पोलिश-सोवियत युद्ध
'पोलिश सोवियत युद्ध (14 फरवरी 1919 – 18 मार्च 1921) मुख्य रूप से द्वितीय पोलिश गणराज्य और रूसी सोवियत संघीय समाजवादी गणराज्य (RSFSR) के बीच लड़ा गया था, जो प्रथम विश्व युद्ध और रूसी क्रांति के बाद हुआ। यह युद्ध पोलैंड और सोवियत रूस के बीच साम्राज्यवादी संघर्ष का परिणाम था, जिसमें दोनों देशों के बीच राजनीतिक और क्षेत्रीय विवाद थे।[1]
युद्ध की पृष्ठभूमि
[संपादित करें]केंद्रीय शक्तियों के पतन और 11 नवम्बर 1918 के युद्धविराम के बाद, व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में सोवियत रूस ने ब्रेस्ट-लितोव्स्क संधि को निरस्त कर दिया और जर्मन सेना द्वारा छोड़ी गई ओबर ओस्ट क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिए अपनी सेनाएँ पश्चिम की ओर बढ़ाईं। लेनिन ने न केवल पोलैंड को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में देखा, बल्कि इसे यूरोप में कम्युनिस्ट क्रांतियों के फैलाव के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग भी माना। इस बीच, पोलिश नेता, विशेष रूप से जोसेफ पिल्सुद्स्की, ने पोलैंड के 1772 से पहले के सीमा को पुनः स्थापित करने का उद्देश्य रखा और देश की क्षेत्रीय स्थिति को मजबूत करने के लिए संघर्ष किया।[2]
युद्ध का आरंभ और पोलिश–यूक्रेनी युद्ध
[संपादित करें]1919 में, पोलिश बलों ने वर्तमान लिथुआनिया और बेलारूस के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा कर लिया और पोलिश–यूक्रेनी युद्ध में विजयी हुए। हालांकि, रूसी नागरिक युद्ध में सोवियत बलों ने मजबूत वापसी की और यूक्रेनी पीपुल्स रिपब्लिक के नेता सिमोन पेटलियुरा को 1920 में पिल्सुद्स्की के साथ मिलकर बोल्शेविकों का विरोध करने के लिए मजबूर किया।
कीव आक्रमण
[संपादित करें]अप्रैल 1920 में, पिल्सुद्स्की ने पोलैंड के लिए अनुकूल सीमाएँ प्राप्त करने के उद्देश्य से कीव आक्रमण शुरू किया। 7 मई को पोलिश और यूक्रेनी सहयोगी बलों ने कीव पर कब्जा कर लिया, लेकिन सोवियत सेनाएँ निर्णायक रूप से पराजित नहीं हुईं। इस आक्रमण में स्थानीय समर्थन की कमी थी, और कई यूक्रेनी लोग रेड आर्मी में शामिल हो गए। इसके बाद, सोवियत रेड आर्मी ने जून 1920 में एक सफल पलटवार किया। अगस्त तक, सोवियत बलों ने पोलिश सेनाओं को वारसॉ तक पीछे धकेल दिया।
वारसॉ की निर्णायक लड़ाई
[संपादित करें]हालांकि, अगस्त 1920 में वारसॉ की निर्णायक लड़ाई में पोलिश बलों ने अप्रत्याशित रूप से जीत हासिल की, जिसे "विस्तुला पर चमत्कारी जीत" के रूप में जाना जाता है। यह युद्ध पोलिश इतिहास में एक महत्वपूर्ण सैन्य विजय मानी जाती है।
युद्ध का अंत
[संपादित करें]18 अक्टूबर 1920 को युद्धविराम हुआ, और इसके बाद शांति वार्ताएँ शुरू हुईं, जिसके परिणामस्वरूप 18 मार्च 1921 को रिगा की शांति संधि पर हस्ताक्षर किए गए। इस संधि ने पोलैंड और सोवियत रूस के बीच विवादित क्षेत्रों को विभाजित किया। पोलैंड की पूर्वी सीमा करज़ोन रेखा से लगभग 200 किमी पूर्व में स्थापित हुई, जिससे पोलैंड ने आधुनिक यूक्रेन और बेलारूस के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण प्राप्त किया।[3]
युद्ध के परिणाम
[संपादित करें]इस युद्ध के परिणामस्वरूप, यूक्रेनी सोवियत समाजवादी गणराज्य और बेलारूसी सोवियत समाजवादी गणराज्य को सोवियत राज्य के रूप में आधिकारिक मान्यता मिली। पिल्सुद्स्की के इंटरमैरियम संघ के लिए महत्वाकांक्षाएँ विफल हो गईं, लेकिन पोलैंड की वारसॉ की जीत ने उसे अंतरयुद्धकाल में पूर्वी यूरोप में एक प्रमुख शक्ति बना दिया।
अन्य नाम
[संपादित करें]यह युद्ध कई नामों से जाना जाता है, जिनमें "पोलिश–सोवियत युद्ध" सबसे सामान्य है, जबकि "रूसो–पोलिश युद्ध" या "पोलिश–बोल्शेविक युद्ध" भी इस्तेमाल होते हैं। पोलिश स्रोतों में इसे अक्सर "1920 की युद्ध" के रूप में भी संदर्भित किया जाता है।
निष्कर्ष
[संपादित करें]पोलिश सोवियत युद्ध ने पोलैंड को एक प्रमुख पूर्वी यूरोपीय शक्ति के रूप में स्थापित किया, और इसने सोवियत रूस के पश्चिमी विस्तार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस युद्ध की सैन्य और राजनीतिक रणनीतियाँ आज भी पूर्वी यूरोप के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Russo-Polish War | History, Facts, & Significance | Britannica". www.britannica.com (in अंग्रेज़ी). 2025-01-02. Retrieved 2025-01-28.
- ↑ "Polish-Soviet War 1920-1921 / 1.0 / encyclopedic". 1914-1918-Online (WW1) Encyclopedia (in अंग्रेज़ी). Retrieved 2025-01-28.
- ↑ Davies, Norman (2011-04-30). White Eagle, Red Star: The Polish-Soviet War 1919-20 (in अंग्रेज़ी). Random House. ISBN 978-1-4464-6686-5.