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फोटो जर्नलिज़्म

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फोटो जर्नलिज़्म या छायाचित्र पत्रकारिता वह विधा है जिसमें तस्वीरों के माध्यम से खबरें बताई जाती हैं।[1] आमतौर पर इसमें स्थिर (स्टिल) तस्वीरों का प्रयोग होता है, लेकिन कभी-कभी यह बात वीडियो रिपोर्टिंग पर भी लागू होती है और इसके माध्यम से भी इस प्रकार की पत्रकारिता की जा सकती है।

फोटो जर्नलिज़्म अन्य प्रकार की फोटोग्राफी — जैसे डॉक्युमेंटरी, सामाजिक या युद्ध फोटोग्राफी, स्ट्रीट या सेलिब्रिटी फोटोग्राफी — से अलग होती है। इसका कारण है इसका सख़्त नैतिक ढाँचा। फोटो पत्रकार को सच्चाई और निष्पक्षता के साथ घटनाओं को उसी रूप में दिखाना होता है जैसी वे वास्तव में होती हैं। इसमें कल्पना या मनगढ़ंत चीज़ों की कोई जगह नहीं होती।

फोटो जर्नलिस्ट समाचार माध्यमों का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। उनकी तस्वीरें समाज के अलग-अलग हिस्सों को जोड़ती हैं और लोगों तक सच्ची कहानियाँ पहुँचाती हैं। एक अच्छे फोटो पत्रकार को घटनाओं की जानकारी, जागरूकता और संवेदनशीलता के साथ-साथ रचनात्मक सोच भी रखनी चाहिए ताकि वह जानकारी को प्रभावशाली और रोचक ढंग से पेश कर सके।

एक लेखक की तरह, फोटो जर्नलिस्ट भी एक रिपोर्टर होता है। लेकिन उसे कई बार तुरंत निर्णय लेने पड़ते हैं — सही पल को पकड़ने के लिए। वह अपने कैमरे के साथ कई कठिन परिस्थितियों में काम करता है — जैसे खतरनाक जगहें, खराब मौसम, भीड़भाड़ या सीमित पहुंच वाले क्षेत्र। फिर भी उसका उद्देश्य एक ही रहता है — सच्ची और प्रभावशाली खबर को तस्वीरों में उतारना।

समाचारों को तस्वीरों के साथ प्रस्तुत करने की परंपरा 19वीं सदी के मध्य में छपाई और फोटोग्राफी की तकनीकों के विकास से संभव हो सकी। इससे पहले अखबारों में केवल रेखाचित्र या नक़्क़ाशी के चित्र छपते थे। उदाहरण के तौर पर, द टाइम्स (The Times) ने 1806 में लॉर्ड होरेशियो नेल्सन के अंतिम संस्कार की एक चित्रात्मक झलक प्रकाशित की थी। लेकिन पहली साप्ताहिक चित्रयुक्त पत्रिका इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज़ (Illustrated London News) थी, जिसकी शुरुआत 1842 में हुई। इसमें छवियाँ एन्ग्रेविंग की मदद से छापी जाती थीं।

समाचार के साथ छपी पहली वास्तविक तस्वीर 25 जून 1848 की थी, जब पेरिस में “जून विद्रोह” (June Days Uprising) के दौरान बनाए गए बैरिकेड्स (barricades) की फोटो ली गई थी। यह फोटो L’Illustration पत्रिका में 1–8 जुलाई 1848 के अंक में एन्ग्रेविंग द्वारा प्रकाशित हुई।

क्राइमियन युद्ध (Crimean War) के समय फोटो जर्नलिज़्म का आरंभिक रूप देखने को मिला। इलस्ट्रेटेड लंदन न्यूज़ ने युद्ध की तस्वीरें प्रकाशित कीं, जो रॉजर फेंटन नामक फोटोग्राफर ने खींची थीं। रॉजर फेंटन को इतिहास का पहला “आधिकारिक युद्ध फोटोग्राफर” माना जाता है। उन्होंने सैनिकों पर युद्ध के प्रभाव, युद्ध स्थलों के विस्तृत दृश्य, नकली युद्ध-प्रदर्शन (मॉडल निरूपण) और सेनानायकों के पोर्ट्रेट लिए। इन तस्वीरों ने आगे चलकर आधुनिक फोटो जर्नलिज़्म की नींव रखी।

उसी युद्ध में विलियम सिम्पसन और कैरल सज़ाथमारी (Carol Szathmari) जैसे अन्य फोटोग्राफरों ने भी महत्वपूर्ण काम किया। इसी तरह, अमेरिकी गृहयुद्ध (American Civil War) के दौरान मैथ्यू ब्रैडी (Mathew Brady) की तस्वीरें प्रसिद्ध हुईं। हालांकि उस समय तक अखबारों में सीधे फोटो छापने की तकनीक विकसित नहीं हुई थी, इसलिए उनकी तस्वीरों को पहले एन्ग्रेविंग में बदलकर छापा जाता था।

19वीं सदी के उत्तरार्ध में जब तकनीक ने और विकास किया, तब अखबारों में युद्ध, आपदाओं, रेल दुर्घटनाओं और शहरों में लगी आग जैसी घटनाओं की तस्वीरें छपने लगीं। इस तरह, धीरे-धीरे फोटो जर्नलिज़्म समाचार जगत का एक अभिन्न हिस्सा बन गया, जिसने दृश्य माध्यम से समाचारों को और जीवंत और प्रभावशाली बना दिया।

भारत में

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भारत में फोटो जर्नलिज़्म का इतिहास 19वीं सदी के मध्य से शुरू होता है, जब ब्रिटिश फोटोग्राफर फेलिस बीटो ने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की तस्वीरें लीं। यह भारत में युद्ध फोटोग्राफी और समाचार चित्रण की शुरुआती मिसाल थी। 20वीं सदी की शुरुआत में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कैमरा एक संघर्ष का साक्षी बन गया। इस दौर में होमी व्यारावाला, जो भारत की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट थीं,[2] ने गांधीजी, नेहरू और अन्य नेताओं की ऐतिहासिक तस्वीरें खींचीं। आज़ादी के बाद The Illustrated Weekly of India और The Statesman जैसी पत्रिकाओं ने फोटो जर्नलिज़्म को लोकप्रिय बनाया। इस समय रघु राय, सुनिल जन्‍ह, और के. जी. महेश्वरन जैसे फोटोग्राफर सामने आए, जिन्होंने समाज, राजनीति और आपदाओं की सशक्त तस्वीरें खींचीं। 1970–80 के दशक में फोटो पत्रकारिता ने आपातकाल, बांग्लादेश युद्ध और भोपाल गैस त्रासदी जैसी घटनाओं को दर्ज किया। रघु राय की तस्वीरें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हुईं। 1990 के बाद डिजिटल तकनीक और इंटरनेट के कारण फोटो जर्नलिज़्म तेज़ी से विकसित हुआ। PTI, Reuters India, The Hindu, Indian Express जैसी एजेंसियों में पेशेवर फोटो पत्रकार जुड़े। आज फोटो जर्नलिज़्म केवल अखबारों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि डिजिटल मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्मों पर भी यह भारत के समाज, राजनीति और मानवीय संवेदनाओं को जीवंत रूप में पेश कर रहा है।

सन्दर्भ

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  1. "What Is Photojournalism and Why Is It Important?". NYTLicensing (अंग्रेज़ी भाषा में). अभिगमन तिथि: 5 October 2025.
  2. "फर्स्ट इन इंडिया: देश की पहली महिला फोटो जर्नलिस्ट हैं होमी व्यारावाला, खींचे गांधी-नेहरू के फोटो, ऐतिहासिक क्षणों को भी कैमरे में किया कैद". दैनिक भास्कर. 24 April 2020. अभिगमन तिथि: 5 October 2025.