नौटंकी

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'सुल्ताना डाकू' नामक मशहूर नौटंकी के एक प्रदर्शन में देवेन्द्र शर्मा और पलक जोशी
एक और नौटंकी का नज़ारा

नौटंकी (<small, Nautanki) उत्तर भारत, पाकिस्तान और नेपाल के एक लोक नृत्य और नाटक शैली का नाम है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीनकाल से चली आ रही स्वांग परम्परा की वंशज है और इसका नाम मुल्तान (पाकिस्तानी पंजाब) की एक ऐतिहासिक 'नौटंकी' नामक राजकुमारी पर आधारित एक 'शहज़ादी नौटंकी' नाम के प्रसिद्ध नृत्य-नाटक पर पड़ा।[1][2] नौटंकी और स्वांग में सबसे बड़ा अंतर यह माना जाता है कि जहाँ स्वांग ज़्यादातर धार्मिक विषयों से ताल्लोक रखता है और उसे थोड़ी गंभीरता से प्रदर्शित किया जाता है वहाँ नौटंकी के मौज़ू प्रेम और वीर-रस पर आधारित होते हैं और उनमें व्यंग्य और तंज़ मिश्रित किये जाते हैं। पंजाब से शुरू होकर नौटंकी की शैली तेज़ी से लोकप्रीय होकर पूरे उत्तर भारत में फैल गई। समाज के उच्च-दर्जे के लोग इसे 'सस्ता' और 'अश्लील' समझते थे लेकिन यह लोक-कला पनपती गई।[3]

इतिहास और विकास[संपादित करें]

अधिकतर समीक्षकों का मानना है कि 'नौटंकी स्वांग शैली का ही एक विकसित रूप है'।[4] नौटंकी कि कथाएँ अक्सर किसी व्यक्ति पर या महत्वपूर्ण विषय आधारित होती हैं, मसलन आल्हा-ऊदल की नौटंकी। इसी तरह, 'सुल्ताना डाकू' की नौटंकी इसी नाम के उत्तर प्रदेश के बिजनौर ज़िले में हुए एक डाकू की कहानी बताती है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उस विषय पर बहुत सी नौटंकियां हुईं थी जिन्होनें जन-साधारण को इस संग्राम में शामिल होने की प्रेरणा दी। आजकल दहेज़-कुप्रथा, आतंकवाद और साम्प्रदायिक लड़ाई-झगड़ों के विरुद्ध नौटंकियाँ देखी जा सकती हैं।[1] दर्शकों की रूचि बनाए रखने के लिए नौटंकियों में अक्सर प्रेम-सम्बन्ध के भी कुछ तत्त्व होते हैं जिनका प्रयोग अश्लीलता के लिए भी किया जा सकता है। इसलिए बहुत सी अश्लील नौटंकियाँ भी डेढ़-सौ साल से चलती आ रहीं हैं, जिससे अक्सर नौटंकी की शैली बदनाम भी होती आई है।[1] पारम्परिक रूप से नौटंकियों में पैसा बनाने के लिए यह ज़रूरी था कि दर्शकों को कभी भी ऊबने न दिया जाए, इसलिए अधिकतर नौटंकियों में १० मिनट या उस से कम अवधि की घटनाओं को एक सिलसिले में जोड़कर बनाया जाता है जिसमें हर भाग में दर्शकों की रूचि बनाए रखने की कोशिश की जाती है। कहानी दिलचस्प रखने के लिए वीरता, प्रेम, मज़ाक़, गाने-नाचने और धर्म को मिलाया जाता है और कथाकार प्रयास करता है की दर्शकों की भावनाएँ लगातार ऊपर-नीचे होती रहें।

कविता[संपादित करें]

नौटंकी में कविता और साधारण बोलचाल को मिलाने की प्रथा शुरू से रही है। पात्र आपस में बातें करते हैं लेकिन गहरी भावनाओं और संदेशों को अक्सर तुकबंदी के ज़रिये प्रकट किया जाता है। गाने में सारंगी, तबले, हारमोनियम और नगाड़े जैसे वाद्य इस्तेमाल होते हैं।[5] मिसाल के लिए 'सुल्ताना डाकू' के एक रूप में सुल्ताना अपनी प्रेमिका को समझाता है कि वह ग़रीबों की सहायता करने के लिए पैदा हुआ है और इसीलिए अमीरों को लूटता है।[6] उसकी प्रेमिका (नील कँवल) कहती है कि उसे सुल्ताना की वीरता पर नाज़ है (इसमें रूहेलखंड की कुछ खड़ी-बोली है):

सुल्ताना
प्यारी कंगाल किस को समझती है तू?
कोई मुझ सा दबंगर न रश्क-ए-कमर
जब हो ख़्वाहिश मुझे लाऊँ दम-भर में तब
क्योंकि मेरी दौलत जमा है अमीरों के घर
नील कँवल
आफ़रीन, आफ़रीन, उस ख़ुदा के लिए
जिसने ऐसे बहादुर बनाए हो तुम
मेरी क़िस्मत को भी आफ़रीन, आफ़रीन
जिस से सरताज मेरे कहाए हो तुम
सुल्ताना
पा के ज़र जो न ख़ैरात कौड़ी करे
उन का दुश्मन ख़ुदा ने बनाया हूँ मैं
जिन ग़रीबों का ग़मख़्वार कोई नहीं
उन का ग़मख़्वार पैदा हो आया हूँ मैं
सुल्ताना
प्यारी कंगाल किस को समझती है तू?
कोई मुझ-सा दबंग नहीं
जब मेरी मर्ज़ी हो एक सांस में ला सकता हूँ
क्योंकि अमीरों की दौलत पर मेरा ही हक़ है
नील कँवल
वाह, वाह, उस ख़ुदा के लिए
जिसने ऐसे बहादुर बनाए हो तुम
मेरी क़िस्मत को भी वाह, वाह
जिस से सरताज मेरे कहाए हो तुम
सुल्ताना
पा के सोना जो कौड़ी भी न दान करे
ख़ुदा ने मुझे उनका दुश्मन बनाया है
जिन ग़रीबों का दर्द बांटने वाला कोई नहीं
उन का दर्द हटाने वाला बनकर मैं पैदा हुआ हूँ

उच्चारण[संपादित करें]

कृपया ध्यान दीजिये कि नौटंकी में अक्सर हिंदी-उर्दू के पारम्परिक शब्दों का प्रयोग होता है। 'ख़ैरात' और 'ख़ुदा' जैसे शब्दों में बिंदु-वाले 'ख़' का उच्चारण बिंदु-रहित 'ख' से ज़रा अलग है और 'ख़राब' और 'ख़रीद' जैसे शब्दों से मिलता-जुलता है। इसी तरह 'ग़रीब' और 'ग़म' जैसे शब्दों में बिंदु-वाले 'ग़' का उच्चारण बिंदु-रहित 'ग' से थोड़ा अलग है और 'ग़लत' और 'ग़ायब' जैसे शब्दों से मिलता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. The world encyclopedia of contemporary theatre, Volume 3 Archived 2014-06-27 at the वेबैक मशीन, Don Rubin, Taylor & Francis, 2001, ISBN 978-0-415-26087-9, ... The nautanki, performed in Uttar Pradesh, Punjab and Rajasthan, is an operatic drama which also belongs to the swang tradition. It has a limited dance content, and combines it with elements of singing, recitation, storytelling ...
  2. Ideals, images, and real lives: women in literature and history, Alice Thorner, Sameeksha Trust (Bombay, India), Orient Blackswan, 2000, ISBN 978-81-250-0843-9, ... Perhaps the most striking instance is the story of Nautanki Shahzadi, The Princess Nautanki', whose name came to signify this theatre genre. 'Nautanki' means a woman whose weight is nine tanks (a tank equals four grams), implying that she was very delicate ...
  3. The Politics of the Urban Poor in Early Twentieth-Century India, Nandini Gooptu, Cambridge University Press, 2001, ISBN 978-0-521-44366-1, ... Nautanki was the object of elite disapproval, being regarded as `low' or `lewd' in character and essentially a form of entertainment for the lower classes. In face, in urban areas, the main clientele of nautanki came from the bazar poor ...
  4. अभिव्यक्ति Archived 2011-09-23 at the वेबैक मशीन, नारायण भक्त, ... यह कहना कठिन है कि नौटंकी का मंच कब स्थापित हुआ और पहली बार कब इसका प्रदर्शन हुआ, किंतु यह सभी मानते हैं कि नौटंकी स्वांग शैली का ही एक विकसित रूप है। भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र में जिस सट्टक को नाटक का एक भेद माना है, इसके विषय में महाकवि एवं नाटककार जयशंकर प्रसाद तथा हज़ारी प्रसाद द्विवेदी का कहना है कि सट्टक नौटंकी के ढंग के ही एक तमाशे का नाम है।..'
  5. Musical heritage of India, Manorma Sharma, APH Publishing, 2007, ISBN 978-81-313-0046-6, ... Nautanki is a highly musical play of western Uttar Pradesh. The music of Nautanki is not classical though based on the classical ragas. Nagara is the main musical instrument. Sarangi, Harmonium, Dholak and Dholaki are the other ...
  6. Grounds for Play: The Nautanki Theatre of North India, Kathryn Hansen, pp. 139, University of California Press, 1991, ISBN 978-0-520-07273-2, ... The opening chaubola states: 'It was his job to loot the treasuries of the rich / And always bring relief to the poor and helpless.' Somewhat later Sultana declares his mission to be that of an equalizer sent by God: 'For those who have found wealth and given not a penny to charity, God has made me the enemy. / For those who are poor and have no consoler, I have been born to share their sorrows.' ...