की याद दिलाई गई। अब जाकर, क्षेत्रीय जनता द्वारा किये गये लम्बे संघर्ष के उपरान्त आखिरकार टनकपुर-बागेश्वर रेलवे लाईन के सर्वेंक्षण को राष्ट्रीय रेल परियोजना के अन्तर्गत सम्मिलित किया गया है। वर्ष १९२१ के उत्तरायणी मेले के अवसर पर कुमाऊँ केसरी बद्री दत्त पाण्डेय, हरगोविंद पंत, श्याम लाल साह, विक्टर मोहन जोशी, राम लाल साह, मोहन सिह मेहता, ईश्वरी लाल साह आदि के नेतृत्व में सैकड़ों आन्दोलनकारियों ने कुली बेगार के रजिस्टर बहा कर इस कलंकपूर्ण प्रथा को समाप्त करने की कसम इसी सरयू तट पर ली थी।[8] पर्वतीय क्षेत्र के निवासियों का राष्ट्रीय आन्दोलन में यह योगदान था, जिससे प्रभावित हो कर सन् १९२९ में महात्मा गांधी स्वयं बागेश्वर पहुँचे।[9] तभी विक्टर मोहन जोशी द्वारा उनके कर कमलों से स्वराज मंदिर का शिलान्यास भी करवाया गया।

बींसवी सदी के प्रारम्भ में यहाँ औषधालय(१९०६) तथा डाकघर(१९०९) की तो यहाँ स्थापना हो गयी, तथापि शिक्षा का प्रसार यहाँ विलम्बित रहा। १९२६ में एक सरकारी स्कूल प्रारम्भ हुआ, जो १९३३ में जूनियर हाईस्कूल बना। आजादी के बाद १९४९ में स्थानीय निवासियों के प्रयास से विक्टर मोहन जोशी की स्मृति में एक प्राइवेट हाइस्कूल खुला, जो कि १९६७ में जा कर इण्टर कालेज बन सका। महिलाओं के लिए पृथक प्राथमिक पाठशाला ५० के दशक में खुली और पृथक महिला सरकारी हाईस्कूल १९७५ में। १९७४ में तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नन्दन बहुगुणा द्वारा राजकीय डिग्री कालेज का उद्घाटन किया गया।[10]

बालीघाट में स्थापित २५ किलोवाट क्षमता वाले जल विद्युत संयंत्र से उत्पादित बिजली से १९५१ में बागेश्वर पहली बार जगमगाया। वर्षा काल में नदियों में नदियों के गंदले पानी से निजात पाने के लिए टाउन एरिया गठन के उपरान्त राजकीय अनुदान तथा स्थानीय लोगों के श्रमदान से नगर में शुद्ध सार्वजनिक पेयजल प्रणाली का शुभारम्भ हुआ।[11] १९५२ में अल्मोडा से वाया गरुड़ मोटर रोड बागेश्वर पहुँची। क्षेत्रीय निवासियों के श्रमदान से निर्मित बागेश्वर-कपकोट मोटर मार्ग में बस सेवा का संचालन १९५५-५६ के बाद प्रारम्भ हो पाया। १९६२ में चीन युद्ध के बाद सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण बागेश्वर-पिथौरागढ़ सड़क १९६५ में बनकर तैयार हो गई। सत्तर के दशक में बागेश्वर से अल्मोड़ा के लिये वाया ताकुला एक वैकल्पिक रोड बनी तो अस्सी के दशक में बागेश्वर- चैंरा- दोफाड़ रोड पर आवागमन शुरू हुआ। तहसील मुख्यालय बनने के बाद तो आसपास गाँवों के लिये अनेक मोटर मार्गो का निर्माण प्रारम्भ हुआ। जनपद मुख्यालय बनने के उपरान्त तो नगर के समीपवर्ती भागों में स्थापित कार्यालयों, न्यायालय आदि के लिए भी सम्पर्क मार्ग बनने लगे।

सन्दर्भ

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  1. "बाघ और गाय बनकर इस संगम पर घूमते थे भगवान शिव और पार्वती". देहरादून: अमर उजाला. 2016. Archived from the original on 7 अक्तूबर 2017. Retrieved 28 जून 2017. {{cite news}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  2. "शिव के गण चंडीश ने बसाया था इस नगर को, यहां है बागनाथ मंदिर". हिन्दुस्तान. 2017. Archived from the original on 7 अक्तूबर 2017. Retrieved 28 जून 2017. {{cite news}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  3. "बागेश्वर में पार्वती के संग विराजते हैं भोलेनाथ". बागेश्वर: अमर उजाला. 2017. Archived from the original on 7 अक्तूबर 2017. Retrieved 28 जून 2017. {{cite news}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  4. "कत्यूर व चंद शासकों के काल में बनी ऐतिहासिक इमारतें हैं उपेक्ष‍ित". बागेश्वर: दैनिक जागरण. 2017. Archived from the original on 7 अक्तूबर 2017. Retrieved 28 जून 2017. {{cite news}}: Check date values in: |archive-date= (help)
  5. एटकिन्सन, एडविन टी. (1973). हिमालयी गजट (in अंग्रेज़ी). दिल्ली: काॅस्मो प्रकाषक. Archived from the original on 12 अगस्त 2018. Retrieved 26 अक्तूबर 2017. {{cite book}}: Check date values in: |access-date= (help)
  6. कुमार, योगेश (2015). "Rail ministry stalls Tanakpur-Bageshwar link project" [रेल मंत्रालय ने टनकपुर-बागेश्वर लिंक परियोजना पर रोक लगाई] (in अंग्रेज़ी). टाइम्स ऑफ इंडिया. Archived from the original on 13 जनवरी 2019. Retrieved 28 जून 2017.
  7. "टनकपुर-बागेश्वर रेल लाइन का 1902 में हुआ था आगाज!". Archived from the original on 18 सितंबर 2016. Retrieved 28 जून 2017.
  8. "कुली बेगार उन्मूलन का माध्यम बना उत्तरायणी मेला". बागेश्वर: अमर उजाला. 2014. Archived from the original on 6 सितंबर 2017. Retrieved 28 जून 2017.
  9. पांडेय, सुरेश (2016). "रक्तहीन क्रांति का मूक गवाह है सरयू बगड़". बागेश्वर: दैनिक जागरण. Retrieved 28 जून 2017.
  10. "भगवान भूतनाथ की नगरी बागेश्वर: समय का कैलीडियोस्कोप". नैनीताल समाचार. 7 फरवरी 2015. Archived from the original on 13 जून 2018. Retrieved 19 जून 2018. {{cite news}}: Check date values in: |date= (help)
  11. Perspective Plan of Bageshwar District-2021 (PDF) (in अंग्रेज़ी). उत्तराखण्ड सरकार. Archived from the original (PDF) on 11 सितंबर 2016. Retrieved 28 जून 2017.