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पाकिस्तान में जैन धर्म

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एक जैन मंदिर सिरकप, इंडो-ग्रीक राज्य का हिस्सा, आधुनिक दिन तक्षशिला, पंजाब , पाकिस्तान

पाकिस्तान में जैन धर्म (پاکستان میں جین مت) की एक व्यापक विरासत और इतिहास है, लेकिन जैन समुदाय का इस देश में आज एक बहुत छोटा हिस्सा ही बाकि है।

गुजरांवाला में विजयनंदसूरी का स्मारक मंदिर। अब सब्जी मंडी क्षेत्र के पुलिस स्टेशन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

इस देश भर में कई प्राचीन जैन मंदिर बिखरे पड़े हुए हैं। [1] बाबा धरम दास एक संत व्यक्ति थे जिनकी समाधि पाकिस्तान के पंजाब में सियालकोट शहर के पास, पसरूर में कृषि मुख्य कार्यालय के पीछे, चावंडा फाटिक के पास एक नाले के किनारे स्थित है जिसे देओका या देओके या देग नाम से भी जाना जाता हैं। इस क्षेत्र के एक अन्य प्रमुख जैन भिक्षु गुजरांवाला के विजयनंदसूरी थे, जिनकी समाधि (स्मारक मंदिर) आज भी शहर में उपस्थित है। [1]

भाबरा (या भाभरा) पंजाब का एक प्राचीन व्यापारी समुदाय था जो मुख्य रूप से जैन धर्म का अनुसरण करता है। [2][3]

भाबरा का मूल गृह क्षेत्र अब पाकिस्तान में है। जबकि व्यावहारिक रूप से सभी भाबरों ने पाकिस्तान छोड़ दिया है, कई शहरों में अभी भी भाबरों के नाम पर क्षेत्र हैं।

सियालकोट यहाँ के सभी जैन भाबरा थे और मुख्य रूप से सियालकोट और पसरूर में रहते थे। उनही के नाम पर सराय भाब्रियन और भाब्रियन वाला इलाकों के नाम रखे गए थे। भारत के विभाजन से पहले यहाँ कई जैन मंदिर थे। [4] पसरूर: पसरूर का विकास एक जैन जमींदार द्वारा किया गया था, जिसे राजा मान सिंह ने जमीन दी थी। बाबा धरम दास उसी जमींदार परिवार से थे, उनकी एक व्यापारिक यात्रा के दौरान हत्या कर दी गई थी। [5] गुजरांवाला लाला करम चंद भाबरा द्वारा प्रबंधित दो पुराने जैन पुस्तकालय यहां मौजूद थे, जिन्हें रामकृष्ण गोपाल भंडारकर ने देखा था। [6] लाहौर: यहां कुछ मोहल्लों में जैन मंदिर थे जिन्हें आज भी थारी भाबरियन और गाली बभ्रियन कहा जाता है। [7] रावलपिंडी: भाबरा बाजार का नाम उनके नाम पर ही रखा गया है। मियांवाली: एक जानी-मानी जाती आजकल भी बहुमत में मौजूद है। और कुछ लोग सिंध में भी रहते थे। [8]

जैन मंदिर

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नगरपारकर का एक प्राचीन जैन मंदिर

जैन मंदिर, थारी भाबरियन लाहौर शहर। जैन दिगंबर मंदिर शिखर के साथ, पुराना अनारकली जैन मंदिर चौक: [9] यह मंदिर 1992 के दंगों में नष्ट कर दिए गये थे। [10] अब यहां एक इस्लामिक स्कूल इस पूर्व मंदिर से चलाया जाता है। 31°33′41″N 74°18′29″E / 31.561389°N 74.308056°E / 31.561389; 74.308056.[11][12]

52 गुंबदों वाला मूल गोरी मंदिर, नगरपारकर
मूल गोरी मंदिर में प्रतीकात्मक और ऐतिहासिक कलाकृति
  • नागर बाज़ार मंदिर नागर पारकर शहर के मुख्य बाजार में मौजूद है। शिखर और तोरण द्वार सहित मंदिर की संरचना पूरी तरह से बरकरार है। 1947 में पाकिस्तान की स्वतंत्रता तक, और शायद उसके कुछ समय बाद भी कुछ वर्षों तक इसका उपयोग किया गया। शहर के बाहर भी एक खंडहर मंदिर है।
  • भोडसर जैन मंदिर नगर से 7.2 किलोमीटर दूर भोडसर जैन मंदिर, सोढ़ा शासनकाल के दौरान बना इस क्षेत्र की राजधानी थी। तीन मंदिरों के अवशेष, अब भी मौजूद हैं। 1897 में, उनमें से दो गौशाला के रूप में इस्तेमाल किए जा रहे थे और तीसरे बुरी हालत में था। सबसे प्राचीन मंदिर, पत्थरों के शास्त्रीय शैली में बनाया गया था, जो लगभग 9 वीं शताब्दी में बनाया गया था। यह एक ऊँचे मंच पर बनाया गया था जहां पत्थर को काटकर बनये गए सीढ़ियों से पहुंचा जाता था। इसमें पत्थर के सुंदर विशाल स्तंभ और अन्य संरचनात्मक तत्व हैं। शेष दीवारें अस्थिर हैं और आंशिक रूप से ढह गई हैं। भवन के कुछ हिस्सों को स्थानीय लोगों ने खंडित कर दिया था, जिन्होंने ईंटों और पत्थरों का इस्तेमाल अपने घरों के निर्माण के लिए किया था। यह शायद सिंध के स्मारकों में सबसे शानदार है। कहा जाता है कि दो अन्य जैन मंदिरों का निर्माण 1375 ईस्वी और 1449 ईस्वी में कंजूर और लाल पत्थर से किया गया था, जिनमें नक्काशी और खूँटीदार गुंबद थे।
  • करौंजर जैन मंदिर पहाड़ के आधार पर है।
  • वीरवा जैन मंदिर, यहां जैन मंदिरों के कई खंडहर हैं। मंदिरों में से एक में 27 देवकुलिक थे। पौराणिक परिनगर भी इसी खंडहर के पास में हैं। इन मंदिरों में से एक अच्छे संरक्षण में है।
  • विरवा गोरी मंदिर विरवा से 14 मील की दूरी पर है। 52 सहायक मंदिरों के साथ पौराणिक मंदिर 1375-76 ईस्वी में बनाया गया था। यह जैन तीर्थंकर गोरी पार्श्वनाथ को समर्पित है।
  • जैन श्वेताम्बर मंदिर शिखर के साथ, रणछोर रेखा, कराची [13]
  • जैन श्वेताम्बर मंदिर, हैदराबाद, सिंध [13]

जैन समुदाय

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1947 से पहले, पंजाब और सिंध क्षेत्रों में जैनियों के छोटे समुदाय थे। 1947 में विभाजन के दौरान उनमें से लगभग सभी भारत आ गए। पाकिस्तान में जैन इतिहास के पाँच हज़ार वर्षों में लोगों ने ज़ेरक्स के आक्रमण, श्वेत हूण आक्रमण से अपने आप को बचा लिया। लेकिन इस्लामी आक्रमण के साथ जजिया, धमकी, और इस्लामी कानून आते हैं, जैन धर्म पाकिस्तान से गायब हो गया है।[15]

उल्लेखनीय लोग

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विभाजन पूर्व पाकिस्तान से प्रमुख जैन:

  • बाबा धरम दास
  • गुलु लालवानी
  • विजयनंदसूरी

सन्दर्भ

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  1. Khalid, Haroon (4 September 2016). "Sacred geography: Why Hindus, Buddhist, Jains, Sikhs should object to Pakistan being called hell". Dawn. मूल से 5 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 September 2016.
  2. Final Report of Revised Settlement, Hoshiarpur District, 1879-84 By J. A. L. Montgomery, p. 35
  3. Census of India, 1901 By India Census Commissioner, Sir Herbert Hope Risley, p. 137-140
  4. Gazetteer of the Sialkot District, 1920 - Page 51
  5. "Baba Dharam Dass Tomb in Pasrur". मूल से 3 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 दिसंबर 2019.
  6. The two Jain Libraries at Gujranwala by Ramkrishna Gopal Bhandarkar in A Catalogue of Sanskrit Manuscripts in the Library of the Deccan College, by Deccan College Library, Franz Kielhorn- 1884 -- Page 12
  7. "jainrelicsinpakistan - abafna". Abafna.googlepages.com. मूल से 11 जुलाई 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2012-04-20.
  8. A gazetteer of the province of Sindh by Albert William Hughes - 1876, - Page 224
  9. "TEPA to remodel roads leading to Jain Mandir Chowk". मूल से 2 मार्च 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 दिसंबर 2019.
  10. Ghauri, Aamir (5 December 2002). "Demolishing history in Pakistan". BBC News. मूल से 21 जुलाई 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 21 दिसंबर 2019.
  11. "Wikimapia". मूल से 25 अगस्त 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 10 दिसंबर 2018.
  12. LIST OF JAIN TEMPLES IN PAKISTAN Archived 27 सितंबर 2007 at the वेबैक मशीन
  13. List of Jain temples in Pakistan Archived 2016-12-15 at the वेबैक मशीन, Jain World
  14. Bronkhorst, Johannes (2016). How the Brahmins Won: From Alexander to the Guptas (अंग्रेज़ी में). BRILL. पृ॰ 466. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789004315518.
  15. Kaminsky, Arnold P.; Long, Roger D. (2011). India Today: An Encyclopedia of Life in the Republic. ABC-CLIO. पृ॰ 372. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-31337-462-3.

बाहरी कड़ियाँ

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