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पश्चिमी रोमन साम्राज्य का पतन

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बर्बर राष्ट्रों पर आक्रमण

पश्चिमी रोमन साम्राज्य का पतन यूरोपीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसने पश्चिमी यूरोप में रोमन शासन के अंत और मध्य युग की शुरुआत को चिह्नित किया।

एतिहासिक पृष्ठभूमि

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साम्राज्य का पतन कई कारकों का परिणाम था, जिनमें सेना की कमजोर प्रभावशीलता, आर्थिक संकट, जनसंख्या में गिरावट, आंतरिक सत्ता संघर्ष, और शासन की अक्षमता प्रमुख थे।

476 ईस्वी तक, पश्चिमी रोमन साम्राज्य अपनी राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक शक्ति खो चुका था। पश्चिमी रोमन सम्राट केवल प्रतीकात्मक शासक बनकर रह गए थे, क्योंकि साम्राज्य के अधिकांश क्षेत्र बर्बर जनजातियों के नियंत्रण में आ गए थे। इसी वर्ष, जर्मनिक नेता ओडोएसर ने इटली में अंतिम सम्राट रोमुलस ऑगस्टुलस को हटा दिया, जिससे पश्चिमी रोमन साम्राज्य का राजनीतिक अस्तित्व समाप्त हो गया।[1]

हालांकि, पूर्वी रोमन साम्राज्य, जिसे बीजान्टिन साम्राज्य के नाम से भी जाना जाता है, पश्चिमी रोमन साम्राज्य के पतन के बाद भी अपनी शक्ति बनाए रखने में सफल रहा। यह साम्राज्य पूर्वी भूमध्यसागर के अन्तर्गत आने वाले प्रांतों में एक प्रमुख शक्ति बना रहा और आर्थिक, सांस्कृतिक एवं सैन्य शक्ति रूप से प्रभावी रहा। बीजान्टिन साम्राज्य ने रोमन परंपराओं और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित किया और कई शताब्दियों तक रोमन सभ्यता का प्रतिनिधित्व किया।

आधुनिक संस्लेशण

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1776 में एडवर्ड गिब्बन द्वारा कृत रोमन साम्राज्य के पतन और गिरावट का इतिहास के पहला खंड प्रकाशित किया गया, जिसमें अधिकांश भाग रोमन साम्राज्य के पतन और गिरावट के इर्द-गिर्द केंद्रित था। इतिहासकार ग्लेन बोवरसॉक के अनुसार, यह पतन उस समय के लोगों के मन में डर का प्रतीक बन गया था।[2]

  1. डायमंड, जेरेड (2011). रोमन साम्राज्य का पतन. पेंगुइन बुक्स. पृ॰ 13–14. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-14-311700-1.
  2. ग्लेन बोवरसॉक, "रोम के पतन का लुप्त होता प्रतिमान" अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्ट्स एंड साइंसेज का बुलेटिन 1996. vol. 49 no. 8 pp. 29–43.