प्राकृतपैंगलम

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प्राकृतपैंगलम छन्दशास्त्र का एक ग्रन्थ है जिसमें प्राकृत और अपभ्रंश छन्दों की विवेचना की गयी है। इसमें अनेक कवियों के छन्द मिलते हैं, जैसे विद्याधर, शार्ङ्गधर, जज्ज्वल, बब्बर, हरिब्रह्म, लक्ष्मीधर आदि।

डॉ. सुनीति कुमार चटर्जी का मत है कि प्राकृतपैंगलम किसी एक काल की रचना नहीं है। इसमें संकलित पदों का रचनाकाल 900 ईस्वी से लेकर 1400 ईस्वी तक का है। हिन्दी की उपभाषाओं पर कार्य करने वाले विद्वान् भी इसकी भाषा के सम्बन्ध में एकमत नहीं हैं। ब्रजभाषा पर कार्य करने वाले विद्वानों ने इसे ब्रज भाषा का ग्रंथ माना है किन्तु डॉ उदयनारायण तिवारी के अनुसार इसमें अवधी, भोजपुरी, मैथिली और बंगला के प्राचीनतम रूप भी मिलते हैं।

यह ग्रन्थ आदिकालीन काव्य/भाषा/हिन्दी की प्रकृति को समझने में बहुत सहयक है। यह उस समय के विभिन्न वर्गों की आर्थिक स्थिति के बारे में जानकारी देता है। डॉ रामचन्द्र शुक्ल ने इसके अध्ययन के बाद अनुमान लगाया है कि शार्ङ्गधर अपभ्रंश के "हम्मीररासो" के मूल रचयिता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]