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परमादेश

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परमादेश और अन्य न्यायिक उपचार, भारत के संविधान में पाया जाता है।

परमादेश (अंग्रेज़ी: mandamus देवनागरीकृत : मैण्डमस् ) एक न्यायिक उपचार है। आंग्लदेश में परमादेश न्यायालय के क्वींस बेंच डिवीजन द्वारा किसी अधिकारी, निगम अथवा नीचे की अदालतों के नाम जारी किया जाता है। इसमें इस बात की स्पष्ट आज्ञा होती है कि "प्रादेश में निर्दिष्ट कार्य का यथोचित संपादन किया जाए क्योंकि वही उसका (अधिकारी, निगम का, न्यायालय का) नियतकर्म अथवा कर्तव्य है।" 'mandamus' का अर्थ है "हमारा आदेश है।"

किन लोगों को आदेश नहीं दिया जा सकता :

  1. किस निजी पद पर बैठे अधिकारी, जैसे टाटा, बिरला
  2. राष्ट्रपति और राज्यपाल को परमादेश नहीं दिया जा सकता

परमादेश का शाब्दिक अर्थ होता है आदेश देना जिसके अन्तर्गत न्यायालय सरकारी पद सार्वजनिक पद पर बैठे अधिकारी को अपने सार्वजनिक कार्यों को सम्प्रदान के लिए आदेश देगा

प्रादेश में निर्दिष्ट आज्ञा किसी कार्य के लिए जाने अथवा उससे विरत होने से सम्बद्ध होती है। यह प्रादेश एक सामान्य वैधिक कर्तव्य के प्रवर्तन (enforcement) के लिए जारी किया जाता है और इसका प्रयोग प्रसंविदाजन्य कर्तव्यों (contractual obligations) के प्रवर्तन के लिए नहीं होता। इसका प्रयोग वहाँ भी नहीं किया जाता जहाँ इष्ट कार्य किसी अधिकारी के विवेक (discretion) पर निर्भर होता है। किंतु उस अवस्था में जब विवेकाधिकार किसी कर्तव्य के साथ संलग्न हो, न्यायालय उसके सम्पादन के लिए आदेश दे सकता है। किंबहुना, यदि अधिकारीविशेष अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करते समय किन्हीं अनावश्यक विषयों पर ध्यान देता है अथव आवश्यक वस्तुओं पर ध्यान नहीं देता तो इन दशाओं में न्यायालय उक्त अधिकारी के आदेश को रद्द करते हुए उस विषय पर पुनर्विचार करने का आदेश दे सकता है। परमादेश उस अवस्था में भी जारी किया जाता है जब कोई अधिकारी अपनी कार्यसीमा का अतिक्रमण अथवा अपने अधिकारों का दुरुपयोग करता है।

यह प्रादेश न तो प्रकृत्या जारी किया जाता है और न आधिकारिक रूप से ही (neither as of right nor as of course)। यह उसी अवस्था में जारी किया जाता है जब वैध अधिकारों से युक्त व्यक्ति हलफनामे द्वारा संबलित याचिका में इसके जारी किए जाने के लिए उपयुक्त कारण सिद्ध करे। यह प्रादेश उस अवस्था में जारी नहीं किया जाता जब याचिकादाता के समक्ष कोई अन्य उपयुक्त तथा वैकल्पिक मार्ग हो। याचिकादाता के लिए यह भी प्रदर्शित करना आवश्यक है कि याचिका प्रस्तुत करने के पूर्व उसने उपयुक्त अधिकारी के समक्ष अपना दावा प्रस्तुत कर अनुरोप के लिए प्रार्थना की थी तथा वह दावा या तो अस्वीकार कर दिया गया अथवा पर्याप्त समय व्यतीत हो जाने के बाद भी उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई। इस नियम के पालन पर न्यायालय, उस अवस्था में विशेष बल नहीं देगा यदि वह समझे कि संबंधित अधिकारी से की गई अनुतोष (relief) की माँग का निष्फल होना अवश्यभावी है।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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