प्रमुख स्थल

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  • भूमिया बाबा मंदिर मासी अल्मोड़ा:- इस अलौकिक तल्ला गेवाड़ घाटी में स्थित है यह मंदिर उत्तराखण्ड अल्मोड़ा जिला विकासखण्ड चौखुटिया, विधान सभा क्षेत्र द्वाराहाट में भूमिया बाबा जी का प्राचीन मंदिर उत्तराखंड के रामनगर से लगभग 113 किलोमीटर दूर बद्रीनाथ रोड पर स्थित है। चौखुटिया से पहले मासी बाजार में स्थित यह मंदिर आज से 25 साल पहले छोटा सा था लेकिन भक्तों के सहयोग से मंदिर का पुनर्निमाण करके भव्य और विशाल बनाया गया है। मासी में प्रवेश करते ही यह मंदिर आपको सड़क के किनारे दिखाई देगा। पवित्र रामगंगा के किनारे बना यह मंदिर आलौकिक है। उत्तराखंड भूमि देवता की बहुत ही मान्यता है। इस क्षेत्र के रहने वाले  उत्तराखंडी चाहे दुनिया के किसी भी कोने में रहें भूमि देवता के मंदिर में आकर पूजा करवाना नहीं भूलते।
भूमिया मंदिर
  • राम पादुका मंदिर – पन्याली, मासी अल्मोड़ा:- इस अलौकिक तल्ला गेवाड़ की रंगीली धरती के पन्याली-मासी में बसे प्रसिद्ध व पौराणिक राम पादुका मंदिर रामगंगा नदी के पावन तट मासी बाजार से लगभग 3 km पर स्तिथ है मंदिर में श्री राम जी के चरण पादुका की श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना की एवं जलाभिषेक किया जाता है माना जाता है कि मुनि विस्वमित्र जी यहां यज्ञ किया करते थे।असुर श्री विस्वमित्र जी को इस रमणीक स्थान को छोड़ने पर मजबूर करने लगे।असुरों के आतंक से चिंतित होकर एक दिन विस्वमित्र जी श्री राजा दशरथ जी के पास गये और भगवन राम और लक्ष्मण जी को अपने साथ ले जाने की अनुमति मागी।भगवान् राम और लक्ष्मण दोनों भाई इस देवभूमि में आकर असुरों का सर्वनास कर दिया।श्री विस्वामित्र जी ने प्रभु से कहा - हे प्रभु,आप यहाँ आ ही गये हो कुछ ऐसा कीजिये जिस से यहाँ के लोग आपकी चरणों की रज पा सके।विश्वामित्र के निवेदन से भगवान राम जी ने अपने चरण पादुका इस स्थान पर छोड़े।अविरल बहाने वाली नदी जो भगवान राम के पद चिन्हों को छू कर निकलती है यही रामपदुका से ही इस का नाम रामगंगा पड़ा।इस का वर्णन स्कन्द पुराण में किया गया है।आज भी यहाँ पर इस पौराणिक मंदिर में श्री राम जी के चरण चिन्ह हैं।इस जगह को आज भी बहुत बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है।

तल्ला गेवाड़ की रंगीली धरती के कोट्यूड़ा-मासी में बसे प्रसिद्ध व रामगंगा नदी के पावन तट पर पन्याली के पास स्थित पौराणिक राम पादुका मंदिर परिसर में प्रति वर्ष वैशाली के दिन पारंपरिक स्नान व अनुष्ठान मेला लगता है। बैशाखी के दिन प्रात:काल से ही आसपास के गांवों के साथ साथ दूर दूर से श्रद्धालुओं का पहुंचने का क्रम शुरू हो जाता है। इस दौरान श्रद्धालुओं ने रामगंगा नदी में स्नान कर मंदिर में श्रीराम के चरण पादुका की पूजा अर्चना करते हैं एवं जलाभिषेक करते हैं। परिजनों ने अपने बच्चों के चूड़ा कर्म व जनेऊ संस्कार भी कराते हैं। परिवार की सुख-समृद्धि के लिए अपने पुरोहितों से शांति पाठ भी संपन्न कराते हैं।

श्रीरामपादुका मंदिर परिसर में बैशाखी से एक दिन पूर्व रात का मेला लगने की परंपरा रही है। कुछ साल पहले यहां गांवों से ग्रामीण गाजे बाजे व नगाड़े-निशानों के साथ पहुंचते थे तथा पूरी रात मेला लगता था। इस दौरान झोड़े, छपेली व भगनौल जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रम चलते थे।