नुक़्ता

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नुक़्ता देवनागरी, गुरमुखी और अन्य ब्राह्मी परिवार की लिपियों में किसी व्यंजन अक्षर के नीचे लगाए जाने वाले बिन्दु को कहते हैं। इस से उस अक्षर का उच्चारण परिवर्तित होकर किसी अन्य व्यंजन का हो जाता है। मूल रूप से 'नुक़्ता' अरबी भाषा का शब्द है और इसका मतलब 'बिन्दु' होता है। साधारण हिन्दी-उर्दू में इसका अर्थ 'बिंदु' ही होता है।[1] नुक़्ते ऐसे व्यंजनों को बनाने के लिए प्रयोग होते हैं जो पहले से मूल लिपि में न हों, जैसे कि 'ढ़' मूल देवनागरी वर्णमाला में नहीं था और न ही यह संस्कृत में पाया जाता है। अरबी-फ़ारसी लिपि में भी अक्षरों में नुक़्तों का प्रयोग होता है, उदाहरणार्थ 'ر‎' का उच्चारण 'र' है जबकि इसी अक्षर में नुक़्ता लगाकर 'ز‎' लिखने से इसका उच्चारण 'ज़' हो जाता है। इन भाषाओं में ज एवं ज़, दोनों ही शब्द उपलब्ध एवं प्रयोग होते हैं, एनके अलावा एक अन्य ज़ भी होता है जिनके लिये निम्न शब्द प्रयोग होते हैं: ज के लिये जीम, ज़ के लिये ज़्वाद (ض)/ज़े (ز)/ ज़ाल(ذ)/ज़ोए (ظ) - ये चार अक्षर होते हैं। यहां ध्यान योग्य ये है कि चार अक्षर ज़ के लिये होने के बावजूद ज के लिये जीम (ج) होता ही है। अतः जीम का प्रयोग भी होता है, जैसे जज़्बा में ज एवं ज़ दोनों ही प्रयुक्त हैं। ऐसे ही बहुत स्थानों पर ग के लिये गाफ़ (گ) एवं ग़ (غ) के लिये ग़ैन का भी प्रयोग होता है।

हिन्दी में नुक्ता उस बिन्दी को कहते हैं, जो अरबी और फारसी से हिंदी में आए शब्दों की कुछ ध्वनियों को लिखने के लिए देवनागरी के कुछ वर्णों के नीचे लगाई जाती है। हिंदी के क, ख, ग, ज और फ वर्णों के नीचे नुक्ता लगा कर अरबी-फारसी की ध्वनियों (क़, ख़, ग़, ज़, फ़) को लिखा जाता है। यह पद्धति उस दौर में शुरू हुई थी, जब हिंदी के परिष्कार और परिमार्जन का कार्य जोरों पर था। वह शुद्धतावादी लोगों का समय था। उनका मानना था कि अरबी-फारसी के जो शब्द हिंदी में प्रचलित हैं, उनको उनके शुद्ध रूप में हिंदी में लिखना चाहिए। हिंदी में क, ख और ग का उच्चारण जिस स्थान (कण्ठ) से होता है, उसके और नीचे (गले) से अरबी में इन ध्वनियों का उच्चारण होता है। इनका मूल उच्चारण दिखाने के लिए क, ख, ग के नीचे नुक्ता लगा कर क़, ख़, ग़ के रूप में अरबी की ये ध्वनियां लिखी जाने लगीं। ज़ और फ़ फारसी की ध्वनियां हैं। ये संघर्षी ध्वनियां हैं। हिंदी में ऐसी ध्वनियां नहीं हैं। हिंदी में ग और फ स्पर्श ध्वनि हैं।हिंदी भाषा की संरचना की दृष्टि से अरबी-फरसी की इन ध्वनियों को उनके मूल रूप में लिखना आज अनावश्यक है।

यहां ध्यान देने की बात यह है कि उर्दू में क, ख, ग, ज, फ ध्वनियां भी हैं और क़, ख़, ग़, ज़, फ़ भी। यह तय करने का कोई उपाय नहीं है कि किस क, ख, ग, ज, फ के नीचे नुक्ता लगेगा और किसके नीचे नहीं लगेगा। ‘इजाज़त’ शब्द में दोनों ध्वनियां आती हैं। यह कैसे तय होगा कि पहले ‘ज’ के नीचे नुक्ता क्यों नहीं लगता और दूसरे ‘ज’ के नीचे नुक्ता क्यों लगता है? इसी आग्रह का परिणाम है कि छात्र फल को फ़ल और फिर को फ़िर बोलते सुने जाते हैं।

नुक़्ता वाले अक्षर[संपादित करें]

हिन्दी में प्रयोग होने वाले नुक़्तेदार अक्षर और उनके बिना नुक्ते वाले रूप नीचे की तालिका दिए गए हैं। उनके हन्टेरियन लिप्यन्तरण और अन्तर्राष्ट्रीय ध्वन्यात्मक वर्णमाला चिह्न भी दिए गए हैं। जहाँ उपलब्ध है उनके लिए एक बजाई जा सकने वाले ध्वनि भी दी गई है।

नुक़्ता-रहित नुक़्ता-सहित
k
/k/
क़ q
/q/
kh
/kʰ/
ख़ k͟h
/x/
g
/g/
ग़ g͟h
/ɣ/
j
/dʒ/
ज़ z
/z/
jh
/jʰ/
झ़ zh
/ʒ/

/ɖ/
ड़
/ɽ/
ḍh
/ɖʱ/
ढ़ ṛh
/ɽʱ/
ph
/pʰ/
फ़ f
/f/

हिन्दी में नुक्ते के प्रयोग के विषय में मानक[संपादित करें]

नुक्ता लम्बे समय से हिंदी विद्वानों के बीच विमर्श का विषय रहा है। किशोरीदास वाजपेयी (हिंदी शब्दानुशासन, नागरी प्रचारिणी सभा) जैसे व्याकरण के विद्वान हिन्दी लेखन में नुक्ता लगाने के पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है कि ये सब शब्द अब हिंदी के अपने हो गए हैं और हिंदी भाषी इन शब्दों का उच्चारण ऐसे ही करते हैं जैसे उनमें नुक्ता नहीं लगा हो। बहुत कम लोगों को उर्दू के नुक्ते वाले सही उच्चारण का ज्ञान है।

केंद्रीय हिंदी निदेशालय द्वारा जारी मानक हिन्दी वर्तनी के अनुसार उर्दू से आए अरबी-फ़ारसी मूलक वे शब्द जो हिंदी के अंग बन चुके हैं और जिनकी विदेशी ध्वनियों का हिंदी ध्वनियों में रूपांतर हो चुका है, हिंदी रूप में ही स्वीकार किए जा सकते हैं। जैसे :– कलम, किला, दाग आदि (क़लम, क़िला, दाग़ नहीं)। पर जहाँ उनका शुद्‍ध विदेशी रूप में प्रयोग अभीष्ट हो अथवा उच्चारणगत भेद बताना आवश्‍यक हो (जैसे उर्दू कविता को मूल रूप में उद्दृत करते समय) , वहाँ उनके हिंदी में प्रचलित रूपों में यथास्थान नुक्‍ते लगाए जाएँ। जैसे :– खाना : ख़ाना, राज : राज़, फन : हाइफ़न आदि।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. A Dictionary Of Urdu, Classical Hindi And English Archived 2014-09-21 at the वेबैक मशीन, John T. Platts, pp. 1146, Kessinger Publishing, 2004, ISBN 978-0-7661-9231-7, ... to mark (a letter) with (the diacritical) points ... A point, a dot ...

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]