बम्बई का बाबू (1960 फ़िल्म)
बम्बई का बाबू | |
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![]() बम्बई का बाबू का पोस्टर | |
निर्देशक | राज खोसला |
निर्माता | राज खोसला, जाल मिस्त्री |
लेखक | राजिन्दर सिंह बेदी |
अभिनेता |
देव आनन्द, सुचित्रा सेन, जीवन, नासिर हुसैन, अचला सचदेव, रशीद ख़ान, धूमल, जगदीश राज, मनोहर दीपक, ललिता कुमारी, टुन टुन, |
संगीतकार |
सचिन देव बर्मन (संगीतकार) मजरुह सुल्तानपुरी (गीतकार) |
प्रदर्शन तिथि(याँ) | 1960 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
बम्बई का बाबू 1960 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है जिसका निर्देशन राज खोसला ने किया है। इस फ़िल्म में देव आनन्द और सुचित्रा सेन ने अभिनय किया है। जिन चार हिन्दी फ़िल्मों में सुचित्रा सेन ने काम किया है उनमें यह दूसरी है।
संक्षेप[संपादित करें]
बाबू (देव आनन्द) एक अपराधी होता है। उसका बचपन का दोस्त मलिक एक पुलिस अफ़सर होता है और बाबू को सीधी राह पर चलने की सलाह देता है। बाबू कहता है कि वह कोशिश करेगा और अपराधों में अपने भागीदार बाली (जगदीश राज) से आगे कोई अपराध करने से मना कर देता है। एक जगह डाका डालते समय बाली और उसके साथी पुलिस की गिरफ़्त में आ जाते हैं और यह समझते हैं कि उनकी मुखबिरी बाबू ने की है। जब बाली ज़मानत पर बाहर आता है तो उसका सामना बाबू से होता है। दोनों में हाथापाई होती है जिसके चलते बाली को चाकू लग जाता है और उसकी मौत हो जाती है। पुलिस के डर से बाबू उत्तर भारत के एक कस्बे में रहने जाता है जहाँ उसकी मुलाक़ात एक और अपराधी भगत से होती है। भगत की आँख वहाँ के एक रईस शाहजी (नज़ीर हुसैन) की दौलत पर होती है। भगत बाबू से कहता है कि वह शाहजी का खोया हुआ बेटा कुन्दन बनकर शाहजी के घर जाये और फिर उनकी दौलत पर हाथ साफ़ कर दे। पहले तो बाबू मना करता है लेकिन जब भगत उसे पुलिस से पकड़वाने की धमकी देता है तो वह राज़ी हो जाता है।
कुन्दन बन कर बाबू जब शाहजी के घर जाता है तो वहाँ उसकी मुलाकात शाहजी की बेटी (और अब उसकी तथाकथित बहन) माया (सुचित्रा सेन) से होती है और धीरे-धीरे उसको माया से प्यार हो जाता है। बाबू को शाहजी के घर से ख़र्च के लिए पैसा मिलता रहता है और वह भगत को थोड़ा-थोड़ा पैसा देता रहता है लेकिन भगत को तो सारी दौलत एक साथ ही चाहिए। वह बाबू को फिर धमकी देता है और माया सब छिपकर सुन लेती है और उसे सच्चाई मालूम हो जाती है। जिस दिन माया की बारात आने वाली होती है उसी दिन भगत अपने साथियों के साथ शाहजी के घर में घुसकर माया की शादी के लिए बनाये हुए ज़ेवर और नकदी लेकर जाने लगता है तो बाबू उनको रोकता है। बाबू को मार-पीटकर भगत और उसके साथी शाहजी के घर से भाग जाते हैं। यह सब माया देख लेती है। बाबू भगत का पीछा करता है और थोड़ी मार-पीट के बाद चुराई हुई दौलत वापिस हासिल कर लेता है।
इधर चोरी की वजह से शाहजी बिल्कुल टूट जाते हैं लेकिन बाबू जब चोरी हुआ सारा सामान वापिस ले आता है तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता है। माया की शादी हो जाती है और बाबू उसे विदा करके जब वापिस लौटता है तो मलिक, जो बम्बई से उसका पीछा करता हुआ आया है, शाहजी के घर की दहलीज़ पर खड़ा होता है लेकिन वह चुपचाप खड़ा रहता है क्योंकि वह समझ जाता है कि बाबू अब सुधर चुका है।
मुख्य कलाकार[संपादित करें]
- देव आनन्द - बाबू/कुन्दन
- सुचित्रा सेन - माया
- जीवन
- नासिर हुसैन - शाहजी
- अचला सचदेव - रुक्मनी
- रशीद ख़ान - भगत
- धूमल - मामू
- जगदीश राज - बाली
- मनोहर दीपक - मलिक
- ललिता कुमारी
- टुन टुन
संगीत[संपादित करें]
फ़िल्म के संगीतकार एस डी बर्मन हैं और गीतों के बोल मजरुह सुल्तानपुरी ने लिखे हैं।
गीत | गायक/गायिका | |
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१ | ऐसे में कछु कहा नहीं जाए | आशा भोंसले |
२ | चल री सजनी अब क्या सोचे | मुकेश |
३ | तकदुम तकदुम बाजे | मन्ना डे |
४ | दीवाना मस्ताना हुआ दिल | मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले |
५ | देखने में भोला है | आशा भोंसले |
६ | पवन चले तो | मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले |
७ | साथी न कोई मंज़िल | मोहम्मद रफ़ी |