पुष्पदन्त (कवि)
पुष्पदंत तथा गंधर्वराज पुष्पदंत के बीच भ्रमित न हों
पुष्पदंत अपभ्रंश भाषा के महाकवि थे जिनकी तीन रचनाएँ प्रकाश में आ चुकी हैं- 'महापुराण', 'जसहरचरित' (यशोधरचरित) और 'णायकुमारचरिअ' (नागकुमारचरित)। इन ग्रंथों की उत्थानिकाओं एवं प्रशस्तियों में कवि में अपना बहुत कुछ वैयक्तिक परिचय दिया है। इसके अनुसार पुष्पदंत काश्यपगोत्रीय ब्राह्मण थे। उनके पिता केशवभट्ट और माता मुग्धादेवी पूर्व में शिवभक्त थे, फिर वे जैन धर्मावलंबी हो गए। उन्हें तत्कालीन राष्ट्रकुल नरेश कृष्णराज तृतीय के मंत्री भरत ने आश्रय दिया और उन्हें काव्यरचना की ओर प्रेरित किया। इसके फलस्वरूप कवि ने महापुराण की रचना की और उसे भरत नामांकित किया। यह महापुराण सिद्धार्थ संवत्सर में प्रारंभ किया गया और क्रोधन संवत्सर, आषाढ़ शुक्ला 10, तदनुसार 11 जून 965 ई. को पूर्ण हुआ था। कवि ने अपनी अन्य दो रचनाएँ भरत मंत्री के पुत्र नन्न के नाम से अंकित की हैं, अतएव वे उक्त काल के पश्चात् रची गई होंगी। कवि ने स्वयं अपने लिए स्थान-स्थान पर 'अभिमान मेरु' और 'कव्व पिसल्ल' (काव्य पिशाच) इन दो उपाधियों का उल्लेख किया है, जिनसे उनकी मनोवृत्ति तथा रचनानैपुण्य का पता चलता है।
कृतियाँ
[संपादित करें]पुष्पदंतकृत तीन अपभ्रंश काव्यों का परिचय इस प्रकार है :
महापुराण
[संपादित करें]इसमें कुल 102 संधियाँ हैं जिनमें क्रमश: 24 जैन तीर्थकरों, 12 चक्रवर्तियों, 9 वासुदेवों, 9 प्रतिवासुदेवों और 9 बलदेवों - इस प्रकार 63 शलाकापुरुषों अर्थात् महापुरुषों का चरित्र सुंदर काव्य की रीति से वर्णित है। आदि का अधिकांश भाग, जो 'आदिपुराण' भी कहलाता है, आदि तीर्थंकर ऋषभदेव और उनके पुत्र भरत चक्रवर्ती के जीवनचरित् विषयक है। शेष शलाकापुरुषों का चरित्विषयक भाग 'उत्तरपुराण' कहलाता है। महापुराण के आदि कवि ने अपने पूर्ववर्ती [[भरतमुनि|भरत], पिंगल, भामह तथा दंडी का तथा मंचमहाकाव्यों का भी उल्लेख किया है।
जसहरचरित
[संपादित करें]यह काव्य चार संधियों में पूरा हुआ है और इसमें नामनुसार यशोधर का जीवनचरित और उनके जन्मजन्मांतरों का वर्णन किया गया है, जिनका उद्देश्य हिंसा से होनेवाली हानियों तथा अहिंसा के गुणों का प्रभुत्व दिखलाना है।
णायकुमारचरिउ
[संपादित करें]इस काव्य में नौ संधियाँ हैं जिनमें कामदेव के अवतार नागकुमार का चरित्रवर्णन किया गया है और इसके द्वारा श्रुतपंचमी के उपवास का सुफल दिखलाया गया है।
इस प्रकार पुष्पदंत की उक्त तीनों रचनाएँ धार्मिक है तथापि वे प्रबंधकाव्य के उत्कृष्ट गुणों से परिपूर्ण हैं। काव्यकल्पना, शब्दयोजना, छंदवैचित्र्य, रसपरिपाक, अलंकारयोजना, वर्णनवैचित्र्य आदि काव्यगुण पुष्पदंत की उक्त अपभ्रंश रचनाओं में अपनी चरम सीमा को पहुँचे हुए दिखाई देते हैं। कथा की रोचकता और भाषा का लालित्य इन रचनाओं में अपना पृथक् वैशिष्ट्य रखता है। हिंदी काव्य में जो प्रबंध काव्य की तथा छंद, रस और अलंकारयोजना आदि की शैलियाँ पाई जाती हैं उनके ऐतिहासिक विकास को समझने के लिए अपभ्रंश की रचनाएँ और विशेषत: पुष्पदंत के उक्त काव्य बड़े महत्वपूर्ण हैं। हिंदी इतिहास 'शिवसिंहसरोज' के कर्ता ने हिंदी के आदिकवि का नाम पुष्प या पुष्प अंकित किया है। आश्चर्य नहीं जो उस उल्लेख का अभिप्राय अपभ्रंश के इन्हीं महाकवि पुष्पदंत से हो, क्योंकि इन्हीं अपभ्रंश की रचनाओं से हिंदी भाषा के बीज अंकुरित होते हुए पाए जाते है।
सन्दर्भ ग्रन्थ
[संपादित करें]- महापुराण, संपादक- पं॰ ल. वैद्य, प्रका. मा. दि. जैन ग्रंथमाला, बंबई, 1940-41;
- जसहरचरिउ, संपा. पं॰ ल. वैद्य, करंजा जैन ग्रंथमाला - 1931;
- णायकुमारचरिउ, संपा. हीरा लाल जैन, 1933;
- अपभ्रंश साहत्य - हरिवंश कोछड़, प्रकाशन - भारतीय साहित्य मंदिर, दिल्ली - वि. सं. 2013।