प्रेमसागर

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लल्लू लाल की यह कृति खड़ी बोली गद्य की आरंभिक कृतियों में से एक है। शुक्ल जी इसकी भाषा को पूर्वीपन से युक्त मानते हैं। इसमें भागवत के दशम स्कन्ध की कथा ९० अध्यायों में वर्णित है।

अध्याय[संपादित करें]

  • १ मुखबंध
  • २ देवकीविवाह, बालकवध
  • ३ गर्भस्तुति
  • ४ कृष्णजन्म
  • ५ कंस-उपद्रव
  • ६ कृष्ण-जन्मोत्सव
  • ७ पूतनाबध
  • ८ शकटभंजन, तृणावर्तवध
  • ९ विश्वदर्शन
  • १० दामबंधन
  • ११ यमलार्जुनमोक्ष
  • १२ बत्तासुर-बकासुरवध
  • १३ अघासुरवध
  • १४ ब्रह्मा-वत्सहरण
  • १५ ब्रह्मास्तुति
  • १६ धेनुकवध
  • १७ कालीमर्दन
  • १८ दावाग्निमोचन
  • १९ प्रलंबेवध
  • २० दावाग्निमोचन
  • २१ वर्षा-शरद-वर्णन
  • २२ गोपी-वेणु-गीत
  • २३ चीरहरण
  • २४ द्विजपत्नीयाचन
  • २५ गोवर्धनपूजन
  • २६ ब्रज्रक्षा
  • २७ कृष्णाप्रशंसा
  • २८ इंद्रस्तुति
  • २९ वरुणलोकगमन
  • ३० रासक्रीड़ारंभ
  • ३१ गोपीविरह-वर्णन
  • ३२ गोपीजन-विरहकथा
  • ३३ गोपीकृष्ण-संवाद
  • ३४ रासलीला-वर्णन
  • ३५ विद्याधरमोक्ष, शंखचूड़वध
  • ३६ गोपीगीतवर्णन
  • ३७ कंस-नारद-संवाद
  • ३८ व्योमासुरवध
  • ३९ अक्रूर-वृंदावनगमन
  • ३९ अक्रूरदर्शन
  • ४१ अरस्तुति
  • ४२ पुर-प्रवेश
  • ४३ कंसस्वप्रदर्शन
  • ४४ कुवलियावध
  • ४५ कंसासुरवध
  • ४६ शंखासुरवध
  • ४७ उद्धववृंदावनगमन
  • ४८ उद्धवगोपीसंबोधन
  • ४९ कुब्जाकेलिवर्णन
  • ५० अक्रूरहस्तिनापुरगमन
  • ५१ जरासंधपराजय
  • ५२ कालयवनमरण, मुचकुंदतारण, द्वारकागमन
  • ५३ श्रीकृष्णप्रति रुक्मिणीसंदेश
  • ५४ रुक्मिणीहरण
  • ५५ रुक्मिणीचरित्र
  • ५६ प्रद्युम्नजन्म, संबरवध
  • ५७ जाम्बन्ती-सत्यभामा-विवाह
  • ५८ शतधन्वावध
  • ५९ श्रीकृष्णपंचविवाह
  • ६० भौमासुरवध
  • ६१ श्रीरक्मिणीमानलीला
  • ६२ अनिरुद्धविवाह, रुक्मवध
  • ६३ ऊषास्वप्न
  • ६४ ऊषाचारित्र
  • ६५ राजानृगमोक्ष
  • ६६ बलभद्रचरित्र
  • ६७ नृपपौडूकमोक्ष
  • ६८ द्विविद-कपिवध
  • ६९ शांविवाह
  • ७० अनारदमायादर्शन
  • ७१ राजायुधिष्ठिरसंदेश
  • ७२ श्रीकृष्ण-हस्तिनापुरगमन
  • ७३ जरासंधवध
  • ७४ राजाओ का मोक्ष
  • ७५ शिशुपालमोक्ष
  • ७६ दुर्योधनमानमर्दन
  • ७७ शाल्वदैत्यवध
  • ७८ सूतवध
  • ७९ श्रीबलराम की तीर्थयात्रा
  • ८० सुदामाचरित्र
  • ८१ सुदामादरिद्रगमन, सुदामा का ऐश्वर्य
  • ८२ श्रीकृष्ण-बलराम की कुरुक्षेत्र-यात्रा
  • ८३ श्रीकृष्ण की रानियो और द्रौपदी की बातचीत
  • ८४ बसुदेवजी का यज्ञ
  • ८५ देवकी का मृतकपुत्रयाचन
  • ८६ सुभद्राहरण, श्रीकृष्णचंद का मिथिलागमन
  • ८७ नरनारायण-नारदसंवाद
  • ८८ रुद्रमोक्ष, वृकासुरवध
  • ८९ विंजकुमारहरण
  • ९० द्वारिकाविहारवर्णन

इतिहास[संपादित करें]

सन 1567 ई, में चतर्भुज मिश्र ने ब्रजभाषा में दोहा-चौपाई में भागवत के दशम स्कन्ध का अनुवाद किया था। उसी के आधार पर लल्लूलाल ने 1803 ई. में जॉन गिलक्राइस्ट की प्रेरणा से फोर्ट विलियम कॉलेज के विद्यार्थियों के शिक्षण के लिए 'प्रेमसागर' की रचना की। लल्लूलाल ने इस ग्रंथ को अपने संस्कृत यंत्रालय, कलकत्ता से सन् 1810 ई. में प्रकाशित किया। लल्लूलाल ने अपने प्रकाशित संस्करण की भूमिका में ग्रन्थ की भाषा के सम्बन्ध में लिखा है-

श्रीयत गुन-गाहक गुनियन-सुखदायक जान गिलकिरिस्त महाशय की आज्ञा से सं. 1860 में श्री लल्लूलालजी लाल कवि ब्राह्मन गुजराती सहस्र-अवदीच आगरे वाले ने विसका सार ले, यामिनी भाषा छोड़।

संस्करण[संपादित करें]

'प्रेमसागर' के प्रमुख संस्करण ये हैं -

  • प्रेमसागर : सम्पादक तथा प्रकाशक लल्लूलाल, कलकत्ता 1810 ई.
  • प्रेमसागर : कलकत्ता 1842 ई.
  • प्रेमसागर : सम्पादक जगन्नाथ सुकुल, कलकत्ता 1867 ई.
  • प्रेमसागर : कलकत्ता 1878 ई.
  • प्रेमसागर : कलकत्ता 1889 ई.
  • प्रेमसागर : कलकत्ता 1907 ई.
  • प्रेमसागर : बनारस 1923 ई.
  • प्रेमसागर : सम्पादक कालिकाप्रसाद दीक्षित, प्रयाग 1832 ई.
  • प्रेमसागर : सम्पादक बैजनाथ केडिया, कलकत्ता, 1924 ई.
  • प्रेमसागर : अंग्रेज़ी में अनूदित अदालत खाँ, कलकत्ता, 1892 ई.
  • प्रेमसागर : अनूदित, कैप्टन डब्ल्यू हौलिंग्स, कलकत्ता. 1848 ई.
  • प्रेमसागर : सचित्र पंचम संस्करण, सन् 1957 ई. श्रीवेंकटेश्वर प्रेस, बम्बई।
  • अंग्रेज़ी में भी प्रेमसागर के छः संस्करण विभिन्न स्थानों में प्रकाशित हुए हैं।

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]