सामग्री पर जाएँ
मुख्य मेन्यू
मुख्य मेन्यू
साइडबार पर जाएँ
छुपाएँ
परिभ्रमण
मुखपृष्ठ
चौपाल
हाल में हुए परिवर्तन
हाल की घटनाएँ
समुदाय प्रवेशद्वार
निर्वाचित विषयवस्तु
यादृच्छिक लेख
योगदान
प्रयोगपृष्ठ
अनुरोध
दान करें
सहायता
सहायता
स्वशिक्षा
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
देवनागरी कैसे टाइप करें
दूतावास (Embassy)
खोजें
खोजें
खाता बनाएँ
लॉग-इन करें
व्यक्तिगत उपकरण
खाता बनाएँ
लॉग-इन करें
लॉग-आउट किए गए संपादकों के लिए पृष्ठ
अधिक जानें
योगदान
वार्ता
प्रवेशद्वार
:
दर्शनशास्त्र/चयनित सूक्ति/5
भाषाएँ जोड़ें
कड़ियाँ जोड़ें
प्रवेशद्वार
संवाद
हिन्दी
पढ़ें
स्रोत सम्पादित करें
इतिहास देखें
उपकरण
उपकरण
साइडबार पर जाएँ
छुपाएँ
क्रियाएँ
पढ़ें
स्रोत सम्पादित करें
इतिहास देखें
सामान्य
यहाँ क्या जुड़ता है
पृष्ठ से जुड़े बदलाव
चित्र अपलोड करें
विशेष पृष्ठ
स्थायी कड़ी
पृष्ठ की जानकारी
Get shortened URL
Download QR code
छोटा यू॰आर॰एल
मुद्रण/निर्यात
पुस्तक बनायें
पीडीएफ़ रूप डाउनलोड करें
प्रिन्ट करने लायक
मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से
<
प्रवेशद्वार:दर्शनशास्त्र
|
चयनित सूक्ति
“
ब्रह्म सत्यं जगत् मिथ्यं, जीवो ब्रह्मैव नापरः
ब्रह्म
ही सत्य है, जगत
माया
है,
जीव
और
ब्रह्म
में कोई अंतर नहीं
”
—
आदिशंकराचार्य
प्राचीन
भारतीय
दार्शनिक
,
अद्वैत दर्शन
को सारांशित करते हुए
सामग्री की सीमित चौड़ाई को टॉगल करें