नीहारिका परिकल्पना

निहारिका परिकल्पना (nebular hypothesis) किसी सौर मंडल के निर्माण और विकास करने वाली एक खगोलीय घटना है। सन् 1755 ई॰ में इमैनुअल कांट ने अपनी पुस्तक यूनिवर्सल नेचुरल हिस्ट्री एंड थ्योरी ऑफ द हैवेन्स में प्रस्तुत किया। कांट के अनुसार सौर मंडल का विस्तार सूर्य की परिक्रमा करने वाली धूलकण और गैस के मिश्रण से ग्रहों का निर्माण हुआ है। सन् 1796 में पियरे लाप्लास द्वारा इस सिद्धांत का संशोधिन किया गया।
निहारिका परिकल्पना सिद्धांत के अनुसार, तारे आणविक हाइड्रोजन के विशाल और घने बादलों में बनते हैं। ये बादल गुरुत्वाकर्षण के कारण अस्थिर होते हैं और पदार्थ उनके भीतर छोटे घने गुच्छों में एकत्रित हो जाते हैं, जो फिर घूमते रहते हैं और तारे के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। तारा निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है, जो हमेशा युवा तारे के चारों ओर एक गैसीय पिण्ड का निर्माण करती है। इस प्रकार ग्रह प्रणालियों के निर्माण को तारा निर्माण का एक स्वाभाविक परिणाम माना जाता है। इन खगोलीय घटनाओं के विखंडन में आमतौर पर लाखों वर्ष लगते हैं।[2]
ग्रहों का निर्माण
[संपादित करें]"सौर नीहारिका चक्र मॉडल के अनुसार, चट्टानी ग्रहों का निर्माण ग्रहाणु चक्र के आंतरिक क्षेत्र में होता है, जहाँ उच्च तापमान के कारण बर्फिले अस्थिर तत्व संघनित नहीं हो पाते। यह क्षेत्र तुषार रेखा के भीतर स्थित होता है, जहाँ केवल धात्विक और सिलिकेट कण जमा होते हैं। समय के साथ, इन कणों के आपसी संघनन और टकराव से छोटे पिंड बनते हैं, जो क्रमशः बड़े होकर ग्रहों का रूप धारण कर लेते हैं। यह प्रक्रिया सूर्य के चारों ओर लगभग 3-4 खगोलीय इकाई के दायरे में होती है, जिससे पृथ्वी, शुक्र, मंगल और बुध जैसे चट्टानी ग्रह विकसित होते हैं।"
वर्तमान समस्याएं
[संपादित करें]सौर मंडल में उपस्थित गैसिय पिण्ड मुख्य समस्या यह है कि तारे बनने की प्रक्रिया के पहले चरण में ही अपनी कोणीय गति कैसे खो देती है।[3]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ हैरिंगटन, जे॰डी॰; विलार्ड, रेय (24 April 2014). "ग्रहों के निर्माण के दौरान मलबे के वर्तुल का निरीक्षण किया गया।"". NASA. मूल से 2014-04-25 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2014-04-25.
- ↑ एंड्रयूज, रॉबिन जॉर्ज (10 अगस्त 2022). "Astronomers May Have Found the Galaxy's Youngest Planet" [खगोलविदों ने आकाशगंगा के सबसे युवा ग्रह की खोज कर ली है]. द न्यूयॉर्क टाइम्स (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 11 अगस्त 2022.
- ↑ लिंडेन-बेल, डी॰; प्रिंगल, जे॰ ई॰ (1974). "गैसिय पिण्ड का विकास और निहारिका की उत्पत्ति". रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी की मासिक सूचनाएं. 168 (3): 603–637. डीओआइ:10.1093/mnras/168.3.603. बिबकोड:1974MNRAS.168..603L.