प. किशोरी मोहन त्रिपाठी

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पंडित किशोरी मोहन त्रिपाठी (1912 - 1994) एक स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक थे। वह रायगढ़ जिले से एकमात्र व्यक्ति जो भारत के संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य चुने गए थे, वह संविधान सभा के युवा सदस्यो में से एक थे।

पंडित जी पंचायती राज के हिमायती, महिला शिक्षा को बढ़ावा, बाल श्रम श्रमिकों पर अंकुश लगाने जैसे प्रस्ताव सदन में लेकर आए थे।

1950 में मध्य प्रांत और बरार राज्य को समाप्त कर, (मध्य भारत) राज्य में विलय कर दिया गया। बाद में 1956 में, राज्य पुनर्गठन अधिनियम-1956 के तहत (मध्य भारत) को, नये मध्य प्रदेश में विलय कर दिया गया था, और वर्ष 2000 में मध्य प्रदेश के पूर्वी भागों को मिलाकर छत्तीसगढ़ का गठन किये जाने पर, रायगढ़ ज़िला अब छत्तीसगढ़ राज्य में आता है।

जीवन परिचय[संपादित करें]

त्रिपाठी जी का जन्म 8 नवंबर 1912 में मध्य प्रांत और बरार (अब छत्तीसगढ़) के ज़िला रायगढ़ में हुआ था। प्रारभिक शिक्षा, नटवर स्कूल से स्कूली शिक्षा लेने के बाद वो बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से साहित्य विशारद की डिग्री लेकर लौटे।

साल 1933 का था, नटवर स्कूल में शिक्षक की नौकरी मिली। लेकिन स्कूल में कुछ सियासतमंदो को उनकी बेबाकी खटक रही थी। स्कूल से निकाले जाने की तैयारियां शुरू हो गई, लेकिन हालात को भांपकर उन्होंने स्वयं नटवर स्कूल से इस्तीफा दे दिया।

वह रियासतों के विरोधी थे, इस्तीफे के बाद फिर वे रिसायत के विरोध में खुलकर सामने आ गए, उन्होंने जबर्दस्त मुहिम शुरू की। देश की आजादी के लिए विरोध प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। रियासत के कोप से बचने के लिए कई दफे उन्हें भूमिगत भी होना पड़ा। इसी बीच वो राजनीति से जुड़ें।

रियासतों के खिलाफ मोर्चा और अंग्रेजी, संस्कृत और हिंदी में किशोरी मोहन से भीम राव अंबेडकर के पत्राचार होने लगे। उसी बीच उन्होंने 1947 में किशोरी मोहन को दिल्ली बुला लिया। जहां वे संविधान निर्मात्री सभा के सदस्य हुए। उस समय राजाओं की पार्टी कही जाने वाली कांग्रेस के हर बड़े नेता के कान खड़े हो गए थे इसे क्यों शामिल किया। लेकिन जब बैठकों का दौर चला और उन्होंने अपने ड्राफ्टिंग की प्रपोस्ड डायरी में पंचायती राज, बाल श्रमिक पर अंकुश, स्त्री शिक्षा को बढ़ावा देने पर अपनी बातें रखीं, तो सभी को पता चल गया कि बाबा अंबेडकर ने सही आदमी को चुना है।

वह (1947 - 50) तक संविधान सभा के सदस्य रहे और (1950 - 52) तक अस्थायी ससंद के सदस्य मनोनीत किये गए। 1962 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में वह धर्मजयगढ़ विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए।

1967 से वह सक्रिय राजनीति से दूर होने लगे, और साधारण जीवन व्यतीत करने लगे। उन्हें कविता लिखने का बहुत शौक था। "मन बैरी मन मीत" उनके कविताओं के संग्रह की किताब है। नटवर हाई स्कूल के डायमंड जुबली के अवसर पर निकली पत्रिका ‘आलोक’ में उन्होंने लिखा था कि सांसद और विधायक बनने से ज्यादा सुकून मुझे एक शिक्षक बनने में मिला।

उनका आजादी के लिए संघर्ष, संविधान निर्माण में योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। अंततः 25 सितंबर 1994 को उनका निधन हो गया।