परांठेवाली गली
परांठेवाली गली पुरानी दिल्ली के चांदनी चौक के पास स्थित एक जगह है। यहां तरह तरह के परांठों की दुकानें हैं। इसके अलावा यह अपनी खान पान की विभिन्न दुकानो के कारण काफ़ी प्रसिद्ध है। चांदनी चौक में शीशगंज गुरूद्वारे के आगे वाली गली ही कहलाती है परांठे वाली गली। वहां काफी पुराणी पराठे बनाने वाली दुकानें हैं। यह गली मुख्य चांदनी चौक से आरंभ होकर दूसरे छोर पर मालीवाड़ा में जाकर मिल जाती है। किसी समय पूरी गली में परांठे की ही दुकानें थी लेकिन अब बदलते वक्त के साथ चार रह गयी हैं। ये दुकानें करीब सौ से सवा सौ साल पुरानी हैं। परांठे बनाने वाले ये लोग मध्य प्रदेश के रहने वाले हैं। स्वाद ऐसा है कि एक बार खा लें तो शायद जिंदगी भर भूला नहीं पायेंगें। इन को बनाने का तरीका भी अलग है परांठों को शुद्ध घी सेंकने की बजाय तला जाता है और शायद ये ही इसके स्वाद का राज भी हैं। परांठा एक भारतीय रोटी का विशिष्ट रूप है। यह उत्तर भारत में जितना लोकप्रिय है, लगभग उतना ही दक्षिण भारत में भी है, बस मूल फर्क ये है, कि जहां उत्तर में आटे का बनता है, वहीं दक्षिण में मैदे का बनता है। माना जाता है याहान कि दुकानें मुगलो के समय से पराठे बेच रहि हैं।[1]
इतिहास
[संपादित करें]इतेहास कि कही जाये तो सन १६५० में मुगल के बद्शाह शाहजहाँ ने लाल किले कि स्थापना कि तभी चांदनी चौक भी बनवाया गाया।[2] पुराने समये में ये चांदी के बर्तनों के लिए प्रसिद्ध रह चुकी है। पराठे कि दुकानें यहाँ सन १८७० में लाई गयी। यहा क जयेका विश्व में प्रसिद्ध है। हालांकि मुम्बई में एक रेस्तरां है जो कि सिर्फ पराठे बेचता है और अमेरिका का एक मेला नामक रेस्तरां ने दिल्ली की इस प्रसिद्ध गली के माहौल की प्रतिलिपि बनाने की कोशिश तो कि है जो कि एक सराहनीय है।
शायद सन १९६० में करीब २० दुकानें थी (सभी एक ही परिवार के लोगो कि थि) अब सिर्फ ३ ही रह गयी हैं: पं॰ कन्हैयालाल दुर्गा प्रसाद दीक्षित (1875 estd), पं॰ दयानंद शिव चरण (1882 estd), पं॰ बाबूराम देवी दयाल पराठे वाले (1886 estd)। 1911 से, इस क्षेत्र, को छोटा दरीबा या दरीबा कलां के रूप में जाना जाता है, नाम पराठे वली गली है।
आजादी के बाद के वर्षों में, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी और विजया लक्ष्मी पंडित इस गली में उनके पराठे लेने के लिए आया करते था। "पंडित दयानंद शिव चरण" दूकान गर्व से नेहरू परिवार उनकी दूकान में खाने की तस्वीर दिखाता है। स्वर्गीय जयप्रकाश नारायण उनके एक नियमित आगंतुक थे।
भोजन
[संपादित करें]यहा पुराने जमाने कि तर्.ज पे पारंपरिक रूप से भोजन पकया जाता है जो कि शुद्ध शाकाहारी होत है और उसमे प्याज या लहसुन शामिल नहीं नहि होता है। ऐसा इस्लिये है क्योंकि इन दुकानों के मालिक ब्राह्मण हैं और पारंपरिक रूप से ग्राहकों के पड़ोस में जैन शामिल है। यहा के विभिन्न किस्मों के कजु परांठा, बादाम परांठा, मटरपरांठा, मिक्स परांठा, राबड़ी परांठा, खोया परांठा, गोभी परांठा, परत परांठा, आदि शामिल हैं। परांठा आम तौर पर मीठी इमली की चटनी, पुदीना की चटनी, अचार और मिश्रित सब्जी, पनीर की सब्जी, आलू और मेथी की सब्जी और कद्दू की सब्जी (सीताफल) के साथ परोसा जाता है।
पेय
[संपादित करें]आमतौर पर यहां लोगों को पराठे के साथ लस्सी का उपयोग करते हैं। इस जगह की एक विशेष बात यह है कि जो कि अपके दिल जीत लेगी, कि लस्सी परंपरागत तरीके में एक "Kulhad" या "Kulhar में परोसी जाती है।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ पुरानी दिल्ली के चटखारे Archived 2011-09-01 at the वेबैक मशीन मुसाफ़िर-दुनियादेखो ब्लॉग्स्पॉट, ५ मार्च, २००८
- ↑ सन्दर्भ त्रुटि:
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का गलत प्रयोग;chilli
नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।