पदावली

मुक्त ज्ञानकोश विकिपीडिया से

पदावली विद्यापति द्वारा चौदहवीं सदी में रचा गया काव्य है। इसकी रचना मैथिली भाषा में हुई है। यह भक्ति और शृंगार का अनूठा संगम है।

विषय-वस्तु[संपादित करें]

पदावली के अधिकांश गीतों में भक्ति के आवरण में शृंगार की रसधारा प्रवाहित है; हालाँकि अल्प मात्रा में विशुद्ध भक्तिपरक गीत भी इसमें संकलित हैं। शिव, गंगा तथा देवी (दुर्गा एवं काली) से सम्बन्धित भक्तिपरक गीतों की चित्रात्मकता के साथ तन्मय रागात्मकता हृदय को बाँध लेती है, परन्तु अधिकांश गीतों में राधा और कृष्ण के प्रेम तथा उनके अपूर्व रूपात्मक एवं भावात्मक सौन्दर्य-चित्रों की भरमार है। निराला ने पदावली के सन्दर्भ में लिखा है कि "विद्यापति कवि-प्रतिभा में कालिदास, श्रीहर्ष, शेली और शेक्सपियर से किसी तरह भी घटकर न थे। महाकवि की कृतियों में जो गुण होने चाहिए वे सब इनकी सरस पदावली में मौजूद हैं।"[1] पदावली के गीतों में अन्तर्निहित प्रभूत मादकता को उन्होंने 'नागिन का जहर' कहा है, 'क्षण-मात्र में शरीर को जर्जर कर देने वाला'।[2]

प्रकाशित संस्करण[संपादित करें]

विद्यापति की पदावली सर्वप्रथम बाबू नगेन्द्रनाथ गुप्त ने बंगाल में बाङ्ला भाषा में प्रकाशित की थी। इसमें 945 पद संग्रहित थे। फिर बाङ्ला में ही मित्र-मजूमदार का संस्करण प्रकाशित हुआ। बाबू व्रजनन्दन सहाय जी ने भी पदावली का एक संस्करण प्रकाशित किया था जो कि नगेन्द्रनाथ गुप्त के संग्रह से बहुत छोटा था तथापि उसमें कुछ ऐसे पद हैं जो नगेन्द्रनाथ गुप्त वाले संस्करण में नहीं हैं।[3] देवनागरी लिपि में पाद-टिप्पणी एवं कठिन शब्दों के अर्थ सहित पदावली का एक संस्करण सुप्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी ने तैयार किया जो आचार्य रामलोचन शरण द्वारा पुस्तकभंडार, पटना से प्रकाशित हुआ। इसका संशोधित-परिवर्धित तथा हिन्दी भावार्थ सहित नवीन संस्करण भी दिनेश्वरलाल 'आनन्द' के संपादन में प्रकाशित हुआ।[4]

बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् का संस्करण[संपादित करें]

विद्यापति पदावली का परिपूर्ण एवं प्रामाणिक संस्करण बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना द्वारा प्रकाशित किया गया है जो मूल, पाठभेद, शब्दार्थ एवं हिन्दी अनुवाद सहित तीन खण्डों में प्रकाशित है। सभी खण्डों के अन्त में अक्षर-क्रम से 'पदानुक्रमणी' भी दी गयी है।

प्रथम खण्ड-

प्रथम खण्ड में नेपाल में प्राप्त विद्यापति के पदों का संग्रह है। इसका प्रथम संस्करण सन् 1961 ई॰ में प्रकाशित हुआ था। इस खण्ड का सम्पादन एक सम्पादक मण्डल के अन्तर्गत पं॰ शशिनाथ झा एवं दिनेश्वरलाल 'आनन्द' ने डॉ॰ बजरंग वर्मा के सहयोग से किया है।[5] आरम्भ में श्रीगङ्गानन्द सिंह द्वारा लिखित 'आमुख' के बाद सम्पादकद्वय के द्वारा 114 पृष्ठों की सुविस्तीर्ण 'भूमिका' लिखी गयी है जिसमें 'महाकवि विद्यापति', 'विद्यापति का वंश-परिचय', 'विद्यापति की जन्मभूमि', 'विद्यापति का जीवनकाल', 'विद्यापतिकालीन मिथिला', 'ओइनवार-राजवंश (सुगौना शाखा)', 'विद्यापति और ओइनवार-राजवंश', 'विद्यापति के ग्रन्थ' एवं 'विद्यापति-पदावली' नामक अनुभाग में विस्तृत शोधपूर्ण सामग्री पर्याप्त प्रमाणों के साथ प्रस्तुत की गयी है।

द्वितीय खण्ड-

इस खण्ड में मिथिला में उपलब्ध विद्यापति के पदों का संग्रह किया गया है। इसका प्रथम संस्करण सन् 1967 ई॰ में प्रकाशित हुआ था। इसके अन्तर्गत रामभद्रपुर और तरौनी की पाण्डुलिपियों तथा 'रागतरंगिणी' में प्राप्त विद्यापति के पदों का संकलन है। इस खण्ड का सम्पादन एक सम्पादक-मण्डल के अन्तर्गत पं॰ शशिनाथ झा ने दिनेश्वरलाल 'आनन्द' एवं डॉ॰ बजरंग वर्मा के सहयोग से किया है।[4] इस खण्ड के आरम्भ में भी श्रीगङ्गानन्द सिंह द्वारा लिखित 'आमुख' के बाद सम्पादक पं॰ शशिनाथ झा द्वारा कुल 78 पृष्ठों में 'विद्यापति की भाषा' का विस्तृत विवेचन किया गया है।

तृतीय खण्ड-

इस खण्ड में बंगाल में प्राप्त विद्यापति के पदों का संग्रह किया गया है। इसका प्रथम संस्करण सन् 1979 ई॰ में प्रकाशित हुआ था। इस खण्ड का सम्पादन एक सम्पादक-मण्डल के अन्तर्गत पं॰ शशिनाथ झा ने किया है।[6] इसमें भी आरम्भ में कुल 88 पृष्ठों में 'भूमिका' के अन्तर्गत 'मिथिला और बंगाल' (राजनीतिक स्थिति), 'ब्रजबुली', 'सहजिया वैष्णवधर्म और विद्यापति', 'विद्यापति और चण्डीदास का मिलन', 'भणिता-विचार', 'पाठ-निर्धारण', 'पद-निर्धारण', 'विद्यापति-पदावली में श्याम-नाम', 'विद्यापति के नाम से प्रचलित अप्रामाणिक पद' नामक अनुभागों में विस्तृत शोधात्मक एवं विवेचनात्मक सामग्री प्रस्तुत की गयी है।

मौखिक स्रोत से प्राप्त पदों को चतुर्थ खण्ड के रूप में संकलित-प्रकाशित करने की भी योजना थी[7], परन्तु यह योजना पूरी नहीं हो पायी।

विद्यापति-गीत-समग्र[संपादित करें]

'पदावली' के बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् के संस्करण में अधिकांश गीत संकलित होने के बावजूद सभी गीत संकलित नहीं हैं। अनेक गीत पाठभेदों के कारण तीनों खंडों में दिये गये हैं जबकि कुछ भिन्न स्रोतों में उपलब्ध एवं मौखिक स्रोत से प्राप्त गीत संकलित नहीं हो पाये हैं। इन कारणों से पंडित गोविन्द झा ने 'विद्यापति-गीत-समग्र' शीर्षक से मैथिली अनुवाद सहित एक बृहत् संग्रह का संपादन किया है जिसमें उपयुक्त पाठ-निर्धारण करते हुए दोहराये गये गीतों को छोड़कर सभी स्रोतों से प्राप्त गीतों को संकलित किया गया है।[8]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. निराला रचनावली, भाग-5, सं॰ नन्दकिशोर नवल, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, द्वितीय पेपरबैक संस्करण-1998, पृष्ठ-242.
  2. निराला रचनावली, भाग-5, सं॰ नन्दकिशोर नवल, राजकमल प्रकाशन, नयी दिल्ली, द्वितीय पेपरबैक संस्करण-1998, पृष्ठ-248.
  3. विद्यापति की पदावली, संकलन- रामवृक्ष बेनीपुरी, भावार्थ- दिनेश्वरलाल आनंद, पुस्तकभंडार, पटना, प्रथम संस्करण 1983, पृष्ठ-30.
  4. विद्यापति की पदावली, संकलन- रामवृक्ष बेनीपुरी, भावार्थ- दिनेश्वरलाल आनंद, पुस्तकभंडार, पटना, प्रथम संस्करण 1983, पृष्ठ-35-36.
  5. विद्यापति-पदावली, प्रथम भाग, सं॰ शशिनाथ झा एवं दिनेश्वरलाल 'आनन्द', बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, द्वितीय संस्करण-1972, पृष्ठ-ग,घ (वक्तव्य, प्रथम संस्करण).
  6. विद्यापति-पदावली, तीसरा भाग, सं॰ शशिनाथ झा, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, प्रथम संस्करण-1979, पृष्ठ-क (वक्तव्य).
  7. विद्यापति-पदावली, प्रथम भाग, सं॰ शशिनाथ झा एवं दिनेश्वरलाल 'आनन्द', बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, द्वितीय संस्करण-1972, पृष्ठ-क (वक्तव्य, द्वितीय संस्करण).
  8. विद्यापति-गीत-समग्र, सं॰ पं॰ गोविन्द झा, भारतीय भाषा संस्थान, मैसूर, संस्करण-2012, पृष्ठ-ix-x (प्रस्तावना)।

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]