फ़र्रुख़ सियर
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फ़र्रुख़ सियर | |||||
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मुग़ल बादशाह | |||||
शासनावधि | १७१३ - १७१९ | ||||
पूर्ववर्ती | जहांदर शाह | ||||
उत्तरवर्ती | रफी उल-दर्जत | ||||
जन्म | ११ सितम्बर १६८५ औरंगाबाद | ||||
निधन | अप्रैल 28, 1719 | (उम्र 33 वर्ष)||||
जीवनसंगी | नवाब फ़ख़्रुनिसा बेगम साहिबा इंदिरा कंवर | ||||
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राजवंश | तैमूर | ||||
पिता | अज़ीम-उस्शान | ||||
माता | साहिबा निस्वान |
फ़र्रुख़ सियर (जन्म: 20 अगस्त 1685 - मृत्यु: 28 अप्रैल 1719) एक मुग़ल बादशाह था जिसने 1713 से 1719 तक हिन्दुस्तान पर हुकूमत की।
उसका पूरा नाम अब्बुल मुज़फ़्फ़रुद्दीन मुहम्मद शाह फ़र्रुख़ सियर था। आलिम अकबर सानी वाला, शान पादशाही बह्र-उर्-बार, तथा शाहिदे-मज़्लूम उसके शाही ख़िताबों के नाम हुआ करते थे। 1715 ई. में एक शिष्टमंडल जाॅन सुरमन की नेतृत्व में भारत आया। यह शिष्टमंडल उत्तरवर्ती मुग़ल शासक फ़र्रूख़ सियर की दरबार में 1717 ई. में पहुँचा। उस समय फ़र्रूख़ सियर जानलेवा घाव से पीड़ित था। इस शिष्टमंडल में हैमिल्टन नामक डाॅक्टर थे जिन्होनें फर्रखशियर का इलाज किया था।इससे फ़र्रूख़ सियर खुश हुआ तथा अंग्रेजों को भारत में कहीं भी व्यापार करने की अनुमति तथा अंग्रेज़ों द्वारा बनाऐ गए सिक्के को भारत में सभी जगह मान्यता प्रदान कर दिया गया। फ़र्रूख़ सियर द्वारा जारी किये गए इस घोषणा को ईस्ट इंडिया कंपनी का मैग्ना कार्टा कहा जाता है। मैग्ना कार्टा का सर्वप्रथम 1215 ई. में ब्रिटेन में जाॅन-II के द्वारा हुआ था। फर्रुखशियर के पिता अजीम ओशान की 1712 में जहांदर शाह द्वारा हत्या कर दी गई थी और जहांदर शाह ने उनके पिता की मृत्यु कर मुगल सम्राट बने थे अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए फर्रूखसियर ने शाह से बदला लेना सही समझा और 10 जनवरी 1713 में समूगढ के युद्ध में फर्रूखसियर ने जहांदरशाह की सेनाओं को पराजित किया समूहगढ के निकट और उसको हत्या कर दी गई इसके तहत 1713 में वे दिल्ली पहुंचे और लाल किले पर अपने आप को मुगल साम्राट घोषित किया इसके तहत उन्होंने अपने पिता की मौत का बदला ले लिया।अपने पूरे 6 वर्ष के कार्यकाल में फर्रूखसियर सैयद बंधुओं के चंगुल से आजाद ना हो सके उन्होंने सैयद हुसैन अली खान को अपना वजीर घोषित किया जबकि वह उसको वजीर घोषित नहीं करना चाहते थे परंतु शायद बंधुओं के दबाव पर उन्होंने उसको अपना वजीर घोषित किया उन्होंने अजीत सिंह के रोकने का पूर्ण प्रयत्न किया परंतु अजीत सिंह को रोकने में सफल नहीं रहे क्योंकि लगातार दक्षिण भारत में व्यस्त रहने के कारण उत्तर भारत में कई राजपूत एवं जाट शक्तियां वापस बनाई बंदा सिंह बहादुर ग्रुप में मैं उनको बड़ी मेहनत करनी पड़ रही थी बंदा सिंह बहादुर ने 1708 लेकर मुगलों के नाक में दम कर रखा था परंतु 1716 में उन्होंने बंदा सिंह बहादुर को पकड़ लिया और 40 सिखों की हत्या कर दी बाद में उन्होंने पूरी तरीके से बंदा सिंह बहादुर की मृत्यु की जिसमें उन्होंने बंदा सिंह बहादुर की दोनों आंखें फोड़ दी और उनकी खाल निकाल ली और बहुत ही बुरी तरीके से उनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए इसे पूरे सिख लोगों में मुगलों के विरुद्ध एक आक्रोश की भावना पैदा हो गयी। मराठों के विरुद्ध भी फर्रूखसियर की नीति कुछ अलग थी सैयद हुसैन अली खान जो कि वजीर था वह फर्रूखसियर को अपना गुलाम बनाना चाहता था परंतु फर्रूखसियर ने उसके आदेशों को ना मानना शुरू कर दिया जिसके तहत उसने ढक्कन में मराठों से सहायता मांगी। उसने मराठों को दक्कन में सरदेशमुखी और चौथ वसूलने के लिए इजाजत दे दी जिससे फर्रूखसियर काफी नाराज हो गया फर्रुखशेयर ने अता हुसैन अली को पराजित करने का फैसला किया परंतु ऐसा करने में सफल नहीं हो सका क्योंकि सैयद बंधु बहुत ही ताकतवर मंत्री थे और उनका प्रभाव संपूर्ण मुगल दरबार में था।हुसैन अली बहुत ही ताकतवर मंत्री था अंततः उसने मराठों से संबंध स्थापित किए और 1719 में फर्रुखसियार का वध करवा दिया गया। किसी ना किसी कारणों से उस वक्त उनकी उम्र मात्र 33 वर्ष की थी और उसके बाद उसने दो मुगल सम्राटों के छोटे-छोटे कार्यकाल के लिए गद्दी पर बैठाया और इससे अपनी ताकत को और बढ़ाया। कोई भी मुगल सम्राट सैयद बंधु के चंगुल से बच नहीं पा रहा था अंततः मोहम्मद शाह ने 1719 में मुगल सम्राट बने उन्होंने चीनकिलिच खां यानी आशाफ जा प्रथम जो कि बाद में चलकर हैदराबाद के निजाम बने उनकी सहायता लेकर सैयद बंधुओं को खत्म किया 1723 में और एक स्वतंत्र मुगल सम्राट के रूप में उभरे सम्राट बनने के बाद मुगल साम्राज्य कुछ खास विस्तार नहीं किया बल्कि मुगल साम्राज धीरे-धीरे खत्म होना शुरू हो गया।
मुग़ल सम्राटों का कालक्रम
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सन्दर्भ
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]पूर्वाधिकारी जहांदर शाह |
मुगल सम्राट १७१३–१७१९ |
उत्तराधिकारी रफी उल-दर्जत |