पंथनिरपेक्ष राज्य

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पंथनिरपेक्ष राज्य से आशय यह है कि राज्य की दृष्टि में सभी पंथ समान हैं और पंथ एवं दर्शन के आधार पर राज्य किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगा। राष्ट्रीय स्वतंत्रा संग्राम के दौरान ही भारत मे सांप्रदायिक कटुता का विस्तार हो चुका था। तथा देश का विभाजन इसकी चरम परिणीति थी।।स्वतंत्रा प्राप्ति के बाद नवजात लोकतंत्र को सम्प्रदायवाद के घातक प्रभावों से मुक्त रखने के लिए यह आवश्यक समझा गया कि दर्शन या पंथ को राजनीतिक से अलग रखा जाए।। [1][2][3]राज्य द्वारा सभी को अपने-अपने ढंग से संस्कृति का विकास और पंथिक अध्ययन प्राप्त करने की छूट दी गई है।भारतीय राज्य एक पंथनिरपेक्ष राज्य है। भारतीय संविधान दुनिया का सबसे बड़ा संविधान है।

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "संग्रहीत प्रति". मूल से 15 अप्रैल 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 अप्रैल 2015.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 23 अक्तूबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 अप्रैल 2015.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 19 मार्च 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 15 अप्रैल 2015.