बदन सिंह
बदन सिंह | |
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डीग के महाराजा (ब्रज के महाराजा) | |
शासनावधि | 1722–1755 AD |
पूर्ववर्ती | राव चूडामन सिंह |
उत्तरवर्ती | महाराजा सूरजमल |
निधन | 21 मई 1755 डीग |
घराना | सिनसिनवार क्षत्रिय जाट |
धर्म | हिन्दू |
राजा बदन सिंह (शासन: 1722-21 मई 1755)। वह चूड़ामन के भतीजे थे 22 सितंबर 1721 को राव चूड़ामन सिंह की मृत्यु के बाद, चूड़ामन के भतीजे बदन सिंह और उनके बेटे मुहकम सिंह के बीच परिवार विवाद थे। बदन सिंह मुहाकम सिंह के क्रोध से बचने के लिए जयपुर के जय सिंह द्वितीय के साथ गठबंधन करते हैं। इस परिवार में जय सिंह ने बदन सिंह का समर्थन किया और बदन सिंह को राजा की तौर पर मान्यता को स्वीकार किया।[1]
बदनसिंह धार्मिक प्रवृति का व्यक्ति था। उसने वृंदावन में एक मंदिर एवं डीग के किले में कुछ महलों का निर्माण करवाया। बदनसिंह के पुत्र सूरजमल ने 1733 ई. में सोंघर (सोगर) के निकट स्थित एक पुरानी गढ़ी से खेमा जाट को भगाकर उसके स्थान पर नया व सुदृढ़ दुर्ग बनवाया, जो भरतपुर का दुर्ग या लोहागढ़ कहलाया एवं इसे भरतपुर राज्य की बाद राजधानी बनाया गया। यह दुर्ग इतना मजबूत व अभेद्य है कि अपने निर्माण से लेकर देश की स्वाधीनता प्राप्ति तक अंग्रेजों जैसा ताकतवर दुश्मन भी दुर्ग को लड़कर नहीं जीत पाया। 1805 में लॉर्ड लेक विशाल अंग्रेजी सेना लेकर 5 माह तक दुर्ग का घेरा डाले रहा तथा जी-जान लगाने के बावजूद लोहागढ़ दुर्ग पर कब्जा नहीं कर पाया बदनसिंह ने अपने जीवन काल में ही सन् 1755 ई. में राज्य की बागडोर अपने योग्य पुत्र सूरजमल को सौंप दी।
भरतपुर राज्य के राजा थे।[उद्धरण चाहिए]