पागलपन

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मध्यकाल में एक पागलखाने में मौजूद व्यक्ति का चित्र जिसे ज़ंजीरों से बांधा गया था।

पागलपन एक ऐसी स्थिति होती है जिसमे इंसान अपनी भावनाओं का नियंत्रण नहीं कर पाता है ।ये प्रायः जन्मजात या समाज द्वारा बनाई गई अवस्था होती है जिसमे इंसान खुद या दूसरों को हानि पहुंचाने का प्रयास करता है।

एक पागल व्यक्ति सोचने समझने और सामान्य जन मानस की तरह निर्णय लेने में असमर्थ होता है। उसे दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है। यदि पागलपन अति गम्भीर हो तो ऐसे व्यक्ति से समाज को खतरा तो है, वह स्वयं को भी चोट और हानि पहुँचा सकता है। इसलिए कई बार ऐसे व्यक्ति को पागलखाने में रखा जाता है जहाँ उसकी देखरेख के अलावा उपचार भी किए जाने के प्रयास होते हैं और ग्रसित लोगों का ध्यान रख कर उनकी देख भाल की जाती है।

पागलपन का वर्गीकरण[संपादित करें]

  • चिकित्सीय तौर पर पागलपन चार तरह का होता है:
  1. मेनिया (mani

a)

  1. मोनोमनिया (monomania)
  2. डीमेनशिया (demantia)

बनावटी पागलपन[संपादित करें]

बनावटी पागलपन का मतलब झूठा पागलपन होता है।

पागलपन शब्द का उपयोग उन व्यक्तियों के लिए किया गया है जो अपना ध्यान खुद नहीं रख सकते। मानसिक तौर पर बीमार होने के कारण वो अपने कानूनी कर्तव्यों कों समझ नहीं पाते। जब क़ानून के समक्ष पागलपन का कोई मामला आता है तो एक चिकित्सा अधिकारी कों उसकी जांच के लिए बुलाया जाता है कि व्यक्ति सच में पागल है या बनावटी पागलपन दिखा रहा है।

बनावटी पागलपन का मतलब मानसिक बीमारी का अनुकरण करना होता है। जब कोई व्यक्ति अपने किये हुए अपराध कों छुपाने के लिए बनावटी पागलपन करता है। या फिर अपने काम से बचने के लिए भी कोई बनावटी पागलपन दिखता है। कानूनी तौर पर अपने कर्तव्यों से बचने के लिए भी कोई व्यक्ति बनावटी पागलपन दिखता है।

सन्दर्भ[संपादित करें]