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युग प्रवर्तक छत्रपति शिवाजी का नाम किसी भी भारतीय के लिए अपरीचित नहीं है। जिस समय समस्त भारतवर्ष मुसलमानों की सत्ता के अधीन हो चुका था, शिवाजी ने एक स्वतन्त्र हिन्दू राज्य की स्थापना करके इतिहास में एक सर्वथा नवीन अध्याय की रचना की। अपने इस सकल प्रयत्न के माध्यम से उन्होंने सिद्ध कर दिखाया कि हिन्दुओं की आत्मा अभी सोयी नहीं है। ऐसा प्रशंसनीय कार्य शताब्दियों से किसी हिन्दू के हाथों सम्पन्न नहीं हुआ था। उनके इस कार्य का महत्व इस दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह एक परित्यक्ता जैसी मां के पुत्र थे। उनके जीवन में पति का योगदान नहीं के बराबर रहा था। पिता शाहजी ने माता जीजाबाई तथा दादाजी कोण्डदेव के संरक्षण में पूना की जागीर सौंप देने के बाद उनके प्रति अपने कर्त्तव्य की इतिश्री ही समझ ली थी। फलतः उनकी शिक्षा-दीक्षा भी समुचित रूप से नहीं हो पायी, फिर भी उन्होंने अपने बल पर एक स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की। वस्तुतः सिंह का न तो कोई अभिषेक करता है और न कोई अन्य संस्कार ही। वस्तुतः वह अपने बल पर ही वनराज की पदवी प्राप्त करता है।

अप्रतिम राजनीतिक चतुरता, अद्वितीय बुद्धिमत्ता अद्भुत साहस, प्रशंसनीय चरित्रबल आदि गुण शिवाजी के चरित्र की अन्य विशेषताएं हैं। अपने धर्म संस्कृति राष्ट्र आदि के प्रति परम आस्थावान होते हुए भी वह अन्य सभी धर्मों के प्रति आदर तथा अन्य सम्प्रदाय के लोगों के प्रति पूर्ण सद्भावना रखते थे। उनकी राजनीति में धार्मिक तथा जातीय भेदभाव के लिए कोई स्थान नहीं था। शिवाजी वस्तुतः महान थे। शिवाजी के गुणों की प्रशंसा उनके शत्रु भी करते थे। [पूरा पढ़ें]