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पुनर्जागरण वास्तुकला

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टेम्पिएटो डेल ब्रैमांटे, मोंटोरियो में सैन पिएत्रो, रोम, 1502, यह छोटा मंदिर उस स्थान को दर्शाता है जहाँ सेंट पीटर को सूली पर चढ़ाया गया था।

पुनर्जागरण वास्तुकला 15वीं और 16वीं शताब्दी के मध्य विकसित यूरोपीय वास्तुकला है। इस वास्तुकला ने गोथिक वास्तुकला का अनुसरण किया। इसके बाद बारोक वास्तुकला और नवशास्त्रीय वास्तुकला का आई। यह शैली फ्लोरेंस में सर्वप्रथम विकसित हुई थी। फिलिपो ब्रुनेलेस्ची इसके प्रवर्तकों में से एक थे। यह पुनर्जागरण शैली शीघ्र ही अन्य इतालवी शहरों में फैल गई। यह शैली अलग-अलग समय पर अलग-अलग प्रभाव के साथ यूरोप के अन्य भागों में भी फैली।

प्राचीन रोमन वास्तुकला से यह प्रतीत होता है कि पुनर्जागरण शैली समरूपता, अनुपात, ज्यामिति आदि पर बल देती है।

पुनर्जागरण की उत्पत्ति 15वीं शताब्दी की इटली के फ्लोरेंस शहर से हुई थी। फ्लोरेंस में ही नई वास्तुकला शैली की शुरुआत हुई। गॉथिक वास्तुकला का विकास रोमनस्क्यू वास्तुकला से हुआ था। फ़्लोरेंस से विकसित वास्तुकला संयोग मात्र नहीं था, बल्कि उसे जानबूझकर वे वास्तुकारों अस्तित्व में लाए जो अतीत के "स्वर्ण युग" की व्यवस्था को पुनर्जीवित करना चाहते थे।

इतालवी वास्तुकारों ने हमेशा स्पष्ट रूप से परिभाषित और संरचनात्मवादी रूपों को प्राथमिकता दी।[1]

राजनैतिक

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15वीं शताब्दी में फ्लोरेंस और वेनिस ने अपने आसपास के अधिकांश क्षेत्रों में अपनी शक्ति का विस्तार किया, जिससे कलाकारों का आवागमन संभव हो सका। 1377 ई. में, एविग्नन पापेसी से पोप की वापसी और रोम में पोप दरबार की पुनः स्थापना से उस शहर में समृद्धि आई जिससे उसका महत्व और बढ़ गया। साथ ही इटली में पोप का महत्व और अधिक बढ़ गया।[2]

इन्हें भी देखें

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  1. फ्लेचर, बैनिस्टर; क्रुइकशैंक, डैन; सैंट, एंड्र्यू; ब्लुंडेल-जोनस, पीटर; फ्रैंप्टन, कैन्नेथ (2001). सर बैनिस्टर फ्लैचर'स "अ हिस्ट्री ऑफ़ आर्किटेक्चर" (20th संस्करण). ऑक्सफ़ोर्ड: आर्किटेक्चरल प्रेस. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 0-7506-2267-9.
  2. जोएल्ले, रोल्लो-कोस्तर (2008). रैडिंग सैंट पीटर: एंप्टी सीस, वॉयलेंस, एंड द इनिशिएशन ऑफ़ द ग्रेट वेस्टर्न शिज़्म (1378). ब्रिल. पृ॰ 182.

बाहरी कड़ियाँ

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