बाइज़ेन्टीनी–उस्मानी युद्ध

बाइज़ेन्टीनी–उस्मानी युद्ध बाइज़ेन्टीनी यूनानियों और उस्मानी तुर्कों तथा उनके सहयोगियों के बीच निर्णायक संघर्षों की एक शृंखला थी जिसके परिणामस्वरूप बाइज़ेंटाइन साम्राज्य का अंतिम विनाश और उस्मानी साम्राज्य का उदय हुआ। चौथे धर्मयुद्ध (ईसाई) के बाद अपने साम्राज्य के विभाजन से पहले ही बाइज़ेन्टीनी कमजोर स्थिति में थे और पलाइओलोगोस राजवंश के शासन में पूरी तरह से उबरने में असफल रहे। इस प्रकार बाइज़ेन्टीनियों को उस्मानियों के हाथों लगातार विनाशकारी हार का सामना करना पड़ा। अंततः सन् 1453 में उन्होंने क़ुस्तुंतुनिया खो दिया जिससे औपचारिक रूप से संघर्ष समाप्त हो गया (हालांकि कई बाइज़ेन्टीनी प्रतिरोध 1479 तक चले)।[1][2]
उस्मानियों का उदय
[संपादित करें]सन् 1261 में क़ुस्तुंतुनिया पर बाइज़ेन्टीनी की पुनः विजय के बाद बाइज़ेंटाइन साम्राज्य एक अलग-थलग स्थिति में आ गया।[3] यूनानी मुख्य भूमि के शेष लैटिन डचियों और अन्य क्षेत्रों के बीच लैटिन साम्राज्य के लिए क़ुस्तुंतुनिया को पुनः प्राप्त करने के बारे में काफी चर्चा हुई जबकि उत्तर में एक और महत्वपूर्ण खतरा राजा स्टीफन उरोस प्रथम द्वारा बाल्कन में सर्बियाई विस्तार से आया।[4]
डैन्यूब नदी पर कभी कोम्नेयन राजवंश के अधीन एक मजबूत सीमा थी वह अब स्वयं क़ुस्तुंतुनिया के लिए खतरा बन गई है। इन समस्याओं को हल करने के लिए माइकल आठवें ने अपने शासन को मजबूत करना शुरू करते हुए उसने अपने युवा सह-सम्राट जॉन चतुर्थ को अंधा करवा दिया जिसके परिणामस्वरूप काफी असंतोष पैदा हुआ।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ İnalcık, Halil (1989). "Chapter VII. The Ottoman Turks and the Crusades, 1329–1451". In Zacour, N. P., and Hazard, H. W. (ed.). A History of the Crusades: Volume VI. The Impact of the Crusades on Europe. Madison: The University of Wisconsin Press. pp.175–221.
- ↑ İnalcık, Halil (1989). "Chapter VII. The Ottoman Turks and the Crusades, 1451–1522". In Zacour, N. P., and Hazard, H. W. (ed.). A History of the Crusades: Volume VI. The Impact of the Crusades on Europe. Madison: The University of Wisconsin Press. pp. 311–353.
- ↑ "Fall of Constantinople | Facts, Summary, & Significance | Britannica". www.britannica.com.
- ↑ Mango, Cyril (2002). The Oxford History of Byzantium. New York: Oxford. पृ॰ 260.