बंजारा भाषा

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बंजारा
बंजारी
बोलने का  स्थान भारत
तिथि / काल 2011 जनगणना
समुदाय बंजारा
मातृभाषी वक्ता 1 करोड
भाषा परिवार
भारोपीय
भाषा कोड
आइएसओ 639-3 lmn

बंजारा भाषा, राजस्थानी जैसी एक प्राचीन और हिन्द-आर्य भाषा समुह की एक स्वतंत्र बोली है, जो पहले पूरे भारत के बंजारों द्वारा बोली जाती है। इसलिए इसे बंजारा भाषा कहते हैं। इसके अलावा इसे दक्षिण पश्चिमी भारत में 'लंबाडी'' और महाराष्ट्र में 'गोरमाटी' भी कहते हैं। बंजारा गौर समुदाय का उदगम स्थल शुरवीरो कि धरती राजस्थान को ही माना जाता है संभवत: इसीलिए यह मारवाड़ी , मेवाती से मिलती जुलती बोली है। बंजारा गौरमाटी यह भाषा पूरे भारत मे बोली जाती है, जो गौर बंजारा समुदाय की मातृभाषा भी मानी जाती है।[1]

इसकी क्षेत्रीय बोलियाँ भी हैं। कोई लिपि न होने के कारण इसे महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश, पंजाब में इसको वहाँ की स्थानीय लिपियों में लिखा जाता है। आज बंजारा गौरमाटी बोली में बड़े पैमाने पर साहित्य निर्माण हो रहा हैै और यह बंजारा भाषा केे लिए बड़ी उपलब्धि है।

"केसुला नै मोरारी। मायड भाषा बंजारा री। चांदा सुर्यास्यूं अमरारी। जीवे जीवेस्यू प्यारी।।इस गरिमा पुर्ण रचना को बंजारा भाषा का गौरवगीत माना जाता है  ; जिसकी रचना बंजारा साहित्य और संस्कृति के विशेषज्ञ एकनाथ नायक पंवार ने की है। संविधान की आठवी अनुसूची में बंजारा भाषा को सम्मिलित करवाने की माँग, संसद में सांसद उमेश जाधव, सांसद सुरेश धानोरकर, पूर्व सांसद हरिसिंह राठौड़, राजीव सातव आदि ने उठाई । [2][3]

विशेषताएं[संपादित करें]

बंजारा प्राचीन बोलियों में से एक है। इस भाषा का बंजारा साहित्य देवनागरी लिपि में ही लिखा जाता है। हालांकि इसकी एक स्वतंत्र लिपि निर्माण करने का कार्य जारी है। बंजारा भाषा में आज बड़े पैमाने पर किताब, रचनाएं, गीत, भजन, लघुपट जैसे विभिन्न माध्यम का निर्माण होने जा रहा है। और इस प्राचीनतम बंजारा भाषा पर अध्ययन और अनुसंधान का कार्य भी शुरू है। [4]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Inclusion of Banjara language in 8 th Schedule sought". The Hindu. 24 अक्टूबर 2021.
  2. "केसुला नै मोरारी मायड भाषा बंजारा री". दैनिक सकाळ.
  3. "Loksabha member Suresh Dhanorkar demands quota for Banjara community". The New Indian Express. 11 फरवरी 2022.
  4. डा. चव्हाण, मोहन (2007). बंजारा बोली भाषा : एक अध्ययन. सुर्या प्रकाशन.