पाकिस्तान टेलिविज़न कॉरपोरेशन
पाकिस्तान टेलिविज़न कॉरपोरेशन (پاکستان ٹیلی وژن کارپوریشن) या पी॰टी॰वी॰ (پی ٹی وی) पाकिस्तान का सरकारी टेलिविज़न प्रसारक है। इसका सर्वप्रथम प्रसारण २६ नवम्बर १९६४ को लाहौर से किया गया था।[1] सन् २००७ तक इसने छह चैनलों पर प्रसारण करना चालू कर दिया था।
इतिहास
[संपादित करें]सन् १९६१ में सय्यद वाजिद अली नाम के जाने-माने उद्योगपति ने जापान की निप्पोन ऍलॅक्ट्रिक कम्पनी (ऍन॰ई॰सी॰) के साथ एक समझौता किया जिसके तहत ऍन॰ई॰सी॰ की मदद से वे निजी क्षेत्र में एक पाकिस्तानी टेलिविज़न केंद्र स्थापित करने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने उबैद-उर-रहमान नाम के प्रख्यात इंजिनीयर को इस केंद्र को चालू करने की ज़िम्मेदारी सौंपी। १९६२ में तजुरबे के लिए इस केंद्र से छोटे-मोटे प्रसारण किये गए। इन प्रसारणों से अयूब ख़ान की पाकिस्तानी सरकार का ध्यान इस तरफ़ गया और उन्होंने इस केंद्र को संचार मंत्रालय द्वारा नियंत्रित एक सरकारी प्रोजेक्ट में शामिल कर लिया। १९६३ में उबैद-उर-रहमान को फिर इस प्रोजेक्ट का नेतृत्व-भार दिया और ऍन॰ई॰सी॰ के साथ तालमेल जारी रखा। शुरू में यह प्रोजेक्ट लाहौर में रेडियो पाकिस्तान के दफ़्तर के पीछे के मैदान में खड़े एक तम्बू के अन्दर चलाया गया, लेकिन जल्द ही एक प्रसारण खम्बा और स्टूडियो की इमारत खड़ी की गई। २६ नवम्बर १९६४ को लाहौर केंद्र से प्रसारण सेवा शुरू हुई। दूसरा केंद्र १९६५ में ढाका में सक्रीय हुआ, जो अब बंगलादेश में है हालांकि तब पूर्वी पाकिस्तान में था। तीसरा केंद्र रावलपिंडी-इस्लामाबाद में १९६५ में ही शुरू हुआ और चौथा कराची में १९६६ में आरम्भ हुआ। १९७४ तक पेशावर और क्वेट्टा में भी केंद्र बन चुके थे।
शुरू में पाकिस्तान टेलिविज़न के सारे कार्यक्रम केवल काले-सफ़ेद (यानि ब्लैक एंड व्हाईट) माध्यम में थे लेकिन १९७६ में रंगीन प्रसारण आरम्भ हो गया। १९८७ में 'पाकिस्तान टेलिविज़न अकादेमी' शुरू की गई जिसमें इस माध्यम में काम करने ले इच्छुक लोगों को शिक्षा दी जाने लगी। इन सब चीज़ों के लिए पैसा सरकार और निजी क्षेत्र के व्यापारियों ने मिलकर लगाया। १९९१ में पी॰टी॰वी॰ ने उपग्रहीय प्रसारणों को ज़ोर-शोर से आरम्भ किया और १९९९ में डिजिटल टेलिविज़न प्रसारण शुरू किया।
१९७०, १९८० और १९९० के दशकों में पाकिस्तान टेलिविज़न के धारावाहिक नाटक भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे अच्छे माने जाते थे। इनमें 'ख़ुदा की बस्ती', 'तीसरा किनारा', 'अनकही', 'तनहाईयाँ', 'आँगन टेढ़ा', 'फ़िफ़्टी-फ़िफ़्टी', 'स्टूडियो ढाई', 'स्टूडियो पौने-तीन', 'अँधेरा उजाला', 'सोना चांदी', 'उन्कल उर्फ़ी', 'वारिस', 'धूप किनारे', 'सुनहरे दिन' और 'चाँद गिरहन' जैसे ड्रामे बहुत प्रसिद्ध हुए और पाकिस्तान और उत्तर भारत दोनों में सराहे गए।[2][3]
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Asian communication handbook 2008". AMIC, 2008. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9789814136105.
... Authorities in Pakistan introduced television in 1964 with an aim to uplift the nation ...
- ↑ "India today, Volume 13". Living Media India Pvt. Ltd., 1988.
... Dhoop Kinare, whose serialisation has just ended. Almost simultaneously, pirated videotape cassettes of the serial flooded video shops all over north and west India ...
- ↑ "Newsline, Volume 19". Newsline Publications, 2007.
... Not surprisingly then, Pakistani dramas were watched avidly, even across the border. People on both sides were able to relate to and appreciate dramas such as Ankahee, Dhoop Kinaray, Tanhaiyaan, Dhuaan ...