बकरी

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पालतु बकरी
Domesticated
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: जंतु
संघ: रज्जुकी (Chordata)
वर्ग: स्तनधारी (Mammalia)
गण: द्विखुरीयगण (Artiodactyla)
कुल: बोविडी (Bovidae)
उपकुल: काप्रीनी (Caprinae)
वंश: Capra
जाति: C. aegagrus
उपजाति: C. a. hircus
त्रिपद नाम
Capra aegagrus hircus
(लिनियस, १७५८)
पर्यायवाची
Capra hircus
बकरी और उसके बच्चे

बकरी एक पालतू पशु है, जिसे दूध तथा मांस के लिये पाला जाता है। इसके अतिरिक्त इससे रेशा, चर्म, खाद एवं बाल प्राप्त होता है। विश्व में बकरियाँ पालतू व जंगली रूप में पाई जाती हैं और अनुमान है कि विश्वभर की पालतू बकरियाँ दक्षिणपश्चिमी एशियापूर्वी यूरोप की जंगली बकरी की एक वंशज उपजाति है। मानवों ने वरणात्मक प्रजनन से बकरियों को स्थान और प्रयोग के अनुसार अलग-अलग नस्लों में बना दिया गया है और आज दुनिया में लगभग 300 नस्लें पाई जाती हैं। भारतवर्ष में करीब 20 नस्ल की बकरियां पाई जाती है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार सन 2011 में दुनिया-भर में 92.4 करोड़ से अधिक बकरियाँ थीं।[1]

बकरी पालन[संपादित करें]

बकरी पालन का एक लाभकारी पहलू यह भी है कि इसे बच्चे व महिलाएं आसानी से पाल सकते हैं। वर्तमान में बकरी व्यवसाय की लोकप्रियता तथा सफलता की अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि देश के विभिन्न प्रान्तों में इसका व्यवसायीकरण हो रहा है। औद्यौगिक घराने और व्यवसायी बकरी पालन पर प्रशिक्षण प्राप्त आगे रहे हैं और बड़े-बड़े बकरी फार्म सफलतापूर्वक चल रहे हैं।[2] बकरी पालन भूमिहीन मजदूरों और छोटे एवं सिमांत किसानों के जीवन निर्वाह का प्रमुख स्त्रोत है। बकरी वातावरण की विपरीत परिस्थितियों में वनस्पतियों व झाड़ियों की पत्तियां खाकर भी जीवित रह सकती है। बकरी को चलता - फिरता फ्रीज या रनिंग डेयरी एवं डबल एटीएम भी कहा जाता है, क्योंकि इससे किसी भी समय ताजा दूध निकालकर उपयोग में ले सकते हैं।

भारत की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में बकरी जैसा छोटे आकार का पशु भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। भारत में बकरी की 20 नस्लें उपलब्ध है। विगत 2-3 दशकों में ऊंची वार्षिक वध दर के बावजूद विकासशील देशों में बकरियों की संख्या में निरंतर वृध्दि, इनके सामाजिक और आर्थिक महत्व का दर्शाती है। प्राकृतिक रूप से निम्न कारक बकरी विकास दर को बढ़ाने में सहायक सिध्द भारत की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में बकरी जैसा छोटे आकार का पशु भी महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है। विगत 2-3 दशकों में ऊंची वार्षिक वध दर के बावजूद विकासशील देशों में बकरियों की संख्या में निरंतर वृध्दि, इनके सामाजिक और आर्थिक महत्व का दर्शाती है। प्राकृतिक रूप से निम्न कारक बकरी विकास दर को बढ़ाने में सहायक सिध्द हो रहे हैं-

  • बकरी का विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में अपने को ढालने की क्षमता रखना। इसी गुण के कारण बकरियां देश के विभिन्न भौगोलिक भू-भागों में पाई जाती हैं।
  • बकरी की अनेक नस्लों का एक से अधिक बच्चे की क्षमता रखना।
  • बकरी की व्याने के उपरांत अन्य पशु प्रजातियों की तुलना में पुन: जनन के लिए जल्दी तैयार हो जाना।
  • बकरी मांस का उपयोग किया जाना।

बकरीयों की प्रमुख नस्ले[संपादित करें]

  1. चम्बा
  2. गद्दी
  3. कश्मीरी
  4. जमुनापरी
  5. पश्मीना
  6. बरबरी
  7. बीटल
  8. टोगनबर्ग
  9. सिरोही
  10. बरबरी
  11. ब्लैक बंगाल
  12. ओस्मानाबादी

जमुनापरी बकरी[संपादित करें]

उत्पति स्थल जमुनापारी नस्ल का मूल उत्पत्ति स्थल उत्तर प्रदेश का इटावा जिला माना जाता है। इस नस्ल की बकरियां यमुना तथा चम्बल नदी के बिच के क्षेत्र में पाई जाती है।

विशेषता इस नस्ल की बकरियां बड़े आकार की होती है। इनका माथा उठा और चौड़ा होता है। इनके कान लम्बे लटके हुए एवं चौड़े होते हैं। इनका मुंह लम्बा, नाक रोमन तथा सींग छोटे एवं चपटे होते हैं। इनके शरीर का रंग एक जैसा नहीं होता है। परन्तु प्रायः सफेद शरीर जिस पर भूरे, काले या चमड़े कलर के धब्बे हो सकते हैं। इनकी टांगें लम्बी तथा पिछली टांगों पर लम्बे बाल होते हैं और यही इस नस्ल की विशेषता है। इस नस्ल की बकरी के शरीर का भार 60 किग्रा. तथा वयस्क बकरे का भार 90 किग्रा. तक होता है।

उपयोगिता इस नस्ल के पशु दूध उत्पादन तथा मांस उत्पादन के लिए पाले जाते हैं। इस नस्ल के पशु ग्रामीण ओर कठोर इलाकों में पालने के लिए उपयुक्त रहते हैं। इस नस्ल की बकरियां 250 दिन के दुग्ध काल में 360 से 544 किलोग्राम तक दूध देती है। इनके दूध में वसा औसतन 3.5 - 5.0 होती है।

संस्कृति में[संपादित करें]

भारतीय उपमहाद्वीपमध्य एशिया की लोक-संस्कृति में बकरी को डरपोक माना जाता है।[3] कई भाषाओं में बकरी को 'बुज़' कहते हैं और कायर व्यक्ति को 'बुज़दिल' (अर्थ: बकरी जैसा डरपोक)।[4] इसके विपरीत 'निडर' को 'शेरदिल' भी कहा जाता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "बकरी क्या है". 2023-03-07. अभिगमन तिथि 2023-09-18.
  2. "बकरी पालन". अभिगमन तिथि अगस्त 10, 2023.
  3. "हिन्दी विश्व-भारती: ज्ञान-विज्ञान का प्रमाणिक कोश," कृष्ण वल्लभ द्विवेदी, ... स्वभाव में रजब भेड़-बकरी को तरह डरपोक होता है ...
  4. Hindustani idioms: with vocabulary and explanatory notes, for the use of candidates for the higher standard Archived 2015-04-02 at the वेबैक मशीन, A. N. Phillips, pp. 44, Kegan Paul, Trench, Trubner & Co, 1892, ... Buz-dil means 'goat-hearted,' and answers to our 'chicken-hearted' ...

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]