पहचान की चोरी

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पहचान की चोरी उस वक्त होती है, जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति की निजी पहचान बताने वाली जानकारी जैसे उसका नाम, पहचान संख्या या क्रेडिट कार्ड नंबर उस व्यक्ति के बिना अनुमति के इस्तेमाल करता है या किसी को धोखा देने या अन्य प्रकार के अपराध में करता है। पहचान की चोरी शब्द पहली बार 1964 में यूके और अमेरिका में हुआ जब वहाँ के कुछ अपराधी किसी दूसरे व्यक्ति की पहचान दिखा कर आपराधिक घटना को अंजाम दे रहे थे। पहचान की चोरी का उपयोग मुख्य रूप से आर्थिक लाभ या लोन पाने और अन्य कई तरह के लाभ हेतु किया जाता है। लेकिन इससे जिस व्यक्ति की पहचान चोरी हुई है, उसे आर्थिक, मानसिक एवं कई मामलों में अन्य प्रकार का नुकसान भी झेलना पड़ता है। निजी पहचान की जानकारी में आम तौर पर लोगों के नाम, जन्मतिथि, पैन नंबर, ड्राईवर लाइसेन्स नंबर, बैंक अकाउंट और क्रेडिट कार्ड नंबर, फिंगरप्रिंट, पासवर्ड एवं अन्य कुछ जानकारी जो किसी व्यक्ति के आर्थिक संसाधनों से जुड़ी होती है, शामिल हैं।

प्रकार[संपादित करें]

पहचान की चोरी के मुख्य रूप से 5 प्रकार हैं, इसे अपराध के तरीकों के आधार पर बांटा गया है।

  • अपराध को अंजाम देने हेतु,
  • आर्थिक लाभ लेने हेतु,
  • अन्य व्यक्ति बनने में,
  • मेडिकल या ड्रग हासिल करने में,
  • बच्चों की पहचान चोरी में।


सन्दर्भ[संपादित करें]

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