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पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991

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प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991
उपासना स्‍थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991
भारतीय संसद
एक अधिनियम जो 15 अगस्त 1947 तक अस्तित्व में आए हुए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक आस्था से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने और किसी स्मारक के धार्मिक आधार पर रखरखाव पर रोक लगाता है।
शीर्षक Act No. 34 of 1991
द्वारा विचार किया गया भारतीय संसद
द्वारा अधिनियमित राज्य सभा
अधिनियमित करने की तिथि अगस्त 5, 1991 (1991-08-05)
द्वारा अधिनियमित लोक सभा
अधिनियमित करने की तिथि अगस्त 6, 1991 (1991-08-06)
अनुमति-तिथि अगस्त 9, 1991 (1991-08-09)
हस्ताक्षर-तिथि अगस्त 9, 1991 (1991-08-09)
विधायी इतिहास
विधेयक का उद्धरण Bill No. XXIX of 1991
बिल प्रकाशन की तारीख अगस्त 5, 1991 (1991-08-05)
पठन (विधायिका) # प्रथम पठन अगस्त 5, 1991 (1991-08-05)
पठन (विधायिका) # द्वितीय पठन अगस्त 6, 1991 (1991-08-06)
स्थिति : प्रचलित

प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविज़न) एक्ट, 1991 या उपासना स्‍थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 भारत की संसद का एक अधिनियम है।[1][2] यह केंद्रीय कानून 18 सितंबर, 1991 को पारित किया गया था। यह 15 अगस्त 1947 तक के अस्तित्व में आए हुए किसी भी धर्म के पूजा स्थल को एक आस्था से दूसरे धर्म में परिवर्तित करने पर और किसी भी स्मारक के धार्मिक आधार पर रखरखाव पर रोक लगाता है।[3] मान्यता प्राप्त प्राचीन स्मारकों पर धाराएं लागू नहीं होंगी। यह अधिनियम उत्तर प्रदेश राज्य के अयोध्या में स्थित राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद और उक्त स्थान या पूजा स्थल से संबंधित किसी भी वाद, अपील या अन्य कार्यवाही के लिए लागू नहीं होता है।[4] इस अधिनियम ने स्पष्ट रूप से अयोध्या विवाद से संबंधित घटनाओं को वापस करने की अक्षमता को स्वीकार किया।[5] बाबरी संरचना को ध्वस्त करने से पहले 1991 में पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव द्वारा एक कानून लाया गया था।[6] यह अधिनियम जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में फैला हुआ है। राज्य के लिए लागू होने वाले किसी भी कानून को वहां की विधानसभा द्वारा अनुमोदित किया जाना चाहिए।

वैधानिक प्रावधान

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उपासना स्‍थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 ने कहा कि सभी प्रावधान 11 जुलाई, 1991 को लागू होंगे। धारा 3, 6 और 8 तुरंत लागू होंगे। धारा 3 में पूजा स्थलों का रूपांतरण भी होता है। 1991 के इस अधिनियम के तहत अपराध एक जेल की अवधि के साथ दंडनीय हैं जो तीन साल तक की सजा के साथ-साथ जुर्माना भी हो सकता है। अपराध को जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 की धारा 8 (खंड "ज" के रूप में) में शामिल किया जाएगा, चुनाव में उम्मीदवारों को अयोग्य ठहराने के उद्देश्य से उन्हें अधिनियम के तहत दो साल या उससे अधिक की सजा सुनाई जानी चाहिए।

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. "क्या है स्पेशल वरशिप प्रोविजन ऐक्ट, जिससे मुस्लिम विवादित मस्ज़िद हिंदुओं को नहीं दे पा रहे?".
  2. "1991". Archived from the original on 4 मार्च 2019. Retrieved 7 सितंबर 2019.
  3. "1991 central law precludes Ayodhya judgment setting precedent". Archived from the original on 10 अगस्त 2019. Retrieved 7 सितंबर 2019.
  4. "Legal status of Gyanvapi, Shahi Idgah mosques".
  5. "बाबरी मस्जिद का क्या? अयोध्या में मस्जिद से ज्यादा महत्वपूर्ण जमीन कैसे बन गई!".
  6. "संघ को एक नहीं बल्कि भगवान राम के लिए दो मंदिरों की रणनीति पर विचार करना चाहिए". Archived from the original on 17 जनवरी 2021. Retrieved 7 सितंबर 2019.

बाहरी कड़ियाँ

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