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प्राच्य दर्शन

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प्राच्य दर्शन या पूर्वी दर्शन को एशियाई दर्शन या ओरिएंटल दर्शन भी कहा जाता है। पूर्व और दक्षिण एशिया में उत्पन्न विभिन्न दर्शन इसमें शामिल हैं जैसे - जिनमें चीनी दर्शन, जापानी दर्शन, कोरियाई दर्शन और वियतनामी दर्शन शामिल हैं, जो पूर्वी एशिया में प्रमुख माने जाते हैं।[1] वहीं दूसरी तरफ़ भारतीय दर्शन है जो दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, तिब्बत, जापान और मंगोलिया में प्रमुख माना जाता है। इसमें हिंदू दर्शन, जैन दर्शन, बौद्ध दर्शन आदि सम्मिलित हैं।

भारतीय दर्शन

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भारतीय दर्शन भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीन दार्शनिक परंपराओं को दर्शाता है। हिंदू धर्म की जड़ें संभवतः सिंधु घाटी सभ्यता के समय तक जाती हैं। प्रमुख परंपरावादी सम्प्रदायों की उत्पत्ति ईसा पूर्व के आरंभ तथा गुप्त साम्राज्य के मध्य हुई थी।

परंपरावादी विद्यालय

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प्रमुख भारतीय दार्शनिक स्कूलों को रूढ़िवादी या विधर्मी - आस्तिक या नास्तिक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। रूढ़िवादी भारतीय हिंदू दर्शन के छह प्रमुख विद्यालय हैं-न्याय, वैशेषिक, सांख्य, योग, मीमांसा और वेदांत। इसके अतिरिक्त पाँच प्रमुख नास्तिक विद्यालय-जैन, बौद्ध, आजीविका, अज्ञान और चार्वाक। हिंदू दर्शन के प्रत्येक विद्यालय में व्यापक ज्ञान-मीमांसात्मक साहित्य विद्यमान है जिसे प्रमाण-शास्त्र कहा जाता है।[2]

सांख्य तथा योग

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सांख्य एक द्वैतवादी दार्शनिक परंपरा है जो सांख्यकारिका (सी. 320-540 ई.) पर आधारित है। योग में ध्यान और मुक्ति पर जोर दिया जाता था इसका प्रमुख ग्रंथ योगसूत्र (लगभग 400 ई.) है।


  1. वैन एस्स, हंस (2005). "रिव्यू ऑफ़ रीथिंकिंग कन्फ्यूज़निज़्म, पास्ट एंड प्रज़ेंट इन चाइना, जापान, कोरिया, एंड वियतनाम". Monumenta Serica. पपृ॰ 500–504. अभिगमन तिथि 17 जनवरी 2025.
  2. P, Bilimoria (1993). Floistad, G (संपा॰). Pramāṇa epistemology: Some recent developments, in Asian philosophy, Vol 7. Springer. पृ॰ 137-154. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-94-010-5107-1.

बाहरी कड़ियाँ

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