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नीलकण्ठ महादेव मन्दिर, कालिंजर

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नीलकंठ महादेव मन्दिर
दुर्ग का नीलकंठ मन्दिर, जहाँ स्थापित शिवलिंग का अभिषेक निरंतर प्राकृतिक तरीके से होता रहता है।
धर्म संबंधी जानकारी
सम्बद्धताहिन्दू धर्म
देवतानीलकंठ महादेव
अवस्थिति जानकारी
अवस्थितिकालिंजर दुर्ग, कालिंजर,
बांदा जिला, उत्तर प्रदेश
भौगोलिक निर्देशांक24°59′59″N 80°29′07″E / 24.9997°N 80.4852°E / 24.9997; 80.4852
वास्तु विवरण
शैलीनागर शैली
निर्मातानाग वंश
स्थापितचौथी शताब्दी

कालिंजर दुर्ग के पश्चिमी भाग में यहां के अधिष्ठाता देवता नीलकंठ महादेव का एक प्राचीन मंदिर भी स्थापित है। इस मंदिर को जाने के लिए दो द्वारों से होकर जाते हैं। रास्ते में अनेक गुफाएँ तथा चट्टानों को काट कर बनाई शिल्पाकृतियाँ बनायी गई हैं। वास्तुशिल्प की दृष्टि से यह मंडप चंदेल शासकों की अनोखी कृति है। मंदिर के प्रवेशद्वार पर परिमाद्र देव नामक चंदेल शासक रचित शिवस्तुति है व अंदर एक स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। मन्दिर के ऊपर ही जल का एक प्राकृतिक स्रोत है, जो कभी सूखता नहीं है। इस स्रोत से शिवलिंग का अभिषेक निरंतर प्राकृतिक तरीके से होता रहता है। बुन्देलखण्ड का यह क्षेत्र अपने सूखे के कारण भी जाना जाता है, किन्तु कितना भी सूखा पड़े, यह स्रोत कभी नहीं सूखता है।[1][2]> कालिंजर दुर्ग में २४९ ई. में हैहय वंशी कृष्णराज का शासन था, एवं चतुर्थ शताब्दी में नागों का अधिकार हुआ, जिन्होंने यहाँ नीलकंठ महादेव का मन्दिर बनवाया। [3] चन्देल शासकों के समय से ही यहां की पूजा अर्चना में लीन चन्देल राजपूत जो यहां पण्डित का कार्य भी करते हैं, वे बताते हैं कि शिवलिंग पर उकेरे गये भगवान शिव की मूर्ति के कंठ का क्षेत्र स्पर्श करने पर सदा ही मुलायम प्रतीत होता है। यह भागवत पुराण के सागर मंथन के फलस्वरूप निकले हलाहल विष को पीकर, अपने कंठ में रोके रखने वाली कथा के समर्थन में साक्ष्य ही है। मान्यता है कि यहां शिवलिंग से पसीना भी निकलता रहता है।[4]


अबूझ पहेली

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मंदिर के ठीक पीछे की तरफ पहाड़ काटकर पानी का कुंड बनाया गया है। माना जाता है कि इस प्राचीनतम किले में मौजूद खजाने का रहस्य भी इसी प्रतिलिपि में है, लेकिन आज तक कोई इसका पता नहीं लगा सका है। इस मंदिर के ऊपर पहाड़ है, जहां से पानी रिसता रहता है। बुंदेलखंड सूखे के कारण जाना जाता है, लेकिन कितना भी सूखा पड़ जाए, इस पहाड़ से पानी रिसना बंद नहीं होता है। कहा जाता है कि सैकड़ों साल से पहाड़ से ऐसे पानी निकल रहा है, ये सभी इतिहासकारों के लिए अबूझ पहेली की तरह है।[उद्धरण चाहिए]

निकटस्थ

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ऊपरी भाग स्थित जलस्रोत हेतु चट्टानों को काटकर दो कुंड बनाए गए हैं जिन्हें स्वर्गारोहण कुंड कहा जाता है। इसी के नीचे के भाग में चट्टानों को तराशकर बनायी गई काल-भैरव की एक प्रतिमा भी है। इनके अलावा परिसर में सैकड़ों मूर्तियाँ चट्टानों पर उत्कीर्ण की गई हैं।[5] शिवलिंग के समीप ही भगवती पार्वती एवं भैरव की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। प्रवेशद्वार के दोनों ही ओर ढेरों देवी-देवताओं की मूर्तियां दीवारों पर तराशी गयी हैं। कई टूटे स्तंभों के परस्पर आयताकार स्थित स्तंभों के अवशेष भी यहां देखने को मिलते हैं। इतिहासकारों के अनुसार कि इन पर छः मंजिला मन्दिर का निर्माण किया गया था। इसके अलावा भी यहाँ ढेरों पाषाण शिल्प के नमूने हैं, जो कालक्षय के कारण जीर्णावस्था में हैं।

दुर्ग स्थित नीलकण्ठ मन्दिर
नीलकण्ठ मन्दिर

सन्दर्भ

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  1. "सदियों से रिस रहा है इस पहाड़ से पानी, अंकगणित के हिसाब से सजे हैं मंदिर". पत्रिका. 2017-01-07. Archived from the original on 27 फ़रवरी 2017. Retrieved 6 मार्च 2017. {{cite web}}: Cite has empty unknown parameters: |accessyear=, |month=, |accessmonthday=, and |coauthors= (help)
  2. गुप्ता, पर्मिला. भारत के विश्वप्रसिद्ध धरोहर स्थल. चण्डीगढ़: प्रभात प्रकाशन. pp. ५१–५२. 938434351X, 9789384343514. Archived from the original on 27 फ़रवरी 2017. Retrieved 6 मार्च 2017. {{cite book}}: Cite has empty unknown parameters: |accessyear=, |origmonth=, |accessmonth=, |month=, |chapterurl=, |accessday=, |coauthors=, and |origdate= (help)
  3. "कालजयी कालिन्जर". दैनिक जागरण- यात्रा. Archived from the original on 27 फ़रवरी 2017. Retrieved 9 मार्च 2017. {{cite web}}: Cite has empty unknown parameters: |accessyear=, |month=, |accessmonthday=, and |coauthors= (help)
  4. "धरती पर आज भी मौजूद है शिव के कालिंजर स्वरुप के प्रमाण !!". हिन्दुत्व.इन्फ़ो. 2017-02-04. Archived from the original on 27 फ़रवरी 2017. Retrieved 2017-02-27.
  5. खरे, ज्योति (2010-06-14). "दुर्ग कलिंजर का". अभिव्यक्ति-हिन्दी. Archived from the original on 2 फ़रवरी 2017. Retrieved 6 मार्च 2017. {{cite web}}: Cite has empty unknown parameters: |accessyear=, |month=, |accessmonthday=, and |coauthors= (help)

बाहरी कड़ियाँ

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