नेब्युलाइज़र

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चिकित्सा उद्योग में, नेब्युलाइज़र (ब्रिटिश अंग्रेजी में इसकी वर्तनी nebuliser है[उद्धरण चाहिए]) एक ऐसा उपकरण है जिसका उपयोग दवा को फेफड़ों में एक धूम के रूप में पहुंचाने के लिए किया जाता है।

एक कम्प्रेसर से जुड़ा हुआ एक जेट नेब्युलाइज़र.

नेब्युलाइज़र का उपयोग आमतौर पर सिस्टिक फाइब्रोसिस, अस्थमा, सीओपीडी और अन्य सांस के रोगों के उपचार के लिए किया जाता है। ज्वलनशील धूम्रपान उपकरण (Combustible smoking devices) (जैसे अस्थमा सिगरेट (asthma cigarettes) या केनाबीस जोइंट्स (cannabis joints)), एक वेपोराइज़र, शुष्क पाउडर इन्हेलर, या एक दबाव युक्त मापी गयी खुराक के इन्हेलर का उपयोग भी दवा को सांस के ज़रिये अन्दर लेने के लिए किया जा सकता है। आजकल ज्वलनशील धूम्रपान उपकरणों और वेपोराइज़र का उपयोग दवा को सांस के ज़रिये अन्दर लेने (इन्हेल करने) के लिए नहीं किया जाता है, क्योंकि आधुनिक इन्हेलर और नेब्युलाइज़र अधिक प्रभावी हैं।


सभी नेब्युलाइज़र्स के लिए सामान्य तकनीकी सिद्धांत एक ही है, जिसके अनुसार ऑक्सीजन, संपीडित वायु या अल्ट्रासॉनिक शक्ति का उपयोग दवा के विलयन निलंबन को छोटे एरोसोल बूंदों में मिलाने के लिए किया जाता है ताकि उपकरण के मुख से सीधे इस विलयन को इन्हेल किया जा सके. एक एरोसोल की परिभाषा है "गैस और कण का एक मिश्रण" और प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले एक एरोसोल का सबसे अच्छा उदाहरण "धुंध" है (यह तब बनती है जब आस पास की गर्म वायु में मिश्रित पानी के छोटे वाष्पीकृत कण, ठन्डे हो जाते हैं और दृश्य पानी की बूंदों के एक बादल के रूप में दिखाई देते हैं). जब सीधे फेफड़ों तक दवा पहुंचाने के लिए इन्हेलेशन थेरेपी हेतु नेब्युलाइज़र का उपयोग किया जाता है, यह ध्यान रखना जरुरी है कि इन्हेल किये जाने वाली सूक्ष्म बूंदें नीचले वायुमार्गों की संकरी शाखाओं को भेद कर उनमें प्रवेश कर जायें, अगर उनका व्यास केवल 1 से 5 माइक्रोमीटर तक ही है। अन्यथा इन्हें मुख गुहा के द्वारा ही अवशोषित कर लिया जाएगा, जिसका प्रभाव कम होता है।[1]


दुर्भाग्य से वर्तमान में उपलब्ध सभी नेब्युलाइज़र छोटी बूंदों में एरोसोल को डिलीवर करने में सफल नहीं होते हैं, इस कारण वे दवा को फेफड़ों तक पहुंचाने के लिए पर्याप्त दक्षता नहीं रखते हैं।


सबसे अधिक इस्तेमाल किये जाने वाले नेब्युलाइज़र जेट नेब्युलाइज़र हैं, जिन्हें "ऑटोमाइज़र्स" भी कहा जाता है।[2] जेट नेब्युलाइज़र को ट्यूब की सहायता से एक कम्प्रेसर से जोड़ दिया जाता है, जिसके कारण संपीडित वायु या ऑक्सीजन तेज गति से एक तरल दवा में से होकर प्रवाहित होती है और इसे एक एरोसोल में बदल देती है, जिसे अब रोगी के द्वारा सांस के साथ भीतर ले लिया (इन्हेल) जाता है। आजकल चिकित्सक जेट नेब्युलाइज़र के बजाय अपने रोगियों के लिए एक दबावयुक्त मापी हुई खुराक के इन्हेलर (pressurized Metered Dose Inhaler (pMDI)) को प्राथमिकता देते हैं, जेट नेब्युलाइज़र अधिक ध्वनि पैदा (उपयोग के दौरान अक्सर 60 डेसिबल) करता है और अपने अधिक वजन के कारण कम पोर्टेबल है। हालांकि जेट नेब्युलाइज़र का उपयोग आमतौर पर अस्पताल में उन रोगियों के लिए किया जाता है जो इन्हेलर का उपयोग नहीं कर पाते, जैसे सांस के रोगों के गंभीर मामलों में और अस्थमा (दमा) के गंभीर मामले में.[3] जेट नेब्युलाइज़र का मुख्य लाभ यह है कि इसके परिचालन की लागत कम आती है। अगर किसी रोगी को एक pMDI के उपयोग करके प्रतिदिन दवा को इन्हेल करने की जरुरत है तो यह ज्यादा महंगा पड़ता है। आज कई निर्माता जेट नेब्युलाइज़र के वजन को 635 ग्राम (22.4 औंस) तक कम करने में कामयाब हो गये हैं और इसी लिए इस पर एक पोर्टेबल उपकरण का लेबल लगाना शुरू कर दिया गया है। सभी प्रतिस्पर्धी इन्हेलर्स और नेब्युलाइज़र्स की तुलना में, आज भी शोर और भारी वजन जेट नेब्युलाइज़र की सबसे बड़ी कमी है।

अल्ट्रासॉनिक तरंग नेब्युलाइज़र का आविष्कार 1964 में एक नए अधिक पोर्टेबल नेब्युलाइज़र के रूप में किया गया। एक अल्ट्रासॉनिक तरन नेब्युलाइज़र में तकनीक यह है कि इसमें एक इलेक्ट्रोनिक संदमित्र होता है जो उच्च आवृति की अल्ट्रासॉनिक तरंगें उत्पन्न करता है, जिसके कारण एक पीज़ोइलेक्ट्रिक एलिमेंट में यांत्रिक कम्पन होने लगता है। यह कम्पित होने वाला एलिमेंट एक तरल के भण्डार के संपर्क में रहता है और इसका उच्च आवृति का कम्पन वाष्प की एक धुंध के निर्माण के लिए पर्याप्त होता है।[4] चंकी ये भारी वायु कम्प्रेसर के बजाय अल्ट्रासॉनिक कंपन से एरोसोल का निर्माण करते हैं, इनका वजन 170 ग्राम (6.0 औंस) के आसपास होता है।

एक और लाभ यह है कि अल्ट्रासॉनिक कंपन में ना के बराबर ध्वनि उत्पन्न होती है। इन अधिक आधुनिक प्रकार के नेब्युलाइज़र्स के उदाहरण हैं: ओमरोन NE-U17 और न्युरर नेब्युलाइज़र IH30.[5]

नेब्युलाइज़र के बाजार में एक और महत्वपूर्ण नवीनीकरण 2005 के आसपास हुआ, जब अल्ट्रासॉनिक कम्पन मेष तकनीक (ultrasonic Vibrating Mesh Technology (VMT)) का सृजन हुआ। इस तकनीक में एक 1000-7000 लेज़र ड्रिल छिद्रों से युक्त एक मेष/झिल्ली एक तरल भण्डार के शीर्ष पर कम्पित होती है और इससे बहुत छोटी बूंदें धुंध के रूप में छिद्रों से बाहर निकलती हैं। एक तरल भण्डार के नीचे एक पीज़ोइलेक्ट्रिक एलिमेंट को कम्पित करने की तुलना में यह तकनीक अधिक प्रभावी है और इससे उपचार में समय भी कम लगता है। अल्ट्रासॉनिक तरंग नेब्युलाइज़र में एक समस्या यह पायी गयी कि इसमें तरल बहुत अधिक व्यर्थ होता है और चिकित्सकीय तरल ना चाहते हुए भी गर्म हो जाता है, यह समस्या भी कम्पन मेष नेब्युलाइज़र के साथ हल हो गयी है। उपलब्ध VMT नेब्युलाइज़र्स की आंशिक सूची में शामिल हैं: पारी ईफ्लो (Pari eFlow)[6], रेस्पिरोनिक्स आई-नेब (Respironics i-Neb)[7], ओमरोन माइक्रोएयर (Omron MicroAir)[8], ब्युरर नेब्युलाइज़र IH50 (Beurer Nebulizer IH50)[9] और एरोगेन एरोनेब (Aerogen Aeroneb)[10].

चूंकि पुराने मॉडल्स की तुलना में अल्ट्रासॉनिक VMT नेब्युलाइज़र्स का मूल्य अधिक है, अधिकांश निर्माता "पुराने जमाने" के जेट नेब्युलाइज़र भी बेचते हैं। नेब्युलाइज़र तकनीक में सबसे हाल ही हुआ नवाचार है मानव द्वारा संचालित नेब्युलाइज़र जिसका विकास मार्केट विश्वविद्यालय के डॉक्टर लार्स ई. ओल्सन के द्वारा किया गया।

मेडिकल कंपनी बोहरिंगर इन्गेल्हेम ने भी 1997 में रेस्पिमेट सोफ्ट मिस्ट इन्हेलर नामक एक नए उपकरण का आविष्कार किया। यह नई तकनीक उपयोगकर्ता को एक मापी गयी खुराक उपलब्ध कराती है, क्योंकि इन्हेलर के तरल आधार को हाथ से 180 डिग्री पर दक्षिणावर्त दिशा (घडी की सुई की दिशा) में घुमाया जाता है, जिससे प्रत्यास्थ तरल पात्र के आसपास स्प्रिंग में एक तनाव उत्पन्न हो जाता है। जब उपयोगकर्ता इन्हेलर के आधार को एक्टिवेट करता है, स्प्रिंग से ऊर्जा निकलती है और प्रत्यास्थ तरल के पात्र पर दबाव डालती है, जिससे तरल स्प्रे के रूप में 2 नोज़ल्स से बाहर निकलता है, इस प्रकार से एक सोफ्ट मिस्ट (धूम) का निर्माण होता है, जिसे इन्हेल किया जाता है। इस उपकरण में कोई गैस प्रणोदक नहीं होता और इसे संचालित करने के लिए किसी बैटरी / पावर की जरुरत नहीं होती. इस धूम में सूक्ष्म बूंद का आकार निराशाजनक रूप से 5.8 माइक्रोमीटर मापा गया, जो इन्हेल की गयी दवा के फेफड़ों तक पहुंचने की प्रभावी क्षमता में कुछ समस्या को इंगित करता है। बाद के परीक्षणों में यह सिद्ध हो गया कि मामला यह नहीं था। धूम के बहुत कम वेग के कारण, वास्तव में सोफ्ट मिस्ट इन्हेलर की प्रभाविता एक पारंपरिक pMDI की तुलना में अधिक होती है।[11] 2000 में, नेब्युलाइज़र की परिभाषा को स्पष्ट/विस्तारित करने के लिए यूरोपीय श्वसन सोसाइटी (European Respiratory Society (ERS)) के लिए कुछ तर्क प्रस्तुत किये गए, क्योंकि नए सोफ्ट मिस्ट इन्हेलर को तकनीकी शब्दों में "एक हाथ से चलाये जाने वाले नेब्युलाइज़र" और "एक हाथ से चलाये जाने वाले pMDI" दोनों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।[12]

इतिहास[संपादित करें]

चित्र:Sales-Girons (1858).jpg
1858 से सेल्स-गिरोन्स दबावयुक्त नेब्युलाइज़र
चित्र:Siegle's steam spray inhaler (1864).jpg
सीगल का स्टीम स्प्रे नेब्युलाइज़र (1864), जिसके बाएं कोने में एक कांच का मुख है, बीच में एक "मेडिकल कप" है और दायीं ओर स्प्रिट बर्नर के साथ एक उबलता हुआ भण्डार है।

पहले "संचालित" या दबावयुक्त इन्हेलर का आविष्कार फ़्रांस में 1858 में सेल्स-गिरोन्स के द्वारा किया गया। यह उपकरण तरल दवा को छोटे कणों में बदलने के लिए दबाव का उपयोग करता था। पम्प के हेन्डल को साइकिल के पम्प की तरह संचालित किया जाता है। जब पम्प को ऊपर खींचा जाता है, यह भण्डार से तरल को खींच लेता है और उपयोगकर्ता के हाथ से बल लगाये जाने पर तरल पर एक एटोमाइज़र के माध्यम से बल लगता है, जिससे उपयोगकर्ता के मुंह के पास इन्हेल करने के लिए स्प्रे किया जा सकता है।[13]


1864 में जर्मनी में पहले भाप से संचालित नेब्युलाइज़र का आविष्कार किया गया। इस इन्हेलर को "सीगल के स्टीम स्प्रे इन्हेलर" के रूप में जाना जाता है, जो तरल दवा को एटोमाइज़ करने के लिए वेंचुरी के सिद्धांत (Venturi principle) का उपयोग करता था और यह नेब्युलाइज़र चिकित्सा की बिल्कुल प्रारम्भिक शुरुआत थी। छोटी बूंद के आकार के महत्व को अभी तक नहीं समझा गया था, इसलिए इस पहले उपकरण की प्रभावकारिता कई चिकित्सा यौगिकों के लिए समझी नहीं गयी। सीगल के स्टीम स्प्रे में स्पिरिट का एक बर्नर होता है, जो भण्डार में उपस्थित पानी को गर्म कर उसे भाप में बदल देता है, यह भाप शीर्ष पर बहती है और चिकित्सकीय विलयन में निलंबित ट्यूब में से होकर निकलती है। इस मार्ग में बहती हुई भाप दवा को वाष्प में खींच लेती है और रोगी स्प्रे होने वाले इस वाष्प को कांच के बने एक मुख से इन्हेल कर लेता है।[14]


चित्र:Glaseptic hand nebulizer (1930).jpg
पार्क डेविस ग्लासेप्टिक, 1930 से हाथ से चलने वाला नेब्युलाइज़र
चित्र:Pneumostat (1930s).jpg
इलेक्ट्रॉनिक नेब्युलाइज़र: न्युमो स्टेट (1930).

पहले इलेक्ट्रॉनिक नेब्युलाइज़र का आविष्कार 1930 में किया गया और यह न्युमोस्टेट कहलाता है। इस उपकरण में चिकित्सकीय तरल (प्रारूपिक रूप से एड्रीनलीन क्लोराइड, जिसका उपयोग श्वासनली की पेशी के संकुचन को शिथिलन में बदलने के लिए किया जाता है) को इलेक्ट्रिक कम्प्रेसर की सहायता से एरोसोल में बदल दिया जाता है।[15] महंगे इलेक्ट्रॉनिक नेब्युलाइज़र के एक विकल्प के रूप में, हालांकि 1930 में कई लोगों ने अधिक साधारण और हाथ से चलाये जाने वाले नेब्युलाइज़र का उपयोग करना जारी रखा, जिसे पार्क-डेविस ग्लासेप्टिक के नाम से जाना जाता है।[16]


1956 में नेब्युलैज़र्स के खिलाफ एक प्रतिस्पर्धी तकनीक की शुरुआत रिकर लेबोरेट्रीज (3M) के द्वारा की गयी, इसे एक दबावयुक्त मापी हुई खुराक के इन्हेलर के रूप में, शुरू किया गया, इसके पहले दो उत्पाद थे मेडीहेलर-आइसो (आइसोप्रेनलिन) और मेडीहेलर-एपी (एड्रीनलीन).[17] इन उपकरणों में दवा ठंडी भरी होती है और इसे कुछ विशेष मापने वाले वाल्व के माध्यम से निश्चित खुराक के रूप में डिलीवर किया जाता है, जिसे एक गैस प्रणोदक तकनीक के द्वारा खींचा जाता है (जैसे फ्रेओन या पर्यावरण को कम क्षति पहुंचाने वाला HFA).[18]


1964 में एक नए प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक नेब्युलाइज़र को एक "अल्ट्रासॉनिक तरंग नेब्युलाइज़र" के रूप में शुरू किया गया।[19] आज नेब्युलाइज़र तकनीक का उपयोग केवल चिकित्सा के उद्देश्य के लिए ही नहीं किया जाता है।

उदाहरण के लिए अल्ट्रासॉनिक तरंग नेब्युलाइज़र का उपयोग नमी उत्पन्न करने वाले उपकरण में भी किया जाता है, जिसका उद्देश्य होता है इमारतों में शुष्क वायु को नम बनाने के लिए जल एरोसोल का स्प्रे करना.[4]


इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट में संबंध में, कुछ पहले डिजाइन किये गए मॉडल्स में एक अल्ट्रासॉनिक तरंग नेब्युलाइज़र है (जिसमें एक पीज़ोइलेक्ट्रिक एलिमेंट होता है जो उच्च आवृति की अल्ट्रासाउंड तरंगों पर कम्पित होता है, जिससे निकोटीन तरल में कम्पन और एटोमिकरण होता है) जिसके साथ एक वेपोराइज़र (जिसे एक इलेक्ट्रिक हीटिंग एलिमेंट के साथ एक स्प्रे नोज़ल के रूप में बनाया जाता है) भी संयोजन में होता है।[20] हालांकि वर्तमान में इलेक्ट्रोनिक सिगरेट का सबसे ज्यादा बेचा जाने वाला प्रकार, अल्ट्रासॉनिक तरंग नेब्युलाइज़र के चुनाव की संभावना को कम करता है, चूंकि इसे इस प्रकार के उपकरण के लिए पर्याप्त प्रभावी नहीं पाया गया। अब इलेक्ट्रॉनिक सिगरेट के बजाय इलेक्ट्रिक वेपोराइज़र का उपयोग किया जाता है, इसे या तो "अन्दर उपस्थित एटोमाइज़र" में अवशोषक सामग्री के साथ सीधे संपर्क में प्रयुक्त किया जाता है, या "स्प्रेइंग जेट एटोमाइज़र" से सम्बंधित नेब्युलाइज़र तकनीक के साथ संयोजन में किया जाता है (जिसमें तरल बूंदों को तेज गति की वायु धारा के द्वारा स्प्रे किया जाता है, जो कुछ छोटे वेंचुरी इंजेक्शन चैनलों में से होकर गुजरता है और निकोटीन तरल के साथ अवशोषित सामग्री में ड्रिल हो जाता है).[21]

उपयोग और संलग्नक[संपादित करें]

नेब्युलाइज़र अपनी दवा को तरल विलयन के रूप में लेते हैं, जिसे अक्सर उपयोग के समय उपकरण में डाला जाता है। कोर्टिकोस्टेरोइड (Corticosteroids) और ब्रोंकोडायलेटर (Bronchodilators) जैसे सालब्युटामोल (salbutamol) (एल्ब्युट्रोल (albuterol) USAN) का उपयोग अक्सर किया जाता है और कभी कभी इप्राट्रोपियम (ipratropium) के साथ संयोजन में उपयोग किया जाता है।

इन दवाओं को खाने के बजाय इन्हेल किये जाने का कारण यह है कि इन्हेल करने पर ये सीधे श्वसन मार्ग पर अपना काम करती हैं, जिससे दवा अपना काम तेजी से करने लगती है और इसके पार्श्व प्रभाव भी काम हो जाते हैं, इसके बजाया खाने पर इनके पार्श्व प्रभाव ज्यादा होते हैं।[3]

आमतौर पर एरोसोल के रूप में बदली गयी दवा को एक ट्यूब जैसे मुख से इन्हेल किया जाता है, जो एक इन्हेलर के समान होता है। हालांकि, उपकरण के मुख की जगह कभी कभी मास्क का उपयोग किया जाता है, यह कुछ वैसा ही होता है जैसा निश्चेतक इन्हेल करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है, इससे छोटे बच्चों में और बड़ों में इन्हेलर का उपयोग करना अधिक आसान हो जाता है, हालांकि अगर रोगी सीधे उपकरण के मुख से दवा को इन्हेल कर सकता है तो मास्क के बजाय सीधे मुख से ही इन्हेल करना चाहिए, क्योंकि मास्क का उपयोग करने से फेफड़ों तक कम दवा पहुंच पाती है, चूंकि यह नाक में भी फ़ैल जाती है।[2]


कोर्टिकोस्टेरोइड के उपयोग के बाद, सैद्धांतिक रूप से यह संभव है कि रोगी के मुंह में यीस्ट का संक्रमण (थ्रश) हो जाये या आवाज में खराश (डिस्फोनिया) पैदा हो जाये, हालांकि व्यवहार में ऐसी स्थितियां कभी कभी ही होती हैं। इन प्रतिकूल प्रभावों से बचने के लिए, कुछ चिकित्सकों सुझाव देते हैं कि जो रोगी नेब्युलाइज़र का उपयोग करते हैं उन्हें अच्छी तरह से कुल्ला करना चाहिए. हालांकि, यह ब्रोंकोडायलेटर के लिए सच नहीं है, फिर भी रोगी कुल्ला करना चाहते हैं क्योंकि श्वसन मार्ग को फ़ैलाने वाली दवाओं का स्वाद अप्रिय होता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

एरोसोल की बूंदों के रूप में फेफड़ों में चिकित्सकीय तरल को पहुंचाने के लिए नेब्युलाइज़र के उपयोग के बजाय, इन्हेलर या वेपोराइज़र का उपयोग भी किया जा सकता है।

  • इन्हेलर
  • वेपोराइज़र
  • इन्हेल किये जा सकने वाले चिकित्सकीय पदार्थों की सूची

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. लुन्गेंलिगा श्वीज़, फेफड़ों के रोगों की एरोसोल चिकित्सा के लिए दिशानिर्देश".
  2. फिनले, डब्ल्यू. एच., द मेकेनिक्स इफ इन्हेल्ड फार्मास्युतिकल एरोसोल्स: एक परिचय, एकेडमिक प्रेस, 2001.
  3. फार्मास्युतिकल इन्हेलेशन एरोसोल टेक्नोलोजी, संस्करण ऐ. जे. हिकी के द्वारा, दूसरा संस्करण, मार्सल डेकर, न्युयोर्क, 2004.
  4. BOGA Gmbh. "Operating principle of ultrasonic humidifier". मूल से 14 नवंबर 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 अप्रैल 2010.
  5. नोच, एम्. और फिनले, डब्ल्यू. एच. "नेब्युलाइज़र टेक्नोलॉजीज ", संशोधित-रिलीज़ ड्रग डिलीवरी तकनीक, में अध्याय 71 राथबोने / हेडग्राफ्ट / रॉबर्ट्स, मार्सेल डेकर, पीपी 849-856, 2002.
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  8. Omron (2010). "Talking about nebulization method: Ultrasonic nebulizer and Vibrating Mesh nebulizer". मूल से 5 जून 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 9 अप्रैल 2010.
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