प्रेमचन्द के फटे जूते

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प्रेमचन्द के फटे जूते हरिशंकर परसाई का व्यंग्य-संग्रह है।

विशेषताएँ[संपादित करें]

इस संग्रह को तीन भागों में बाँटा गया है। यथा- 'व्यंग्य निबन्ध' , 'व्यंग्य कथा' तथा 'विविध' आदि। इनमें से प्रथम भाग व्यंग्य निबन्ध में कुल ३० निबन्धों का संग्रह किया गया है। दूसरे भाग में २० व्यंग्य कथाओं का समावेश किया गया है।

व्यंग्य[संपादित करें]

इन्स्पेक्टर मातादीन चाँद पर[1] - इसमें भारतीय पुलिस व्यवस्था पर व्यंग्य किया गया है। इसके संदर्भ में परसाई लिखते हैं कि-चाँद सरकार ने भारत सरकार को लिखा था-"यों हमारी सभ्यता बहुत आगे बढ़ी है। पर हमारी पुलिस मे पर्याप्त सक्षमता नहीं है। वह अपराधी का पता लगाने और उसे सजा दिलाने में अक्सर सफल नहीं होती। सुना है आपके यहाँ रामराज है। मेहरबानी करके किसी पुलिस अफसर को भेजें जो हमारी पुलिस को शिक्षित कर दे।"[2]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

हरिशंकर परसाई

संदर्भ[संपादित करें]

  1. हरिशंकर, परसाई (२०१५). प्रेमचन्द के फटे जूते. नयी दिल्ली: भारतीय ज्ञानपीठ. पृ॰ २१०. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-263-5166-9.
  2. हरिशंकर, परसाई (२०१५). प्रेमचन्द के फटे जूते. नयी दिल्ली: भारतीय ज्ञानपीठ. पृ॰ २१०.