पीड़ाहारी अपवृक्कता

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Analgesic nephropathy
वर्गीकरण एवं बाह्य साधन
Classically caused by mixed analgesics containing phenacetin, analgesic nephropathy was once a common cause of acute kidney injury.
आईसीडी-१० N14.0
आईसीडी- 583.89, 584.7
ईमेडिसिन med/2839 

पीड़ाहारक अपवृक्कता फेनासेटिन, पारासिटामोलऔर एस्पिरिन जैसे पीड़ाहारक दवाओं के कारण गुर्दे को होने वाला नुकसान है। इस शब्द का इस्तेमाल आमतौर पर इन दवाओं के संयोजन का संदर्भ देते हैं जिनके अत्यधिक उपयोग से नुकसान हो सकता है, विशेष रूप से वे संयोजन जिनमें फेनासतिन शामिल हों. इस शब्द का इस्तेमाल किसी एक पीड़ाहारक दवा से गुर्दे को हुए नुकसान का वर्णन करने के लिए भी किया जा सकता है।

दर्दनाशक दवाओं से होने वाली गुर्दे की विशिष्ट बीमारियां गुर्दा संबंधी अंकुरकाबुर्द परिगलन और क्रोनिक इंटर्टिशियल नेफ्रैटिस हैं। वे दोनों आमतौर पर रक्त का प्रवाह कम होने के कारण, एंटीऑक्सीडेंट के तेजी से उपभोग और गुर्दे को होने वाली उत्तरवर्ती ओक्सिदेटिव क्षति के कारण होते हैं। इस गुर्दे की क्षति के परिणामस्वरूप प्रगतिशील गुर्दा जिर्णन (chronic renal failure) असामान्य मूत्रपरीक्षण परिणाम, उच्च रक्तचाप, अथवा एनीमिया हो सकता है। एक विशिष्ट समुदाय के लोग जो की पीड़ाहारक वृक्कविकृति के रोग से ग्रस्त है अंतिम चरण की गुर्दे की बीमारी को विकसित कर सकते हैं।

पीड़ाहारक अपवृक्कता एक समय में ऑस्ट्रेलियायूरोपऔर संयुक्त राज्य अमेरिका के कई क्षेत्रों में गुर्दा क्षति और अंतिम चरण की गुर्दे की बीमारी का सामान्य कारण हुआ करती थी। अधिकांश क्षेत्रों में, 1970 और 1980 के दशक में फेनासटिन के उपयोग में कमी आने के बाद इसमें तेज़ी से गिरावट आई।

इतिहास[संपादित करें]

पीड़ानाशक दवाओं का एक वर्ग है, जिसका दर्द के उपचार में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता हैं। इनमें एस्पिरिन और अन्य गैर स्टेरायडल सूजन-रोधी दवाएं (NSAID) शामिल हैं और साथ ही एंटीपायरेटिक्सपारासिटामोल (जिसे संयुक्त राज्य अमेरिका में एसिटामिनोफेन के रूप में जाना जाता है) और फेनासेटिन शामिल हैं। 19वीं सदी की शुरूआत में अस्तित्व में आने के बाद, फेनासेटिन ऑस्ट्रेलिया यूरोप, और संयुक्त राज्य अमेरिका में पीड़ाहारक दवाओं में मिश्रित करने का एक सामान्य घटक हुआ करता था।[1] इन मिश्रित पीड़ाहारकों में आमतौर पर एस्पिरिन फेनासेटिन, पारासिटामोल या सैलिसिलेमाइड और कैफ़्फ़ीइन या कोडिंन सहित अन्य NSAID मौजूद होते हैं।[2]

1950 के दशक में, स्पूलर और ज़ोलिंजर ने फेनासेटिन के अत्यधिक उपयोग और गुर्दा क्षति के बीच सम्बन्ध के बारे में बताया।[3] इन्होंने कहा कि फेनासेटिन का उपयोग करने वाले पुराने लोगों में कुछ विशिष्ट बिमारियां जैसे, वृक्कीय पैपिला कोशिकाक्षय और चिरकारी अंतरालीय वृक्कशोथ के संक्रमण की ज्यादा सम्भावना थी। इस अवस्था को पीड़ाहारक अपवृक्कता करार दिया गया था और फेनासेटिन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया, हालांकि कोई निरपेक्ष कारणात्मक भूमिका प्रदर्शन नहीं की गई। यद्यपि आगे की रिपोर्टे, जिसके अनुसार फेनासेटिन के अत्यधिक उपयोग से गुर्दे को हानि की सम्भावना बढ़ जाती थी, को कई देशों में ६० और ८० के दशक में प्रतिबंधित कर दिया गया|[1]

फेनासेटिन के उपयोग में कमी आते ही इस व्याप्ति में भी कमी आई कि पीड़ाहारक वृक्क्शोथ अंतिम चरण गुर्दा सम्बन्धी बिमारियों की वजह है। उदाहरण के लिए, स्विटजरलैंड,के डेटा के मुताबिक रोगियों में उपरोक्त व्याप्ति 1981 में 28% से घटकर 1990 में १२% हो गयी थी|[4] स्विट्जरलैंड में ही एक शव परीक्षा अध्ययन के बाद यह सुझाव दिया गया था कि आम जनता में पीड़ाहारक वृक्क्शोथ के प्रति व्याप्ति में 1980 में 3% से 2000 में 0.2% तक की गिरावट देखी गयी|.[5]

हालांकि इन डेटा के अनुसार माना जा सकता है कि एनाल्जेसिक नेफ्रोप्ति लगभग सभी क्षेत्रों में समाप्त हो चुकी है, फिर भी कुछ अन्य क्षेत्रों में स्थिति अभी भी उतनी अच्छी नहीं है। विशेष रूप से, बेल्जियम में, डायलिसिस रोगियों के बीच एनाल्जेसिक नेफ्रोप्ति की व्यापकता 1984 में 17.9% और 1990 में 15.6% थी।[6][7] मिशेलसेन और डी स्कीपर ने सुझाव दिया है कि पीड़ाहारक अपवृक्कता की व्याप्ति बेल्जियम में डायलिसिस रोगियों के बीच गैर फेनासेटिन दर्दनाशक दवाओं के कारण नहीं है, बल्कि इसलिए है क्योंकि बेल्जियम डायलिसिस के लिए बुजुर्ग रोगियों का एक उच्च अनुपात स्वीकार करता है। इन लेखकों के अनुसार, पीड़ाहरक अपवृक्कता का अनुपात अधिक है क्योंकि बेल्जियम में उन डायलिसिस रोगियों का प्रतिशत अधिक है जो क़ि फेनासेटिन का लंबे समय तक उपयाग किया है।[8]

रोगलक्षण-शरीरक्रिया विज्ञान[संपादित करें]

छोटे रक्त वाहिकाओं में मौजूद चकते के निशान, जिन्हें काठिन्य केशिका भी कहा जाता है, अपवृक्कता के प्रारंभिक घाव हैं।[9] मूत्रनली, वृक्कीय श्रोणि और वृक्काणु आपूर्ति केशिका में मिलने वाली, काठिन्य कोशिका वृक्कीय पैपिला कोशिकाक्षय का कारण बन जाता है जो आगे चलकर चिरकारी अंतरालीय वृक्कशोथ में परिवर्तित हो जाता है।

फेनासेटिन और अन्य पीड़ाहारक इस नुकसान का नेतृत्व किस प्रकार करते हैं, यह अब तक समझ से परे है। वर्तमान में यह माना जाता है कि NSAID की गुर्दा संबंधी विषाक्तताएं और ज्वरनाशी फेनासेटिन और पारासिटामोल आपस में क्रिया करके पीड़ाहारक नेफ़्रोपैथी का निर्माण करते हैं।

पीड़ाहारक अपवृक्कता के साथ जुड़ी एक जांचकर्ताओं की समिति ने 2000 में रिपोर्ट में कहा क़ि उनको अभी भी गैर-फेनासेटिन पीड़ाहारकों का पीड़ाहारक वृक्क्शोथ के बीच सम्बन्ध स्थापित करने के ठोस सबूत नहीं मिले हैं|[10]

एस्पिरिन और NSAID[संपादित करें]

उचित गुर्दा कार्यप्रणाली पर्याप्त रक्त के प्रवाह पर निर्भर करता है। गुर्दा रक्त का प्रवाह एक जटिल, नियंत्रित प्रक्रिया है जो कई हार्मोन और छोटे अणुओं पर निर्भर करता है जैसे प्रोस्टाग्लैंडीन। सामान्य परिस्थितियों में, गुर्दे द्वारा उत्पादित प्रोस्टाग्लैंडीन E2 (2 PGE) गुर्दे में पर्याप्त रक्त प्रवाह के लिए आवश्यक है। प्रोस्टाग्लैडीन की तरह सभी, PGE 2 संश्लेषण सायक्लूक्सीजेनसेस पर निर्भर करते हैं।

एस्पिरिन और अन्य NSAID सायक्लूक्सीजेनसेस निषेधक रहे हैं। गुर्दे में, इस निषेध के परिणामस्वरूप PGE 2 की एकाग्रता में कमी आती है जिसके कारण रक्त प्रवाह में कमी आती है। क्योंकि गुर्दे में रक्त सर्वप्रथम वृक्क प्रांतस्था में और फिर गुर्दे मज्जा (भीतर की किडनी) में प्रवाहित होती है, इसलिए गुर्दे का अंदरूनी भाग रक्त प्रवाह के प्रति बड़ा ही संवेदनशील होता है। गुर्दे की संरचनाओं का अंतरतम भाग वृक्कीय पैपिला, पर्याप्त रक्त प्रवाह बनाए रखने के लिए प्रोस्टाग्लैंडीन पर विशेष रूप से निर्भर करता है। इसलिए सायक्लूक्सीजेनसेस के निषेध से वृक्कीय पैपिला को क्षति पहुंचती है, इस प्रकार वृक्कीय पैपिला कोशिकाक्षय का जोखिम बढ़ जाता है।[2]

सबसे स्वस्थ गुर्दे NSAID-प्रेरित रक्त के प्रवाह में कमी कि क्षतिपूर्ति करने के लिए पर्याप्त शारीरिक आरक्षण आरक्षित होते हैं। हालांकि, फेनासेटिन या पारासितामोल से अतिरिक्त क्षति होने पर वह पीड़ाहारक वृक्क्शोथ का रूप ले सकती है।

फेनासेटिन और पारासिटामोल[संपादित करें]

यह स्पष्ट नहीं है कि कैसे फेनासेटिन गुर्दे को चोट तक पहुंचता है|[2] बैक और हार्डी का प्रस्तावित किया है कि फेनासेटिन चयापचयों से लिपिड पेरॉक्सीडेशन होता है जिससे गुर्दे की कोशिकाओं को क्षति पहुंचती है।

पारासिटामोल फेनासेटिन का प्रमुख मेटाबोलाईट है जो एक विशिष्ट यांत्रिकी प्रक्रिया से गुर्दे को हानि पहुंचता है। गुर्दे की कोशिकाओं में, सायकलोक्सीजेनसेस पारासिटामोल के एन-एसीटल-पी-बेंजोक्यूनेमाइन (N-acetyl-p-benzoquinoneimine) (NAPQI) में रूपांतरण को उत्प्रेरित करता है। NAPQI विकार एंजाइमी संयुग्मन द्वारा ग्लूटाथियोन का क्षरण करता है जो कि प्राकृतिक रूप से एक एंटीऑक्सिडेंट है|[11] ग्लूताथियोन की कमी से, कोशिकाएं ऑक्सीडेटिव क्षति के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाती है।

नैदानिक सुविधाओं[संपादित करें]

पीड़ाहारक अपवृक्कता के नैदानिक निष्कर्ष [12]
खोज अनुपात प्रभावित
सिरदर्द 35-100%
प्युरिया 50-100%
अरक्तता (एनीमिया) 60-9
उच्च रक्त-चाप 15-70%
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल के लक्षण 40-60%
मूत्र-नलिका में होने वाले संक्रमण 30-60%

पीड़ाहारक वृक्क्शोथ के रोगियों में आम लक्षणों में सिर दर्द,1}खून की कमी,उच्च रक्तचाप और मूत्र में सफेद कोशिकाऐ (प्युरिया) शामिल हैं। पीड़ाहारक वृक्क्शोथ से ग्रसित कुछ व्यक्तियों के मूत्र में प्रोतियां भी हो सकती है।[13]

रोग की पहचान[संपादित करें]

इस रोग की पहचान परंपरागत रूप से रोगविषयक खोज पर निर्धारित होती है जो कि दर्दनाशकों के अत्यधिक उपयोग पर आधारित निष्कर्षों से सामने आती है। यह अनुमान है कि 2 और 3 किलो एस्पिरिन या फेनासेटिन के सेवन के बाद ही पीड़ाहारक वृक्क्शोथ के लक्षण सामने आते हैं|[2]

एक बार संदेह होने पर टोमोग्राफी (सीटी) द्वारा पीड़ाहारक अपवृक्कता की सटीकता के साथ पुष्टि की जा सकती है। एक परीक्षण में सीटी इमेजिंग पर झल्लों का खरिकसंचय 92% संवेदनशील और शत प्रतिशत विशिष्टता के साथ पीड़ाहारक अपवृक्कता का निदान किया गया था।

== जटिलताएं पीड़ाहारक अपवृक्कता की जटिलताओं में फ़ाइलोनेफिर्टिस[14] और अंतिम चरण में गुर्दे की बीमारी[4] शामिल है। गलत पूर्वानुमान के लिए संभावित जोखिम कारकों में आवर्तक मूत्र पथ संक्रमण और लगातार बढ़ता रक्तचाप भी शामिल हैं|[15] पीड़ाहारक अपवृक्कता से मूत्र प्रणाली के कैंसर के विकसित होने का जोखिम बढ़ जाता है।[16]

उपचार[संपादित करें]

पीड़ाहारक अपवृक्कता के उपचार की शुरुआत दर्दनाशकों के विच्छेदन के साथ शुरू होती है, जो अक्सर बीमारी को बढ़ने से रोकती है और गुर्दे को सामान्य अवस्था में भी ला सकती है|[15]

शब्दावली[संपादित करें]

शब्द दर्दनाशक अपवृक्कता आमतौर पर दर्दनाशक दवाओं से होने वाली क्षति का उल्लेख करती है, खासतौर पर उनमें जिनमें फेनासतेंन मिली हुई हो। इसी कारन से इसे दर्दनाशक दुष्प्रयोग अपवृक्कता भी कहा जाता है। मूर्रे कम अनुमान लायक दर्दनाशक-जुड़े अपवृक्कता को तरजीह देते हैं। .[12] दोनों शब्दों सामान्यतः संक्षिप्त रूप में ए ए एन कहा जाता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  2. de Broe, Marc E (2008). "Analgesic nephropathy". प्रकाशित Curhan, Gary C (ed.) (संपा॰). UpToDate. Waltham, MA. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)सीएस1 रखरखाव: फालतू पाठ: editors list (link)
  3. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  4. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  5. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; pmid16891638 नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  6. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  7. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  8. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  9. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  10. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  11. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  12. "Analgesic-associated nephropathy in the U.S.A.: epidemiologic, clinical and pathogenetic features" Archived 2016-09-23 at the वेबैक मशीन(Murray and Goldberg 1978)
  13. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  14. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  15. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर
  16. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर

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