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प्रथागत कानून

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A court presided over by a customary chief in the Belgian Congo, ल.1942

प्रथागत कानून या प्रचलित परंपरागत कानून वह विधिक प्रणाली है जो लंबे समय से समाज में मान्य रिवाज़ों, प्रथाओं और परंपराओं पर आधारित होती है।[1] यह लिखित कानून नहीं होता, बल्कि ऐसे नियमों और व्यवहारों का समूह है जिन्हें समुदाय के लोग लंबे समय से मानते और पालन करते आ रहे हैं। किसी समाज की रीति-रिवाज़ और परंपराएँ जब बाध्यकारी रूप में स्वीकार कर ली जाती हैं और यह विश्वास हो कि उनका पालन करना एक कानूनी दायित्व है, तो उसे प्रथागत कानून कहा जाता है।[2]

परिभाषा और विशेषताएँ

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प्रथागत कानून की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह समुदाय के व्यवहार और सामाजिक आदतों पर आधारित होता है। यह धीरे-धीरे विकसित होता है और एक बार जब लोग इसे न्याय और सामाजिक व्यवस्था का अंग मानने लगते हैं, तो यह स्वतः कानून का रूप ले लेता है। इसके लिए दो तत्व आवश्यक माने जाते हैं: पहला, लंबे समय तक लगातार प्रचलन (long usage) और दूसरा, उसे कानूनी बाध्यता के रूप में मानना (opinio juris)।

ऐतिहासिक विकास

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इतिहास में प्रथागत कानून का महत्व बहुत बड़ा रहा है। लिखित कानूनों के आने से पहले अधिकतर समाज अपने विवादों और न्यायिक प्रक्रियाओं को परंपरागत नियमों से हल करते थे। यूरोप में मध्ययुगीन समय में ‘custumals’ नामक स्थानीय रिवाज़ और परंपराएँ न्यायालयों द्वारा स्वीकार की जाती थीं। इंग्लैंड में De Legibus et Consuetudinibus Angliae नामक प्रसिद्ध कृति में इन्हीं प्रथाओं का संकलन किया गया। जर्मनी, फ्रांस और स्पेन में भी प्राचीन काल में स्थानीय customary rules समाज के संचालन का आधार बने।

अंतरराष्ट्रीय प्रथागत कानून

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प्रथागत कानून केवल स्थानीय समाज तक सीमित नहीं है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय कानून में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। जब किसी विशेष आचरण को अधिकांश राष्ट्र लगातार अपनाते हैं और यह विश्वास हो कि यह कानूनी रूप से आवश्यक है, तो वह आचरण अंतरराष्ट्रीय प्रथागत कानून बन जाता है। उदाहरणस्वरूप, नरसंहार (genocide), समुद्री डकैती (piracy), दास प्रथा (slavery) और यातना (torture) के विरुद्ध नियम अंतरराष्ट्रीय प्रथागत कानून का हिस्सा माने जाते हैं। यह उन क्षेत्रों में विशेष रूप से उपयोगी है जहाँ लिखित अंतरराष्ट्रीय संधियाँ या समझौते उपलब्ध नहीं होते।[3]

स्थानीय न्याय व्यवस्था और प्रथागत कानून

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कई देशों में आज भी स्थानीय या आदिवासी समुदाय अपने विवादों को निपटाने के लिए प्रथागत कानून पर आधारित न्याय प्रणालियों का उपयोग करते हैं। अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के अनेक हिस्सों में परंपरागत पंचायतें, आदिवासी परिषदें और स्थानीय न्यायालय इसी आधार पर कार्य करते हैं। यह न्याय प्रणाली सरल, सुलभ और समुदाय की सामाजिक-सांस्कृतिक आवश्यकताओं के अनुरूप होती है। हालाँकि, कभी-कभी यह आधुनिक मानवाधिकार मानकों से टकराती है, विशेषकर लैंगिक समानता, विवाह, उत्तराधिकार और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के मामलों में।[4]

भारत में प्रथागत कानून

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भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में भी प्रथागत कानून का विशेष महत्व रहा है। अनेक आदिवासी समाज, ग्रामीण पंचायतें और पारंपरिक समुदाय आज भी अपने रीति-रिवाज़ों पर आधारित कानूनों का पालन करते हैं। विवाह, दहेज, उत्तराधिकार और भूमि से जुड़े विवादों का समाधान प्रायः स्थानीय प्रथाओं के आधार पर किया जाता है। भारतीय संविधान इन प्रथाओं को मान्यता देता है, लेकिन साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि वे मूलभूत अधिकारों और आधुनिक न्याय व्यवस्था के विपरीत न हों।[5][6][7]

प्रथागत कानून की चुनौतियाँ

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यद्यपि प्रथागत कानून सामाजिक पहचान और सामुदायिक सहयोग की मजबूत नींव है, लेकिन इसके सामने कई चुनौतियाँ भी हैं। कई बार यह आधुनिक कानूनी मानकों से मेल नहीं खाता और मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है। विशेष रूप से महिलाओं और कमजोर वर्गों के अधिकारों के संदर्भ में यह विवादास्पद हो सकता है। यही कारण है कि आज कई देश प्रथागत कानून और राज्य के औपचारिक कानून के बीच संतुलन बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

निष्कर्ष

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प्रथागत कानून केवल अतीत की परंपराओं का अवशेष नहीं है, बल्कि यह जीवंत और विकसित होनेबाली कानूनी प्रणाली है। यह समाज की सांस्कृतिक विविधता, सामाजिक आवश्यकताओं और न्याय की अवधारणाओं को समझने का एक महत्वपूर्ण साधन है। स्थानीय स्तर पर यह न्याय की पहुँच सुनिश्चित करता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह कानूनी मानकों को व्यापक आधार प्रदान करता है।

  1. "Customary Law | Judiciaries Worldwide". judiciariesworldwide.fjc.gov. अभिगमन तिथि: 2025-10-04.
  2. "Customary law | Britannica". www.britannica.com (अंग्रेज़ी भाषा में). अभिगमन तिथि: 2025-10-04.
  3. "customary international law". LII / Legal Information Institute (अंग्रेज़ी भाषा में). अभिगमन तिथि: 2025-10-04.
  4. https://www.icj.org/wp-content/uploads/2019/06/Universal-Trad-Custom-Justice-GF-2018-Publications-Thematic-reports-2019-ENG.pdf
  5. Menski, Werner (2008-09-10). Hindu Law: Beyond Tradition and Modernity (अंग्रेज़ी भाषा में). Oxford University Press. ISBN 978-0-19-908803-4.
  6. eprints.soas.ac.uk https://eprints.soas.ac.uk/view/people/Menski=3AWerner_F=3A=3A.html. अभिगमन तिथि: 2025-10-04. {{cite web}}: Missing or empty |title= (help)
  7. Admin (2024-09-04). "CUSTOMARY LAWS IN INDIA: TRADITION AND MODERNITY - Jus Corpus" (अमेरिकी अंग्रेज़ी भाषा में). अभिगमन तिथि: 2025-10-04.